#गोमती की बदहाली से जलशक्ति अभियान पर सवालिया निशान.
#बहुआयामी एवं बहुविभागीय प्रयासों को समेकित रूप से एक ही कार्ययोजना बनाया जाना जरूरी.
#केंद्र की नमामि गंगे जैसी महत्वपूर्ण परियोजना के सूबे के नोडल अफसर प्रमुख सचिव नगर विकास क्यों बने हैं लकीर के फ़क़ीर.
#जब योगी और मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में गाय और गंगा है तो ऐसे में गोमती के संरक्षण पर अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना क्यों नहीं.
#गोमती नदी पर क्या अभी तक खर्च हुए सैकड़ों करोड़ के परिणाम से वाकिफ नहीं जिम्मेदार अफसर जो अभी भी बदनाम जलनिगम के हवाले किया संरक्षण का कार्य.
विजय कुमार
लखनऊ : गोमती के संरक्षण में यूपी की अफरशाही लकीर की फकीर बनी हुई है. एनजीटी की कूड़ा प्रबंधन व अनुश्रवण समिति की 81 पेज की रिपोर्ट के बाद भी नहीं चेती अफसरशाही और मुख्य सचिव को खुद मैदान में उतरना पड़ा. जबकि प्रधानमंत्री मोदी और सूबे के मुख्यमंत्री योगी समस्याओं के निदान के लिए नये प्रयोग करते रहे हैं. केंद्र की मोदी सरकार ने जल शक्ति मंत्रालय बना दिया तो योगी ने संचारी रोग के रोकथाम के लिए स्वास्थ्य विभाग को नोडल भूमिका में रखते हुए 12 अन्य विभाग उसके सहयोग में लगा दिया है. सवाल यह है कि जब योगी और मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में गाय और गंगा है तो ऐसे में गोमती के संरक्षण पर अभी तक कोई ठोस कार्ययोजना क्यों नहीं उठाई गयी. क्यों वर्ष 1993 से चली आ रही घिसीपिटी व्यवस्था को ही अपनाया गया है. गोमती के रखरखाव का जिम्मा योगीराज में भी उसी भ्रष्ट जल निगम के हवाले है जिसके कारनामों और परिणामों से सभी वाकिफ हैं. बुधवार को जब जल शक्ति विभाग की यूपी में पहली बैठक, जल संचय को लेकर लोक भवन में होने जा रही है तो उम्मीद की जा सकती है कि गोमती के संरक्षण पर भी चर्चा जरूर होगी.
केंद्र सरकार की नमामि गंगे जैसी महत्वपूर्ण परियोजना के प्रमुख सचिव नगर विकास की हैसियत से मनोज कुमार सिंह सूबे के नोडल अफसर हैं और इनके पास नगर विकास जैसा विभाग भी है जिसके पास केंद्र की ही महत्वाकांक्षी योजना स्वच्छता मिशन की भी जिम्मेदारी है. इसके अलावा गोमती के रखरखाव और संरक्षण के लिए जरूरी विभागों में कईयों के मुखिया के रूप में काम करने का अच्छा खासा अनुभव भी प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार सिंह के पास है. जल निगम, ग्राम विकास जैसे अन्य विभागों के प्रमुख सचिव रहे व लम्बा अनुभव होते हुए भी मनोज कुमार सिंह के द्वारा कुछ इस तरह के उपाय गोमती संरक्षण के लिए अभी तक न किया जाना भी तमाम सवाल खड़े करता है जोकि सरकार की मनसा पर कुठाराघात जैसा है. गंभीरता व ठोस प्रबंधन के साथ यदि अफसर भी जागरूक हो जाएं तो शायद समस्याओं का समाधान किया जा सकता है और भ्रष्टाचार व धन के अपब्यय पर रोक लगाई जा सकती है.
चूंकि गोमती नदी में पानी बारिश के अलावा जमीनी स्रोतों से भी आता है ऐसे में स्वास्थ्य विभाग की ही तर्ज पर गोमती नदी के संरक्षण हेतु भूगर्भ जल विभाग को नोडल विभाग बनाकर उसके साथ सिंचाई,वन एवं पर्यावरण, ग्राम्य विकास, पंचायती राज, नियोजन, कृषि, वित्त, नगर विकास,उच्च शिक्षा, जल निगम, शारदा सहायक कमांड परियोजना, राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय, केंद्रीय और राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड,IITR, रिमोट सेंसिंग एप्लीकेशन सेंटर, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग व संस्कृति विभाग, इसके अलावा सभी 11 जिलों के डीएम व नगर आयुक्त जहां जहां से गोमती निकलती है को शामिल करके बहुआयामी एवं बहु विभागीय प्रयासों को समेकित रूप से एक ही कार्ययोजना के तहत यदि अमलीजामा पहनाया जाय तो नदी संरक्षण में सफलता मिल सकती है.
“अफसरनामा” ने “भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट, कहीं सरस्वती नदी न बन जाय गोमती” नामक शीर्षक से गोमती जल संरक्षण और उसकी साफ-सफाई को लेकर अपने पहले के अंक में एक मुद्दा उठाया था कि भूगर्भ जल से जलायमान होने वाली गोमती के जल स्रोतों के रखरखाव की जिम्मेदारी क्यों ना भूगर्भ जल विभाग के बैनर तले उन सभी विभागों को एक साथ लाकर एक कार्ययोजना के साथ मिलकर लुप्त होती गोमती नदी के संरक्षण और रखरखाव का काम किया जाय.
आज जब संचारी रोग की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वास्थ्य विभाग की अगुवाई में अन्य विभागों को साथ चल कर इस समस्या के समाधान के लिए साथ काम करने की योजना बनाई है. इस अभियान में स्वास्थ्य विभाग नोडल विभाग की भूमिका निभाते हुए 12 अन्य विभागों के साथ मिलकर मलेरिया, डेंगू,चिकनगुनिया, फाइलेरिया, काला-अजार तथा जापानी इन्सेफेलाइटिस जैसे रोगों की रोकथाम के लिए सभी जरूरी उपाय करेगा. इस अभियान में नगर विकास,दिव्यांगजन सशक्तिकरण, ग्राम्य विकास,महिला एवं बाल कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, पंचायतीराज, बेसिक शिक्षा,माध्यमिक शिक्षा, कृषि, पशुपालन,संस्कृति एवं सूचना विभाग सहयोग प्रदान कर रहे हैं. तो क्या यह सब गोमती संरक्षण के लिए नहीं हो सकता.
अब इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि पिछली सरकारों से चली आ रही व्यवस्था योगिराज में कायम है और वृक्षारोपण जैसे काम को वन विभाग के बजाय एलडीए को दे दिया जाता है तो जमीनी स्रोतों से जल निकालने और उसके रखरखाव का काम जलनिगम को दे दिया जाता है जबकि उसका काम केवल जलवितरण का है. इस तरह स्वास्थ्य विभाग की ही तर्ज पर संचारी बुखार की रोकथाम के लिए जो फार्मूला अपनाया गया है यदि उसको गोमती नदी के संरक्षण हेतु कर दिया जाता है तो कार्यों में गुडवत्ता आएगी और योजना की जमीनी हकीकत भी दिखेगी.
भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट, कहीं सरस्वती नदी न बन जाय गोमती
भूगर्भ जल से जलमग्न रहने वाली गोमती पर अस्तित्व का संकट, कहीं सरस्वती नदी न बन जाय गोमती