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भ्रष्टाचार पर रेणुका कुमार का प्रहार, सूबे के आन्तरिक लेखा निदेशालय में हड़कंप

#वित्त विभाग के अधीन है निदेशक, आन्तरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा विभाग, 20-25 वर्षों से एक ही जगह जमे लेखा कर्मियों का नहीं होता ट्रांसफर.

अफ़सरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शी व्यवस्था की हिमायती भले हो लेकिन वित्त विभाग से संबंधित आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय की कार्यशैली सरकार की इस मंशा से इत्तफाक नहीं रखती है. निदेशक, आन्तरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा को सूबे के सभी सरकारी विभागों में तैनात अधीनस्थ लेखा संवर्ग के लेखाकारों और ऑडीटरों और सहायक लेखाधिकारी आदि के नियुक्ति प्राधिकारी घोषित करने के पीछे सरकार की मंशा भले ही पारदर्शी व्यवस्था स्थापित करने की रही हो लेकिन ट्रांसफर पोस्टिंग में मनमाने तरीकों और भ्रष्टाचार के लिए चर्चा में रहने वाले इस विभाग में अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा रेणुका कुमार का 23 जून का पत्र इन दिनों काफी चर्चा में है. सूबे की वित्तीय व्यवस्था की कमियों को टटोलने वाले विभाग आंतरिक लेखा को लिखा गया यह पत्र वर्षों से चली आ रही इस बीमारी को समझने के लिए काफी है. 

अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा रेणुका कुमार का पत्र

आंतरिक लेखा में स्थानान्तरण को लेकर 23 जून 2021 को अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा रेणुका कुमार द्वारा आंतरिक लेखा परीक्षा के निदेशक को लिखे गये पत्र की भाषा इंगित कर रही है कि यह मर्ज पुराना है और बीमारी को दूर करने के लिए बड़े ऑपरेशन की जरूरत है. रेणुका कुमार ने शासन से पत्र भेजते हुए यह निर्देश दिया कि बेसिक शिक्षा विभाग में ऐसे सहायक लेखाकार, लेखाकार, संप्रेक्षक और वरिष्ठ संप्रेक्षक जो एक ही स्थान पर काफी अरसे से जमे हैं, उनका स्थानांतरण अनिवार्य रूप से ठहराव के क्रमागत अवरोही क्रम से किया जाए.

अपर मुख्य सचिव का यह पत्र नजीर मात्र है आज कमोबेश यही स्थिति हर विभाग में बनी हुई है. बेसिक शिक्षा के अलावा कृषि, खाद्य रसद, उद्यान, ग्राम विकास और ग्रामीण अभियंत्रण जैसे कई विभाग इस फेहरिस्त में शामिल है. जहां सहायक लेखाकार से लेखाकार के पद पर प्रमोशन पाने के बाद भी जुगाड़ के बल पर कार्मिक टिके हुए हैं. और यह सवाल बरकरार है कि अपनी जमी-जमाई टेबल को छोड़कर कोई जाना नहीं चाहता तो लेखा संवर्ग की बेहतरी के लिए गठित किए गए आंतरिक लेखा तथा लेखा परीक्षा निदेशालय मौन क्यों है?

आए दिन सरकारी विभागों में कर्मचारियों और लेखाकारों के आय से अधिक संपत्ति जमा करने के प्रकरण सामने आते रहे हैं और एक ही जगह पर जमे रहकर अनियमितता और भ्रष्टाचार के कारनामे को अंजाम दिए जाने की खबरें सुर्खियां बनती रही हैं, लेकिन फिर भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. अब देखना यह होगा कि रेणुका कुमार की पहल क्या कुछ रंग लाती है या फिर हमेशा की तरह पूरा प्रकरण केवल कागजी बनकर रह जाएगा.

सूबे में ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए प्रायः विवादों में रहने वाले वित्त विभाग से संबंधित आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा निदेशालय में फिलहाल सारी प्रक्रिया पर धुंध के बादल छाए हुए हैं. सरकार की पारदर्शी व्यवस्था के बावजूद किसी को पता नहीं है कि किस मानक के आधार पर किसका ट्रांसफर किया जाएगा और किसका नहीं.

आलम यह है कि कोई 25 वर्षों से एक विभाग में जमा है तो कोई एक सत्र में दो तीन बार ट्रांसफर का आनंद लेने में कामयाब हो जाता है. किस पद के लिए किस विभाग में रिक्तियां हैं और उनके समायोजन के मानक क्या हैं, यह केवल निदेशालय के बाबुओं और अधिकारियों को ही पता रहता है. सेटिंग, गेटिंग और नॉट डिस्टर्बिंग एलाउंस की बातें इस महकमे के चक्कर काट रहे लोगों के बीच चटखारे लेकर सुनी और सुनाई जाती हैं. अन्य विभागों की तरह तैनाती के स्थान का विकल्प देने की प्रथा इस निदेशालय में नहीं है जबकि सरकार के अन्य विभागों में तैनाती के लिए स्थान चयन का विकल्प प्रदान किया गया है. इस विकल्प के अलावा भी वरिष्ठता और एक ही कार्यालय या विभाग में तैनाती की अवधि जैसे तथ्यों को भी अगली तैनाती के लिए महत्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जाता रहा है.

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