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आखिर क्या ख़ास है RES में जो प्रमोशन बाद भी नहीं खाली हो रही कुर्सी

#सहायक लेखाकार प्रमोद कुमार प्रमोशन के बाद भी दो साल से है विभाग में जमा.

#आखिर क्यूँ निदेशक आंतरिक लेखा और वित्त नियंत्रक नहीं ले रहे संज्ञान.    

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ :  बिना बजट वाला विभाग ग्रामीण अभियंत्रण में अफसरों के कारनामे वैसे तो हमेशा से चर्चा में रहा है. लेकिन फिलहाल जो ताजा मामला सामने आया है वह विभाग में सहायक लेखाकार पद पर कार्यरत प्रमोद कुमार को लेकर है जोकि लेखाकार पद पर प्रमोशन और राजधानी लखनऊ में तैनाती पाने के बाद भी ग्रामीण अभियंत्रण में जमे हुए हैं. ताजा मिली जानकारी के अनुसार प्रमोद कुमार अपने प्रमोशन के बाद हुए रुकवाने की जुगत में लगे हैं और कमोबेश कामयाब भी हो चुके हैं.

बताते चलें कि ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में तैनात सहायक लेखाकार प्रमोद कुमार का प्रमोशन अनुसूचित जाति विभाग में लेखाकार के पद पर लखनऊ में हो जाने के बाद भी प्रमोशन के पद को अनदेखा कर ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में सहायक लेखाकार के पद से जुड़ा है. सहायक लेखाकार एवं लेखाकारों का राज्य स्तरीय कैडर बना दिए जाने के बाद इनके नियुक्ति प्राधिकारी निदेशक आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा द्वारा अपने आदेश संख्या  आ0ले0प0 -1117/अधि0/4975/सहा0ले0पदो0-35-3/2015-16 दिनांक 29 जून 2016 के द्वारा प्रमोद कुमार का प्रमोशन सहायक लेखाकार से लेखाकार के पद पर करते हुए तैनाती कार्यालय निदेशक,जनजाति, उत्तर प्रदेश लखनऊ में की गयी. लेकिन 2 वर्ष से अधिक बीत जाने के बाद भी इनको रिलीव नहीं किया गया और न ही इन्होने ज्वाईन किया. ऐसे में सवाल उठता है कि वर्तमान सरकार की स्थानान्तरण नीति और उसकी पारदर्शिता को ठेंगा दिखाने वाले इसके जिम्मेदार कौन? ऐसी क्या वजह है जिसके चलते सहायक लेखाकार से लेखाकार पद पर प्रमोशन पाने के बावजूद प्रमोद ग्रामीण अभियंत्रण विभाग नहीं छोड़ना चाहते बल्कि खुद को विभाग में बनाये रखने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपना रहे हैं.

अभी कुछ माह पहले एलडीए में एक ही जगह जमे ओझा बाबू का प्रकरण चर्चित रहा है जिसने शासन प्रशासन के कान खड़े कर दिए थे वहीं ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में इस तरह एक ही जगह कुर्सी से चिपकने की वजह को समझा जा सकता है. ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में वित्त नियंत्रक के चहेतों में गिने जाने वाले प्रमोद कुमार पिछले लगभग 10 वर्ष से 90 प्रतिशत जीपीएफ स्वीकृत और चिकित्सा प्रतिपूर्ति की स्वीकृति का कार्य करते रहे. लेकिन तमाम शिकायतों के बाद वित्त नियंत्रक द्वारा इनसे जीपीएफ तो हटा लिया गया था.  लेकिन तब इनको इनाम स्वरुप बजट एलाटमेंट का काम दे दिया गया. अपनी नजदीकियों के चलते ही लेखा संवर्ग में सबसे कनिष्ठ होने के बावजूद इन्हें बजट एलाटमेंट जैसे पटल से नवाजा गया था. और तो और चिकित्सा प्रतिपूर्ति की स्वीकृति का कार्य भी इन्हीं के रहमो करम पर है. मजेदार बात यह है कि कैसलेश इलाज की व्यवस्था लागू होने के बाद भी ग्रामीण अभिंत्रण विभाग में अभी भी यह कार्य मैनुअल किया जा रहा है. ध्यान रहे विभाग में चिकित्सा प्रतिपूर्ति के मद में बड़े पैमाने पर बजट का प्रावधान होता है. दो दिन पहले वित्त नियंत्रक के पत्रांक संख्या 01/ग्राअवि/बजट/कैम्प/2017-18 दिनांक 26.07.2017 द्वारा अनुभाग में तैनात कर्मचारियों के बीच कार्यों के बंटवारे का जो प्रचार प्रसार विभाग में किया गया उसने फिलहाल तरह-तरह की चर्चाओं को जन्म दे दिया है. जबकि सामान्यतः ऐसा होता नहीं रहा है.

 

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