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पूर्णकालिक वित्त नियंत्रक के बिना चल रहा यूपी का कृषि विभाग, वित्त नियंत्रक राय को नहीं रास आ रहा कृषि विभाग

#प्रमोशन और पोस्टिंग में पारदर्शिता की मुख्यमंत्री के ऐलान को तरजीह नहीं दे रहे अधिकारी.
#ट्रान्सफर के बाद भी राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में ही लगभग एक दशक से जमे हैं वित्त सेवा के अधिकारी.
#कृषि जैसे संवेदनशील विभाग के पास नहीं है पूर्णकालिक वित्त अधिकारी, जबकि किसान आंदोलन चल रहा है और कृषि विभाग की भूमिका है महत्वपूर्ण.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रमोशन और पोस्टिंग मे पारदर्शिता और स्पष्टता बरतने के निर्देश देने और मुख्य सचिव की सख्ती के बावजूद सरकार की मंशा को धता बताते हुए कृषि विभाग और राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय जैसे दो संवेदनशील विभागों में वित्त नियंत्रक की कुर्सी एक ही अधिकारी के पास होना जहां इन दिनों चर्चा का विषय बना है वहीँ यह अफसरशाही की उदासीनता का परिचायक भी है.

सरकार भले ही किसानों की आय दुगुनी करने के उपायों को लागू करने के लिए प्रयत्नशील हो और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पीएम किसान सम्मान निधि और “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” जैसी योजनाएं शुरू हो चुकी हो, लेकिन अधिकारियों की संजीदगी को समझने के लिए यह उदाहरण मौजूं है कि जिस वित्त नियंत्रक रमेश चन्द्र राय की तैनाती कृषि विभाग में करने और राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में विमल कुमार को वित्त नियंत्रक बनाए जाने का आदेश अपर मुख्य सचिव वित्त द्वारा किया जा चुका है वह अभी भी महीनों बीत जाने के बाद भी वहीँ बना हुआ है. न जाने ऐसा क्या हुआ कि राय को चुनाव आयेाग कार्यालय से अभी तक छुटकारा नहीं मिल पाया है. या लगातार लंबे समय तक एक ही कार्यालय में जमे रहने के कारण वे खुद किसी मोहपाश में बंधे हैं, यह अभी तक एक पहेली ही है.

बहरहाल सितम्बर में लागू किए गए नए कृषि कानूनों के विरोध का राजनीतिक शक्ल अख्तियार करना सत्ता पक्ष के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है और केन्द्रीय मंत्री तक को किसानों के मुद्दे पर सरकार के संवेदनशील होने की बात दोहरानी पड़ रही है. लेकिन हकीकत में जिस कृषि विभाग पर सरकारी दावों और योजनाओं को जमीन पर उतारने और किसानों में भरोसा पैदा करने का दारोमदार है वहां इस प्रकार की ढिलाई कई तरह के सवाल खड़ा करती है.

सूत्रों की माने तो लगभग एक दशक से राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय में जमे रमेश चन्द्र राय की सूबे के पूर्व राज्य निर्वाचन अधिकारी रहे एक अधिकारी से नजदीकी और शासन में बैठे लोगों का वरदहस्त इसकी एक बड़ी वजह है. क्योंकि हालिया संपन्न विधान परिषद चुनावों के मद्देनजर इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि चुनाव जैसे संवेदनशील समय पर राज्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय को पूर्णकालिक वित्त नियंत्रक मिल जायेंगे, पर यह हो न सका. लेकिन किसान आंदोलन की आंच में अपनी राजनीति की रोटी सेंकने की विपक्षी दलों की कवायद के साथ ही राय के अपने मूल तैनाती स्थल पर बैठाए जाने की चर्चा ने फिर से जोर पकड़ा है लेकिन देखना होगा कि जिम्मेदारों द्वारा मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप क्या कदम उठाया जाता है.

afsarnama
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