Free songs
BREAKING

बढ़ा कनेक्शन, बढ़ा भ्रष्टाचार, यूपी की बिजली का हो रहा बंटाधार, वाह रे अलोक कुमार

#बिजली उत्पादन में फिसड्डी साबित हो रहे अलोक कुमार, करछना जैसी परियोजना को लाने में हो रहे फेल.

#भ्रष्टाचारियों पर नहीं लगा रहे लगाम, संविदा कर्मियों पर डंडा और संविदा पर चल रहे अफसर को दे रहे संरक्षण.

#पूर्व प्रमुख सचिव उर्जा संजय अग्रवाल जहां 2.5 साल में 4 नई यूनिट शुरू कराए वहीं अलोक कुमार अभी तक शून्य.  

#संविदा पर चल रहे चार्जसीटेड निदेशक को रिमूव करने के बजाय  पालने में हैं जुटे, अपने आचरण के चलते नहीं हुआ कन्फर्म.     

अफसरनामा ब्यूरो  

लखनऊ : सुशासन की दो सालों की सरकार में प्रदेश में सरकारी स्तर पर बिजली का उत्पादन एक भी यूनिट नहीं बढ़ा और पुराने बिजलीघर आउटडेटेड हो बंदी के कगार पर पहुंचने लगे, कर्ज की बिजली से सूबे को रोशन करने वाली सरकार बिजली पैदा करने वाली कंपनियों को भुगतान तक नहीं कर पा रही है. वहीँ ऊर्जा विभाग में भ्रष्टाचार का बोलबाला है और अफसरों का मनमाना रवैया बरकरार है जिसपर लगाम लगाने में अलोक कुमार फेल साबित हो रहे हैं. आगरा डिस्काम के निदेशक कार्मिक ने अपने पुत्र को ही करीब 5 करोड़ का ठेका दे दिया जिसमें निदेशक की भी भूमिका संदिग्ध है, तो उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को बचाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा अलोक कुमार ने और जब मजबूर होकर चार्जसीट देना पडा तो उसका जवाब देने के लिए संजय तिवारी को भरपूर मौका दिया जा रहा है ताकि वह यहाँ भी अपना हस्त कौशल दिखा सके. उत्तर प्रदेश में बिजली के कनेक्शन बढ़े, बचत के चलते खपत घटी और सप्लाई भी बढ़ी फिर भी बिजली कंपनियों का घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है.

प्रमुख सचिव ऊर्जा अलोक कुमार, शहरों और गाँवों में बिजली की ज्यादा सप्लाई करके, उज्ज्वला योजना के तहत सर्वाधिक कनेक्शन देने का सर्टिफिकेट लेकर भले ही फूलकर कुप्पा हो रहे हों और वाहवाही बटोर रहे हों, लेकिन निजी बिजली कंपनियों के बढ़े भुगतान और पूर्व प्रमुख सचिव संजय अग्रवाल की तुलना में नई परियोजनाओं को चालू कराने में फिसड्डी ही साबित हो रहे हैं. इसके पहले ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव रहे संजय अग्रवाल ने 2.5 साल में 4 नई परियोजनाओं को स्वीकृत करा उसको चालू कराया इसके विपरीत अलोक कुमार को भी इसी कुर्सी पर विराजमान हुए करीब 2 साल होने को हैं लेकिन किसी नई परियोजना को स्वीकृत कराना तो दूर पहले से चल रही परियोजनाऐ भी बंद होने की कगार पर आ गयी हैं. करछना जैसी परियोजना जोकि प्रदेश के खाते में आनी थी, उसको लाने के लिए भी इनके स्तर से लापरवाही की गयी. इसके अलावा समस्त  निर्माणाधीन परियोजनाएं भी अपने तय समय से काफी देरी से चल रही हैं. जिसमें अलोक कुमार की ढिलाई साफ़ जाहिर है और इसके चलते परियोजनाओं की लागत भी बढ़ रही है, जानकारों की मानें तो बढती लागत के लिए जिम्मेदार इनकी नीतियाँ हैं.   

भ्रष्टाचारियों को संरक्षण की मिशाल संविदा पर चल रहे निदेशक कार्मिक संजय तिवारी के रूप में पेश कर चुके अलोक कुमार के कुप्रबंधन का परिणाम यह है कि निजी बिजली कंपनियों से खरीदी गई बिजली का भुगतान नहीं किए जाने के चलते आगामी कुछ महीनों में सूबे में बिजली की सप्लाई का संकट आ सकता है. जानकारों की मानें तो इसे बिजली विभाग के मुखिया आलोक कुमार के प्रबंधन की विफलता ही माना जाएगा की गांव और शहरों में बिजली की सप्लाई भले ही वाहवाही लेने के चक्कर में बढ़ा दी हो लेकिन बिजली कहां से आएगी इस पर गंभीर चिंतन नहीं किया जा रहा है.

केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के प्राप्ति (पीआरएएपीटीआई) पोर्टल पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार दिसंबर 2018 तक जीएमआर व अडानी समूहों सहित निजी क्षेत्र की 12 बिजली निर्माता कंपनियों और सार्वजनिक क्षेत्र की एनटीपीसी जैसी कंपनियों का करीब 41,730 करोड़ रूपये का भुगतान राज्यों की विद्युत वितरण कंपनियों पर बकाया था, जो कि अब बढ़कर लगभग 60 हजार करोड़ तक पहुंच चुका है. पोर्टल के अनुसार इसमें उत्तर प्रदेश पर6497 करोड़ रुपए का बकाया है. धन की कमी के चलते उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले आवश्यक कोयला भंडार को भी यह कंपनियां जमा नहीं कर पा रही हैं जिसके चलते बिजली का संकट गहरा सकता है. पोर्टल के मुताबिक यूपी को बिजली कंपनियों का भुगतान चुकाने में करीब 544 दिन का समय लग सकता है.

इसके पहले भी आलोक कुमार अपने कई अजीबोगरीब फैसलों को लेकर चर्चा में रहे हैं. तहसीलों में कार्यरत संविदा कर्मियों की कथित शिकायत के बाद उनका अंतर्ताहसील के तबादले का आदेश दिया था जबकि मजे की बात यह है कि ये संविदा कर्मी पावर कारपोरेशन के कर्मचारी हैं ही नहीं फिर भी उनके तबादले का आदेश आलोक कुमार द्वारा जारी कर दिया गया था. दूसरी तरफ संविदा पर ही चल रहे उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को भरसक बचाने का प्रयास आलोक कुमार द्वारा किया गया जोकि इस बात से ही समझा जा सकता है कि ओबरा अग्निकांड के बाद गठित जिस गुच्छ कमेटी की रिपोर्ट पर एमडी पांडियन ने 1 को सस्पेंड किया और 2 को चार्जसीट देकर उनका साईड लाइन किया, उसी गुच्छ रिपोर्ट में दोषी करार किये गए संविदा पर चल रहे उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को आलोक कुमार द्वारा अंत तक बचाने का काम किया गया. लेकिन “अफसरनामा” की खबर के दबाव के चलते 28 फरवरी को चार्जसीट देना पडा था.

चूंकि संजय तिवारी का पद निदेशक का होने के नाते शासन का था इसलिए फैसला भी आलोक कुमार को लेना था. अब सवाल यह है कि जब निगम का प्रबंध निदेशक समय से फैसला लेकर जांच रिपोर्ट के आधार पर दोषियों को सजा दे दिया तो शीर्ष पर बैठे अलोक कुमार को संजय तिवारी को चार्जसीट देने में देरी के पीछे क्या मंशा थी. अलोक कुमार का संजय तिवारी प्रेम अभी तक बरकरार है, अलोक कुमार संविदा पर चल रहे और चार्जसीट पाए संजय तिवारी को निदेशक कार्मिक के पद पर अभी भी बनाये रखे हैं जोकि अतार्किक, सिद्धांतहीन और नियम विरुद्ध है. इसके अलावा 28 फरवरी को चार्जसीट पाए संजय तिवारी से 15 दिन के भीतर जवाब लेने के बजाय उनको मोहलत दी जा रही है वह भी पूरे 3 हफ्ते यानी कुल मिलाकर जवाब देने का समय 36 दिन. संजय तिवारी को चार्जसीट 28 फरवरी को दिया गया जिसका जवाब 15 दिन में देना होता है, लेकिन संजय तिवारी ने जवाब के लिए और समय मांगा जिसपर जांच अधिकारी चंद्रमोहन द्वारा 21 दिन का और समय दे दिया गया यानी अब 15 दिन पहले के और 21 दिन का और कुल 36 दिन का समय जवाब देने के लिए मिला है. इतना लंबा समय जवाब के लिए दिया जाना एकदम अब्यवहारिक है और तमाम तरह के सवाल खड़े करता है कि यह सब संजय तिवारी को बचाने की एक नई कवायद है, पहले प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार चार्जसीट देने में हीलाहवाली करते रहे और अंत में दबाव के बाद चार्जसीट रिटायरमेंट के अंतिम दिन दिए और अब जवाब दाखिल करने के लिए आरोपी के मनमाफिक समय देकर उसको बचने का मौका दिया जा रहा है.   

afsarnama
Loading...

Comments are closed.

Scroll To Top