कानाफूसी
लखनऊ : सूबे की शीर्ष अफसरशाही द्वारा मनाया जाने वाला “आईएएस वीक” इस बार कुछ ज्यादा ही चर्चा में रहा. करीब 2 महीने पहले आईएएस वीक के लिए मुख्यमंत्री द्वारा मिले समय के निरस्त होने व आईपीएस वीक में शामिल होने को लेकर काफी चर्चा रही थी. और इसको सीएम की शीर्ष अफसरशाही को लेकर नाराजगी के तौर पर देखा जा रहा था.
इसके अलावा इसबार सामाजिक विषमता की खाई भी आईएएस वीक के इस कार्यक्रम में देखने को मिली है. पहले इन कार्यक्रमों का प्रमुख हिस्सा रहने वाले कई चेहरे इस बार नदारद रहे. आईएएस वीक के अंतिम दिन हुए मैच ने पिछले 2 दशक में पहली बार परम्पराओं को तोड़ा और आईएएस इलेवन ने जीत दर्ज किया.
१. आईएएस वीक का पहला दिन “प्रोन्नत आईएएस बनाम सीधी भर्ती आईएएस”
वीक का पहला दिन प्रोन्नत आईएएस बनाम सीधी भर्ती रहा तो दूसरा दिन भी काफी मायूसी भरा रहा. कभी परिवार के साथ डिनर और लंच में शिरकत करने वाले अफसरों में से कई तो शामिल ही नहीं हुए और शामिल भी हुए तो अकेले. चल रही चर्चा के अनुसार पहले दिन की आपसी खटास का असर दूसरे दिन यह रहा कि आईएएस एसोसिएशन ने अपनी एजीएम में फिर से उसी मांग को दोहराया जिसको लेकर अभी चंद दिन पहले हंगामा हुआ था और खुद मुख्य सचिव को आगे आकर सफाई पेश करनी पड़ी थी.
२. आईएएस वीक का दूसरा दिन “पहले दिन की नाराजगी का असर दिखा डिनर और लन्च में”
हालांकि इस मांग को आईएएस एसोसिएशन पहले भी करता रहा है लेकिन इसको चर्चाओं में सीएम के उस आदेश से भी जोड़कर देखा जा रहा है जिसने वीक का सारा कार्यक्रम खराब कर दिया था. इसके अलावा इस झगड़े का असर वीक के दूसरे दिन शाम को महामहिम द्वारा दिए गए डिनर में इनकी संख्या बल को देखकर लगा. चर्चा के अनुसार सीएम के आदेश के बाद जिलों में तैनात तमाम अफसर पहले ही वापस जा चुके थे लेकिन कई अफसरों ने राजधानी में रहते हुए भी डिनर में जाने से परहेज किया.
३. आईएएस वीक का तीसरा और अंतिम दिन “खेल का मैदान रहा सूना, दिखा फीकापन”
वीक का अंतिम दिन जोकि परम्परा के अनुसार आईएएस और आईपीएस क्रिकेट मैच के साथ समाप्त होता रहा है, वह भी इस झगड़े और सरकार की उदासीनता का शिकार हो गया. खेल के माहौल में पहले की तरह कोई जोश नहीं दिखा यह महज रश्मि बनकर रह गया. 22 खिलाड़ी और उनके कुछ परिवार तथा स्टाफ के अलावा नाममात्र के दर्शक और दो-चार पत्रकार मैदान में दिखे यानी माहौल एकदम फीका. हालांकि कमेंट्री कर रहे प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री एसपी गोयल ने अपने शब्दों से माहौल में थोड़ा गर्मी लाने की कोशिश की लेकिन वह भी नाकाफी रही. हमेशा से कमेंट्री में इन अफसरों की पत्नियों की सक्रीय भागीदारी देखी जाती रही थी जोकि इस बार नदारद रही. कमेंट्री में ही व्यवस्था को लेकर कमेन्ट किया गया कि इस मैदान में नौकरशाही की मजबूत टीम होने के बावजूद भी वह ब्यवस्था नहीं दिखाई पड़ रही है जोकि होनी चाहिए थी. इस स्टेडियम में मैच कराने के फायदे नहीं लिये गये. यदि मैच के दौरान स्कोर बोर्ड और कैमरे ऑन होते तो अच्छा होता.