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चुनाव निपटे पर आरोपी निदेशक संजय तिवारी नही निपटा, प्रोबेशन पर है फिर भी नहीं हटा

#चार्जशीट मिले 3 माह पूरे होने पर भी निदेशक कार्मिक संजय तिवारी पर कार्यवाही नहीं.

#मनबढ़ कार्मिक निदेशक अब तबादला सीजन में वारे न्यारे की तैयारी में.

#ओबरा में 5 सौ करोड़ से ज्यादा के सरकारी धन को स्वाहा करने वालों में से एक संजय तिवारी पर बरस रही अलोक कुमार की कृपा.

#एमडी पांडियन के ट्रान्सफर हुए डॉक्टर को अपनी पुरानी जगह रखने के निर्णय को दरकिनार करने की किया कोशिश.

#संजय तिवारी किस तरह संवेदनहीन हैं इसका उदाहरण Panki से है. जहां एक कर्मचारी को इनके दबाव के चलते stretcher पर रिलीव होना पड़ा था.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : यूपी के बिजली विभाग में जब तक है अलोक, दागी निदेशक संजय तिवारी को नहीं कोई शोक. शुचिता, पारदर्शिता और ईमानदारी की हामी योगी सरकार को हाल ही में निपटे लोकसभा चुनाव में प्रदेश की जनता ने ईनाम से नवाजा है. हालांकि इसी सरकार में दागी अफसरों पर उनके सरपरस्तों की कृपा खुल कर बरस रही है. कड़क योगी के जबर ऊर्जा मंत्री के रहते प्रोबेशन पर रहने वाला दागी कार्मिक निदेशक, विद्युत उत्पादन निगम न केवल अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब है बल्कि तबादला सीजन में वारे न्यारे करने को भी आमादा है.

प्रोबेशन पर चल रहे और ओबरा अग्निकांड में चार्ज शीटेड उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को चार्जशीट मिले तीन माह पूरे हो गए लेकिन कार्यवाही के नाम पर अभी केवल फाईल टेबल दर टेबल दौड़ रही है. जोकि यह समझने के लिए काफी है कि प्रमुख सचिव ऊर्जा द्वारा संजय तिवारी को इस तबादला सीजन को निपटाने का मौका दिया जा रहा है. “अफसरनामा” इस बात का जिक्र अपने पहले के अंक में कर भी चुका है जोकि अब सच साबित हुआ है. जिस अग्निकांड में सरकार के 500 करोड़ से ज्यादा स्वाहा हो गए ऐसे गंभीर प्रकरण में ऊर्जा विभाग के मुखिया की यह गंभीरता अब सवाल खड़े करती है और सीएम योगी और प्रधानमन्त्री मोदी के स्वच्छ प्रशासन के मंसूबों को धता बता रही है.

इसके पहले भी संजय तिवारी पर प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार की मेहरबानियाँ खूब रही हैं. एक साल के लिए संविदा पर नियुक्त किये गए और अभी तक संविदा पर चल रहे संजय तिवारी को चार्जशीट देने के बाद पहले तो उनको जवाब देने की मोहलत 15 दिन से बढाकर 35 दिन की कर दी गयी. और अब जब उनका जवाब दाखिल हो गया है तो प्रकरण को केवल प्रक्रियाओं में उलझाया जा रहा है और उचित कार्यवाही नहीं की जा रही है. प्रमुख सचिव ऊर्जा अलोक कुमार का हंटर केवल संविदा पर रखे गए लाईनमैंन के अंतरतहसील तबादले पर ही चलता है जबकि वह कारपोरेशन के कर्मचारी ही नहीं हैं.

वैसे तो निदेशक कार्मिक के तौर पर संजय तिवारी के कई कारनामे है, और कई मर्तबा तो प्रबंध निदेशक को खुद अपने निर्देशों के अनुपालन के लिए संज्ञान में आने पर दबाव डालना पड़ा है. माना यह जा रहा है कि इन सब के पीछे प्रमुख सचिव ऊर्जा आलोक कुमार का वह हाथ है जिसके चलते संजय तिवारी अभी तक अपने मनमाने अंदाज को रोक नहीं पा रहा है. मिली जानकारी के अनुसार विगत दिनों संजय तिवारी ने डॉक्टरों की तैनाती को लेकर प्रबंध निदेशक के दिए गए आदेश को भी दरकिनार कर दिया था. जिसके बाद प्रबंध निदेशक के संज्ञान में आने और उनके टिप्पड़ी करने पर पुनः निर्देश के अनुरूप कार्यवाही किया गया. पूर्व में भी “अफसरनामा” द्वारा संजय तिवारी के कारनामों को उठाया जाता रहा है, चाहे वह हरदुआगंज में तैनात कल्याण अधिकारी मान सिंह को रिलीव करने को लेकर हो या फिर अपने खासुलखास अभियंता रामजन्म यादव को लेकर हो.

उदाहरणों पर नजर डालें तो यह साफ हो जाता है कि संजय तिवारी के लिए निदेशक कार्मिक का पद कर्मचारियों अधिकारियों के कल्याण के लिए नहीं बल्कि खुद की तिजोरी भरने का एक अड्डा बन गया है. संजय तिवारी पर यह प्रमुख सचिव ऊर्जा का ढीला ढाला रवैये के आधार पर संजय तिवारी को आने वाले दिनों में अलोक कुमार द्वारा क्लीन चिट दिया जाता है तो कुछ आश्चर्य नहीं होगा. संजय तिवारी को लेकर शक्ति भवन में चल रही चर्चाओं की मानें तो डाइरेक्टर कार्मिक तिवारी बिना पैसे लिए कोई काम नहीं करते हैं और जो पैसे दे देता है उसका गलत काम भी कर देते हैं. पैसे लेकर गलत ढंग से करोड़ों रुपये की राशि का भुगतान करने के लिए इनको जांच भी की गयी है और चार्जशीट भी दी जा रही है.

अब मैं जो जानकारियां साझा करने जा रहा हूं वह हमारे पूर्व कथन को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि प्रमुख सचिव ऊर्जा निदेशक कार्मिक संजय तिवारी को एक तबादला सीजन को और खेलने का मौका देना चाहते हैं. मजेदार बात यह है कि संजय तिवारी के मनमाना रवैये से आहत DGM दुर्गाशंकर राय के इस्तीफे के बाद भी निगम के जिम्मेदार सबक नहीं ले रहे जबकि श्री तिवारी के कारनामों की फेहरिस्त लम्बी है.

संजय तिवारी के कारनामों के कुछ उदाहरण जोकि इनकी कार्यशैली को समझने के लिए काफी हैं  –

  1. पनकी पावर प्लांट से सभी अभियंता ट्रान्सफर कर दिए गए परंतु कुछ लोग जोकि इनके करीबी रहे वे अपनी जगह पर ही रहे, इतना ही नहीं दागी लोगों को प्रमोशन भी दे दिया गया. जैसे देवेंद्र कुमारDGM को दो बार अनियमितता करने के लिए सजा मिल चुकी है और इनकी तीन वेतन वृद्धि रोकी गयी है. लेकिन यह तिवारी के झांसी पोस्टिंग के समय से ही इनके कृपा पात्र रहे हैं और हर फन के माहिर है जिससे अभी भी वही बने हुए हैं. इतना ही नहीं, इनको XEN होते हुए भी DGM का कार्य भार भी देकर प्रोन्नति दी गयी है. यह सब तभी संभव है जब Sanjai Tiwari निदेशक कार्मिक हों.
  2. विवेक अस्थाना उत्पादन निगम के हैं ही नहीं फिर भी Panki में इनकी कृपा से लगभग30 सालों से जमे हुए हैं क्यूंकि अस्थाना का घर कानपुर मे है और वह तिवारी को हर तरह से खुश रखने में माहिर हैं. जबकि निगम के बाहर का एक व्यक्ति भी निगम मे 2013 के बाद नही है.
  3. एम चतुर्वेदी भी दो वेतन वृद्धि रोके जाने के सजायाफ्ता हैं लेकिन तिवारी की कृपा से कई खंडों के कार्यभार इन्हे दिया गया है जबकि इन्हे भी वहां से अन्य लोगों के साथ ही ट्रान्सफर हो जाना चाहिए था.
  4. एस पी यादव जो तिवारी के चहेते हैं, परिछा से नियम तोड़कर और उस समय के एमडी को अंधेरे में रखकर अनपरा ट्रान्सफर कर दिया. राम जन्म यादव, कालिका सिंह, एल बी सिंह आदि के ट्रान्सफर केवल30 अप्रैल तक रोक पर थे लेकिन ये सभी मलाईदार हैं और तिवारी जी के लिए पूरक रहे हैं, तो इन्होने कभी उन्हे रिलीव करने का नाम नहीं लिया. जबकि प्रबंध निदेशक के आदेश के बावजूद डाक्टर्स को रिलीव करने की जल्दी थी. दुर्गा शंकर राय की व्यक्तिगत समस्याएं इनके लिए बेमानी थीं.
  5. संजय तिवारी किस तरह संवेदनहीन हैं इसका उदाहरण Panki से है. जहां एक कर्मचारी को इनके दबाव के चलते stretcher पर रिलीव होना पड़ा था. नियामों के अनुशासन से परे हटकर किसी को तुरंत रिलीव कराए तो किसी पर 4-4 साल तक कोई एक्शन नहीं, इन्हे उच्चाधिकारियों के निर्देशों का कोई सम्मान नहीं जैसा डॉक्टर्स के केस मे हुआ.
  6. संजय तिवारी निगम द्वारा अधिकारियों को भ्रमित कर अपने मनमानी काम कराने के भी उदाहरण मौजूद हैं. जवाहरपुर सरिया चोरी प्रकरण में दोषी तत्कालीन GM US Gupta को लखनऊ लाकर 3000 cr की परियोजना पर तैनाती को अटैच बता दिया था जोकि इनकी केवल स्वार्थपूर्ति और मनमानी कार्य संस्कृति की परिचायक है.
  7. अभी हाल में निगम के एमडी ने ट्रान्सफर हुए डॉक्टर को अपनी पुरानी जगह रखने का निर्णय लिया. निदेशक कार्मिक संजय तिवारी ने एमडी के कहने के बावजूद डॉक्टर्स का केस अनुमोदित नहीं कराया और धन उगाही करने की नीयत से सभी डॉक्टर्स से कहा कि तुरंत जॉइन करें. इनका कहना है कि जब डॉक्टर हमारे बीमार को ठीक करने के फीस जमा कराते हैं तो हमें भी अपने काम कराने के लिए पैसे दें. डॉक्टर्स अपनी परियोजना से रिलीव भी हो गए लेकिन जब इनके नई जगह पर जाने की जानकारी एमडी को पता चली  तब उन्होनेDirector से पूछा कि क्या हुआ जो इन्हे जॉइन करना पड़ रहा है. तब Director कार्मिक ने परियोजनाओं के GM को फोन करके जॉइनिंग रुकवाई. इतने भ्रष्ट अधिकारी को अलोक कुमार द्वारा बचाया जाना जिसके लिए अपने उच्च अधिकारियों के निर्देश भी अपने लाभ के लोभ मे बेमानी है, सवाल खड़े करता है.
afsarnama
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