#उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी पर कार्यवाही की चार्जसीट शासन में लंबित.
#संविदाकर्मियों को अन्तर्तहसील तबादले का आदेश जारी करने वाले अलोक क्या इनपर करेंगे कार्यवाई.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार जोकि इसके पहले इसी कारपोरेशन और निगम के अपने कार्यकाल में अपनी कार्यशैली को लेकर काफी सुर्ख़ियों में रहे हैं. अपने पहले के कार्यकाल में अलोक कुमार ने बार-बार यूनिट बंद होने के कारणों के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्हें कोयला और तेल का खेल नजर आया. उन्होंने इस पर अंकुश लगाने की कवायद शुरू की तो रातों रात हटा दिए गए. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस तरह की कार्यशैली की पहचान रखने वाले अलोक कुमार आखिर उत्पादन निगम के निदेशक संजय तिवारी पर मेहरबान क्यों हैं ? क्या उत्पादन निगम के कारसाज Sanjay Tiwari को सजा देने के बजाय, माला पहनाकर रिटायर करने की तैयारी है. निदेशक कार्मिक संजय तिवारी पर कार्यवाही की चार्जसीट शासन में लंबित है और उसका रिटायरमेंट 28 फरवरी 2019 है और इस समबन्ध में अभी तक 3 लोगों पर कार्यवाही भी की जा चुकी है. ओबरा अग्निकांड जिसमें सरकार के करीब 500 करोड़ रूपये स्वाहा हो गए और जिसकी जांच में प्रोबेशन पर आये संजय तिवारी भी किसी न किसी तरह से दोषी हैं, पर कार्यवाही करने से बच रहे हैं तो विभाग के हालात को समझा जा सकता है.
गुरूवार को रवीन्द्रालय में विभाग के ही एक संगठन के अधिवेशन में प्रमुख सचिव ऊर्जा एवं पावर कारपोरेशन के अध्यक्ष आलोक कुमार ने कहा कि जनता की नजर में बिजली विभाग की छवि खराब है इसे सुधारने की जरूरत है और यह कार्य अधिकारियों और कर्मचारियों को संयुक्त रूप से करना होगा. ऐसे में सवाल यह भी है कि क्या उच्च स्तर पर बैठे जिम्मेदारों की बिजली विभाग की छवि को सुधारने का कोई जिम्मा नहीं है. संजय तिवारी के प्रकरण में शीर्ष स्तर की इस तरह की कार्यशैली जिसमें एक दोषी को रिटायर होने का पूरा मौका दिया जा रहा है, से बिजली विभाग की छवि सुधरेगी. आखिर संजय तिवारी के प्रकरण में शासन स्तर की उदासीनता का जिम्मेदार कौन है और उसपर कार्यवाही क्यूँ नहीं की जा रही है. उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और उसके ऊर्जा मंत्री कितने भी दावे करें कि उनके शासनकाल में अफसरों की कार्यशैली में बदलाव आया है, और भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, या फिर उसमें कमी आई है, फिलहाल संजय तिवारी के प्रकरण को देखते हुए उनके अफसरों की कार्यशैली में बदलाव की गंभीरता को समझा जा सकता है.
ओबरा विद्युत् ताप गृह में 14 अक्टूबर को हुए अग्निकांड के बाद दोषियों की तलाश शुरू हुई और एमडी पांडियन ने BK Khre की अध्यक्षता में एक हाईकोर कमेटी गठित की जिसने कि गुच्छ कमेटी की रिपोर्ट का अध्ययन कर अपनी रिपोर्ट प्रबंधन को दिया. कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रबंध निदेशक पांडियन द्वारा CGM, AK Singh को मुख्यालय पर और GM, DK Mishra को अनपरा भेज दिया और एक बेकसूर सुरेश राम को सस्पेंड कर मामले को रफादफा कर दिया गया. लेकिन BHEL के मना करने के बाद और योगी सरकार के ही पूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार के फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के आदेश और CISF द्वारा दिए गए सुरक्षा उपायों को ठेंगा दिखाने वाले जिम्मेदारों पर कार्यवाही क्यूँ नहीं की जा रही है इस बात का जवाब एमडी पांडियन और प्रमुख सचिव ऊर्जा नहीं दे रहे हैं. निगम के प्रबंधन की इस पर चुप्पी कई बड़े सवाल खड़े कर रही है.
बताते चलें कि ओबरा अग्निकांड में गठित की गयी गुच्छ की अगुआई में जांच कमेटी की रिपोर्ट का परिक्षण बीके खरे की कमेटी ने किया और विद्युत् उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक Sanjay Tiwari को भी परियोजना में लगी आग का दोषी पाया. प्रोबेशन पर आये और निदेशक बने Sanjay Tiwari का रिटायरमेंट भी इसी 28 फरवरी को है, और वह येन केन प्रकारेण अपनी इस जांच रिपोर्ट पर होने वाली कार्यवाई को रोकने के लिए प्रयासरत है. अगर शासन द्वारा Sanjay Tiwari पर कार्यवाही की जाती है तो वह निदेशक पद पर भी नहीं बने रह सकते. यही वजह है कि वह इंजीनियरिंग सेवा से बाइज्जत रिटायर होकर निदेशक बने रहने के लिए अब जुगत भिड़ाने में लगे हुए हैं. ओबरा अग्निकांड में सीजीएम और जीएम और एक इंजीनियर पर कार्यवाही के बाद अब तलवार 2015 से 2018 तक ओबरा के सीजीएम रहे वर्तमान निदेशक कार्मिक Sanjay Tiwari पर लटक रही है. ओबरा अग्निकांड के दोषियों की जांच के लिए गठित की गई गुच्छ कमेटी की रिपोर्ट के बाद यह कार्यवाही होनी है.
उत्पादन निगम का कारसाज Sanjay Tiwari, सजा नहीं माला पहन होगा रिटायर
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