#ओबरा अग्निकांड, फंड डायवर्जन में चार्जशीट, फिर भी कुछ न बिगाड़ सकी सरकार और प्रबंधन.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : जीरो टालरेंस और सुशासन के नारे पर सवार हो सत्ता में आयी योगी सरकार बिजली उत्पादन निगम के दागी निदेशक का बाल भी बांका नहीं कर सकी. पूरे कार्यकाल में गदर मचाने, ओबरा बिजलीघर फुंकवाने और धनराशि के हेरफेर में आरोप पत्र पाने के बाद भी उत्पादन निगम का कार्मिक निदेशक संजय तिवारी शान से नौकरी करता हुआ माला पहन रिटायर हो गया. तमाम कवायद करते हुए सरकार और प्रबंधन उस पर कारवाई के नाम पर सिफर ही रही.
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले, तिवारी से अधीनस्थों की भावना रही आहत, नहीं हुआ फेयरवेल
उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम लि. (यूपीआरवीयूएनएल) के निदेशक कार्मिक रहे संजय तिवारी इसी 10 अक्टूबर 2020 को दो-दो चार्जशीट के साथ रिटायर हुए हालांकि दागी निदेशक को फेयरवेल भी नहीं दी गयी पर इसके पीछे उससे पीड़ित रहे अधीनस्थों की भावना रही न कि सरकार या प्रबंधन की.
14 Oct 2018 को हुए ओबरा अग्निकांड में चार्जशीट देने के बाद भी अभी तक सजा नहीं
संजय तिवारी को 14 अक्टूबर 2018 को हुए ओबरा अग्निकांड में चार्जशीट देने के बाद भी अभी तक सजा नहीं हो सकी है. अब इसे प्रबंधन की कमजोरी कहें या शासन की उदासीनता, सरकार की जीरो टोलरेंस की नीति को जिम्मेदार कुछ इसी तरह ठेंगा दिखा रहे हैं. अक्टूबर 2018 में हुई ओबरा परियोजना में अग्निकांड की घटना जिसमें करीब ₹500 करोड़ का सरकार को नुकसान हुआ और जिसके बाद करीब 11 करोड़ प्रतिमाह की दर से नुकसान अभी भी जारी है, के मामले की जांच और कार्यवाही में 2 साल से ज्यादा का वक्त लग गया और गुनाहगार संजय तिवारी को सजा नहीं दिया जा सका बल्कि उसको रिटायर होने दिया गया.
अगस्त 2017 में बनी जांच कमेटी पर आजतक नहीं मिली सजा, हुआ रिटायर, संजय तिवारी ने सीजीएम ओबरा रहने के दौरान किया था वित्तीय अनियमितता
यही नहीं इसी संजय तिवारी को जिस दूसरे मामले में चार्जशीट दी गई है वह मामला इससे भी पुराना है. संजय तिवारी ने मुख्य परियोजना प्रबंधक ओबरा रहने के दौरान काफी वित्तीय अनियमितता किया था. जानकार बताते हैं कि वित्तीय अनियमितता की इस फाइल को निदेशक कार्मिक बनने के बाद संजय तिवारी ने खुद अपनी अलमारी में कहीं छुपा लिया था बाद में “अफसरनामा” द्वारा फाइल के इस प्रकरण को प्रकाश में लाने के बाद प्रबंध निदेशक द्वारा जांच शुरू करा दी गई लेकिन कार्यवाही करने में उसके रिटायरमेंट तक फेल रहे.
उत्पादन निगम में जिम्मेदारों की उदासीनता दिखा रही है योगी की जीरो टोलरेंस को ठेंगा
अब सवाल यह है कि आज मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सामने भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था और हाथरस जैसे मामलों के पीछे कहीं न कहीं अफसरों की लापरवाही और उनकी उदासीनता ही वजह बनी है. कुछ इसी तरह का उदाहरण सीएम योगी की अफसरशाही ने ऊर्जा विभाग में भी पेश किया है जहां पर जीपीएफ जैसा घोटाला इन्हीं अफसरों की लापरवाही का नतीजा रहा. तो अब वही जिम्मेदार दागी अफसरों को बचाने और उन पर कार्रवाई न करने का उदाहरण पेश कर रहे हैं. इसके लिए विद्युत् उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक रहे संजय तिवारी से बड़ा उदाहरण कोई दूसरा नहीं हो सकता है. जिसमें शीर्ष अफसरशाही की उदासीनता दिख रही है और सरकार की जीरो टोलरेंस की नीति को ठेंगा दिखाया जा रहा है.
अब सेवानिवृत्ति के बाद संजय तिवारी को सजा मिलती है या फिर उपहार, तय करेंगे जिम्मेदार
फिलहाल सजा के तौर पर प्रबंधन ने संजय तिवारी की प्रोविजनल पेंशन पर रोक लगा रखा है और उसके तमाम प्रयासों के बाद भी इसको बढ़ाया नहीं गया. इसी बीच प्रबंधन द्वारा दोषी अधिकारियों कर्मचारियों के किसी मामले में सजा के तौर पर 33% पेंशन कटौती का एक आदेश 9 अक्टूबर 2020 को जारी कर दिया गया है. अब देखना यह होगा कि प्रबंधन और सरकार की मेहरबानी से संजय तिवारी जैसा भ्रष्ट और लापरवाह अफसर को रिटायर कर दी कर दिया गया, तो क्या इसी तरह दो-दो चार्जशीट पाए निदेशक कार्मिक उत्पादन निगम रहे संजय तिवारी को सजा के तौर पर 33% की पेंशन कटौती की जायेगी या फिर पहले की तरह सजा के नाम पर सिर्फ 3% की कटौती कर उपहार दिया जाएगा.