#पुलिस की जांच रिपोर्ट पर उठ रहे सवाल, मामले की लीपापोती की संभावना.
#जिला प्रशासन की रिपोर्ट में शामिल विभाग के 4 अफसरों से पुलिस ने नहीं की पूछताछ.
#जवाहरपुर परियोजना के GM रहे US Gupta पर पहले विभाग भी रहा था मेहरबान.
#US Gupta को परियोजना का GM बनवाने में रहा था कुछ विभाग के बड़े अफसरों तथा एक प्रवक्ता का हाथ.
#घटना की मानिटरिंग सीएम सचिवालय से तब है यह हाल, अंतर्राज्यीय गैंग के भी शामिल होने से नहीं इनकार.
#आखिर, क्या दबाव में है पुलिस या फिर असली गुनहगार को बचाने की पुलिस द्वारा की जा रही कवायद?
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : जवाहरपुर बिजली परियोजना में हुई करोड़ों की सरकारी माल की डकैती के मामले में खेल हो गया है. सरकारी माल की लूट पकड़ने वाले अधिकारियों की मंशा पर पानी फेरते हुए पुलिसिया चार्जशीट तैयार कर असली गुनहगारों को बचाने का रास्ता खुद पुलिस ने साफ कर दिया है. खबरों के मुताबिक जो चार्जशीट तैयार हुई है उसमें जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में दोषी करार दिए गए असली गुनाहगारों से पूछताछ तक नहीं की गई है. इस तरह बिजली विभाग के शातिर अधिकारियों व कर्मचारियों को पुलिस द्वारा बख्श दिया गया है.
मामले के दोषी जेई सुरेंद्र कुमार जिसे विभाग ने जवाहरपुर से हटा अनपरा भेज दिया था उससे पुलिस ने चार्जशीट में बयान तक नहीं लिया. एक दूसरे एक्जक्यूटिव इंजीनियर कुमार गौरव जिनको विभाग ने जवाहरपुर से हटाकर मुख्यालय पर तैनात कर दिया था उससे भी पुलिस ने पूछताछ नहीं कर सकी. इसके अलावा सरिया चोरी में सरकारी लूट के हिस्सेदार बिजली विभाग के अन्य रसूखदारों को भी पुलिस ने विवेचना तक मे शामिल नहीं किया है.
ईमानदार मुख्यमंत्री योगी और सुशासन के पहरुए ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा की आंख में पुलिस और बिजली विभाग के शातिर धूल झोंकने मे कामयाब हो गए लगते हैं. “अफसरनामा” की पड़ताल में सामने आया है कि बिजली विभाग के दोषी पाए इंजीनियरों व कर्मचारियों से पुलिस ने चार्जशीट तैयार करते समय पूछताछ तो दूर बयान तक दर्ज करना मुनासिब नहीं समझा. फोन पर मामले के सूत्रधारों ने इस खेल को खुद कबूल किया है. वहीँ एसएसपी एटा के अनुसार चार्जसीट विवेचक द्वारा सौंपी जा चुकी है और इसे अब न्यायालय में दाखिल करना है.
10 सितम्बर 2018 को एटा जनपद में जवाहरपुर तापीय परियोजना में इस्तेमाल होने वाली सरिया की चोरी का खुलासा एसडीम महेंद्र सिंह तंवर द्वारा किया गया था. जिसमें जिला प्रशासन द्वारा इस पूरे खेल में विभागीय संलिप्तता के अलावा एक बड़े अन्तर्राज्यीय सिंडिकेट के शामिल होने की भी बात कही गयी थी. सरिया चोरी के इस पूरे प्रकरण में विभागीय संलिप्तता का मुद्दा “अफसरनामा” ने उठाया था जिसके बाद शासन भी हरकत में आया और मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा पूरे प्रकरण की मॉनिटरिंग शुरू कर दी गई थी. चोरी की इतनी बड़ी घटना में विभागीय संलिप्तता की बात सामने आने के बाद विभाग ने प्रथम दृष्टया संलिप्त अधिकारी को यथोचित सजा भी दे चुका है और फाईनल कार्यवाही के लिए पुलिस की जांच रिपोर्ट के इन्तजार में है.
लेकिन 3 महीने से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी एटा पुलिस अभी तक विभाग के संलिप्त अधिकारियों से पूछताछ ही नहीं कर सकी है. इस बाबत जब वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक से जानकारी मांगी गयी तो विवेचना की बात कहते हुए जानकारी देने से इनकार किया गया और जांच अधिकारी द्वारा चार्जसीट दाखिल किये जाने की बात कही गयी. लेकिन इस सवाल का जवाब वो भी नहीं दे सके कि जांच अधिकारी द्वारा चार्जसीट दाखिल तो की जा चुकी है लेकिन क्या विभाग के दोषी अधिकारियों से इस सम्बन्ध में पूछताछ की गयी है. जबकि “अफसरनामा” की जांच पड़ताल में यह साबित हो चुका है कि चोरी के इस प्रकरण में शामिल 4 अधिकारियों में से पुलिस ने अभी तक किसी का बयान नहीं ले सकी है. ऐसे में जांच अधिकारी द्वारा दाखिल की गयी चार्जसीट पर सवाल खड़े होते हैं और पूरे मामले को लेकर पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में है.
सरिया चोरी के इस प्रकरण की मानिटरिंग खुद मुख्यमंत्री सचिवालय द्वारा किये जाने और विशेष सचिव मुख्यमंत्री द्वारा इस सम्बन्ध में डीएम एटा को सख्त निरेदेश दिए जाने के बाद जिला प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट तो शासन को भेज दिया था जिसके आधार पर विभाग ने उन दोषी अफसरों पर कार्यवाही भी की लेकिन पुलिस प्रशासन पर मुख्यमंत्री सचिवालय के इस दिशा निर्देश का कोई असर नहीं है और वह मामले की तह तक न जाकर केवल रफा दफा कर रही है. तीन महीने बीत जाने के बाद भी एटा पुलिस का यह रवैया योगी सरकार के आदेशों को ठेंगा दिखाने वाला है. पुलिस की जांच में की जा रही देरी और दोषी विभाग के अफसरों से पूछताछ न किया जाना निष्पक्ष जांच की तरफ इशारा नहीं करती है. वहीँ सरिया चोरी प्रकरण में शामिल सरिया सप्लाई करने वाली कंपनी दूसान ने अपने निकाले गए कर्मचारी सुषांत मुखर्जी को बहाल करते हुए पुनः वहीँ पर तैनाती दिए जाने की जानकारी है.
बताते चलें कि एटा जिले के जवाहरपुर तापीय परियोजना के इस “चर्चित सरिया चोरी” प्रकरण के सरगना US Gupta जिसको एटा जिला प्रशासन अपनी प्रथम रिपोर्ट में दोषी मान रहा है, को सजा देने के बजाय विभाग के जिम्मेदारानों द्वारा गुप्ता को आफिस अटैच बताया जा रहा था जबकि जारी आदेश में अटैच जैसे किसी शब्द का जिक्र तक नहीं था. मामले की लीपापोती करते हुए US Gupta को जवाहरपुर से हटाकर निदेशालय में जिस “मुख्य अभियंता प्रगति ईकाई” के पद पर तैनाती दी गयी मूलतः वह पद है ही नहीं जबकि इसी प्रकरण में US Gupta के सहयोगी रहे और जिला प्रशासन की रिपोर्ट में दोषी JE Surendra Kumar को सोनभद्र में परियोजना प्रबंधक के साथ अटैच कर दिया गया था. US Gupta को निदेशालय पर इसलिए बैठाया गया ताकि वह पूरे मामले को मैनेज कर सके और वह इस काम में पूरी शिद्दत से लगा था.
सरिया चोरी के इस प्रकरण में सरगना US Gupta को बचाने के लिए शुरू में विभाग द्वारा लीपापोती भी की गयी और अब पुलिस कर रही है. इस प्रकरण में विभाग के सरगना US Gupta को पूर्व एमडी अमित गुप्ता ने जवाहरपुर से हटाकर मुख्यालय पर स्थानांतरित कर दिया था. लेकिन वर्तमान एमडी ने उसको परीछा उसके ही समकक्ष के साथ अटैच कर दिया. अटैच होने के बाद US Gupta मेडिकल लीव पर चला गया और पूरे मामले को मैनेज करने के लिहाज से अपने आकाओं जोकि इसकी जवाहरपुर तैनाती के मददगार थे के दरवाजे पर दस्तक देने लगा. इसके अलावा बता दें कि यूएस गुप्ता को जवाहरपुर परियोजना का जीएम बनवाने में कुछ विभागीय अधिकारियों के अलावा एक बीजेपी के प्रवक्ता का भी नाम सामने आया था. सियासी रसूख और बिजली विभाग में शीर्ष पर बैठी अफसरशाही की मेहरबानियों के चलते यूएस गुप्ता जवाहरपुर के साथ ही साथ हरदुआगंज में बिना स्वीकृत पद के ही अतिरिक्त प्रभार लेने में कामयाब रहा था. लेकिन जब इस सवाल को “अफसरनामा” द्वारा प्रमुखता से उठाया गया तो दूसरे ही दिन यूएस गुप्ता के पास से यह प्रभार जिम्मेदारों ने हटा लिया.
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