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यूपी में मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े लोगों पर सरकार के फैसलों की मार, छिनती रोजी के चलते रोटी का संकट

#मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े शीर्ष के संपन्न व्यवसायियों को सरकार का संरक्षण, इस व्यवसाय से जुड़े छोटे व मझले लोगों को पहले मानकों के आधार पर बाहर करने की कोशिश, लेकिन कोर्ट से राहत.

#कोर्ट से राहत मिलने के बाद सरकार का नया पैतरा, परिवहन आयुक्त के आदेश से फिर खड़ा हुआ वही संकट.

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : उत्तर प्रदेश का ट्रांसपोर्ट विभाग बीते कुछ दिनों से अपने पीपीपी माडल के फैसलों को लेकर काफी चर्चा में है. प्रदेश के कुछ बस अड्डों को पीपीपी माडल पर देने को लेकर ट्रांसपोर्ट यूनियन हड़ताल पर जाने का फैसला, तो बीते दिनों गोमती नगर में परिवहन निगम की एक जमींन का मामला भी काफी चर्चित रहा था. इसके आलावा अब सरकार ने मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े कुछ संपन्न लोगों को मार्केट में बनाये रखने के लिए मझोले और छोटे व्यवसायियों को येन केन प्रकारेण मार्केट से बाहर करने का मन बना लिया है. दिनांक 25.10.2024 को रिट संख्या WRIT-A NO-11366 off 2023 के माध्यम से इन मझोले और छोटे व्यवसायियों को राहत मिली तो परिवहन आयुक्त ने 03 अक्टूबर को शासन से अनुमति मिले बगैर इस व्यवसाय से जुड़े  बड़े वर्ग के पक्ष में आदेश पारित कर अपनी पुरानी मंशा को अंजाम दे दिया जिससे मझोले और छोटे व्यवसायियों में काफी रोष है.

यूपी परिवहन आयुक्त का जारी आदेश ..

“सबका साथ सबका विकास” का नारा देने वाली भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार का ट्रांसपोर्ट विभाग किस तरह से सुरक्षा और पारदर्शिता के नाम पर कुछ मुट्ठी भर लोगों की मुट्ठी भरने के लिए नीति निर्धारित कर उसी के एक बड़े प्रतिस्पर्धी वर्ग के हितों को दरकिनार कर रहा है. उसको कोर्ट से मिली राहत के बाद परिवहन आयुक्त के उस आदेश से लगाया जा सकता है जिससे मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े बड़े व संपन्न व्यवसायियों के ही हितों की रक्षा हो रही है. इससे “बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाती है, वाली कहावत चरित्रार्थ हो रही है. बड़ा सवाल यह है कि सरकार द्वारा 2023 में पीपीपी माडल पर स्थापित किये गये प्रत्यायन चालन केंद्र की व्यवस्था उन्हीं बड़े मोटर ट्रेनिंग संचालकों के हाथ में होने से वर्षों से मध्यम व छोटे स्केल पर मोटर ट्रेनिंग के काम में जुटे लोगों के हितों की रक्षा कैसे होगी जबकि वह प्रतिस्पर्धी हैं.  

“मानक संचालन प्रक्रिया (SOP 2023)”

बताते चलें कि सरकार द्वारा 2023 में पीपीपी माडल पर स्थापित किये गये प्रत्यायन चालन केंद्र की व्यवस्था को लाने के बाद, पूर्व से संचालित मोटर ट्रेनिग स्कूलों को व्यवसाय से बहार करने के उद्देश्य से “मानक संचालन प्रक्रिया (SOP)” लायी गयी थी, जिसमें मानकों को काफी सख्त कर दिया गया था. मानकों में बदलाव को लेकर मामला न्यायालय तक गया और सरकार के फैसले पर उच्च न्यायालय ने रोक लगाई.  

मोटर ट्रेनिंग ओनर्स एसोशिएसन की दायर याचिका पर कोर्ट के आदेश की कॉपी

मोटर ट्रेनिंग स्कूल के व्यवसाय से जुड़े लोगों में सरकार की 2023 में पीपीपी माडल पर प्रत्यायन चालन केंद्र की व्यवस्था लाने के बाद दो वर्ग बन गया. एक धड़ा वह हुआ जो हर तरह से सुविधा संपन्न रहा और जोकि पूर्ण व्यवसायी रहे और इनको इस फील्ड का कोई विशेष अनुभव नहीं रहा है, यानी बड़े व्यवसायी. और दूसरा धड़ा वह रहा जोकि पुराने मानकों को पूरा करते हुए वर्षों से मोटर ट्रेनिंग के इस व्यवसाय जुड़े रहे. सरकार की 2023 में लायी गयी पीपीपी माडल की यह पालिसी मोटर ट्रेनिंग व्यवसाय से जुड़े शीर्ष के कुछ मुट्ठी भर नए व अनुभवहीन लोगों के लिए रही जबकि इस व्यवसाय से जुड़ा मध्यम और निचला वर्ग काफी प्रभावित हुआ और उसके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया. बताते चलें कि वर्ष 2023 में जब सरकार द्वारा एक नयी “मानक संचालन प्रक्रिया (SOP)” लाये जाने के पहले उत्तर प्रदेश में करीब 900 मोटर ट्रेनिंग स्कूल संचालित रहे लेकिन नयी SOP के आने के बाद 2024 में इनकी संख्या प्रदेश में करीब 200 ही बची है. और अब पीपीपी माडल पर प्रत्यायन चालन केंद्र (ADTC) की स्थापना से इन पर भी तकनीकी रूप से संकट आ गया है.                

सरकार की प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता को दर्शा, लायी गयी इस नीति से प्रभावित होने वाले मध्यम और निचले वर्ग के मोटर ट्रेनिग स्कूल संगठन ने कोर्ट का रुख किया था जहाँ से उन्हें राहत मिली और उनको पुरानी मानकों के आधार पर व्यवसाय करने का अधिकार कोर्ट ने सुरक्षित रखा. लेकिन पहले मानकों में बदलाव कर चंद शीर्ष को संरक्षित रखने का काम करने वाली सरकार ने एक दूसरा रास्ता निकाला जिससे इन मध्यम और निचले स्तर के व्यवसायियों को प्रतिस्पर्धा से बाहर किया जा सके. 03 अक्टूबर को विभाग के परिवहन आयुक्त ने एक आदेश जारी कर इन मध्यम और निचले स्तर के मोटर ट्रेनिंग स्कूल से प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों को प्रत्यायन चालन केंद्र (ADTC) पर जाकर ड्राईविंग टेस्ट देना अनिवार्य कर दिया. जबकि केंद्र सरकार की नियमावली में इस तरह का कोई प्रावधान नहीं है. यहाँ पर यह भी जानना जरूरी है कि सरकार या फिर अधिकारियों द्वारा इसको लागू करने के लिए इतनी जल्दी दिखाई गयी कि वह शासन को भेजी गयी मुख्यालय स्तर पर इसके लिए गठित समिति के निर्णयों के अनुमोदन का इन्तजार नहीं कर सके. और शासन से औपचारिक अथराईजेशन प्राप्त होने से पहले ही जल्दबाजी में प्रत्यायन चालन केन्द्रों (ADTC) को ड्राईविंग टेस्ट के लिए औपबंधित रूप से परिक्षण क्षमता कार्य संचालन हेतु अधिकृत कर दिया.   

गौरतलब है कि मोटर ड्राईविंग के लिए यह टेस्ट की व्यवस्था अभी तक सरकार के जिला परिवहन कार्यलयों के पास रही थी जिसको अब सरकार ने बदलकर व्यवसाय से जुड़े प्रतिस्पर्धीयों को दे दिया गया है. जिससे यह साफ़ है कि सरकार की मंशा पारदर्शिता के साथ प्रतिस्पर्धा कराने का नहीं बल्कि व्यवसाय से जुड़े माध्यम व निचले स्तर के लोगों को मार्केट से बाहर कर, इस वर्ग के प्रतिस्पर्धी एक संपन्न वर्ग को मार्केट में स्थापित करना है.                     

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