अफ़सरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश के योगी राज में भी वित्त विभाग अपनी करनी से बाज नहीं आ रहा है. सीएजी की ताजा रिपोर्ट जहां वित्त विभाग को आईना दिखा रही है, वहीं प्रशासनिक नजरिये से भी लचर इस विभाग में सत्र बीत जाने के बाद भी अभी तक तबादले की फाइल पर फैसला नहीं लिया जा सका है.
पिछले महीने मोदी सरकार ने भ्रष्टाचार पर सर्जिकल स्ट्राइक पार्ट-2 को अंजाम देते हुए वित्त सेवा के ग्रेड-ए स्तर के 43 अधिकारियों को भ्रष्टाचार और अनियमितताओं के मामलों में लिप्त पाये जाने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया, लेकिन उत्तर प्रदेश में स्थिती इसके ठीक उलट है. यहाँ सीएजी सरकार को आगाह कर रही है, मीडिया सरकारी महकमों में वित्तीय अनुशासन तहस नहस कर देने के प्रकरणों को संज्ञान में ला रहा है लेकिन हुक्मरान नाकामियों पर पर्दा डालने मे जुटे हैं.
जबकि ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी पार्ट-2 जैसे शीर्ष प्राथमिकताओं वाले आयोजनों में किये गये वादों और इरादों को पूरा करने के लिये राज्य में सख्त वित्तीय अनुशासन की जरूरत है. लेकिन ट्रांसफर-पोस्टिंग में राज्य की तबादला नीति को लागू कर पाने से लेकर बजट के सही अनुमान तक लगा पाने में नाकाम रहे इस महकमे के भरोसे सब कुछ ठीक हो जायेगा यह मुश्किल लगता है.
इसके जिम्मेदार भ्रष्टाचार और अनियमितता पर कार्तयवाही करने के बजाय तबादलों पर फैसले लेने में अपनी मनमर्जी को तवज्जो देने पर आमदा हैं. बात परवान नहीं चढ़ पायी तो फाइल मुख्यमंत्री कार्यालय तक घूम आयी लेकिन फैसला तब भी नही हो पाया. ऐसे में विकास को गति देने की मुख्यमंत्री योगी की मंशा और प्रधानमंत्री मोदी का भ्रष्टाचार के प्रति सख्त रवैये को धता बताने वाले वित्त विभाग की कार्य प्रणाली को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है.
“अफसरनामा” ने अपने पिछले अंकों में एक ऐसे ही प्रकरण में ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के बजटीय नियंत्रण के विफल होने के संबंध में खबर प्रकाशित कर चुका है. जिसमें संलिप्त विभाग के वित्त नियंत्रक धनंजय सिंह जैसे अधिकारी अभी तक अपने जोड़ जुगाड़ के बल से बचते आ रहे हैं और शासन इस प्रकरण पर पर्दा डाल रहा है.
बताते चलें कि शासन के वित्त विभाग द्वारा वर्ष 2016-17 के लिए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को अनुदान संख्या 13 के अंतर्गत अधिष्ठान मदों में कुल 351.235 करोड़ रूपये का प्रोविजन किया गया था. वित्त नियंत्रक ने रुपए 275. 457 करोड़ का आवंटन किया और रुपया 74.172 करोड़ का समर्पण कर दिया. इस तरह दोनों धनराशि को मिलाकर योग 350.321 करोड़ ही हो रहा था और लगभग एक करोड़ की धनराशि हिसाब किताब से ही गायब हो गयी थी. वह भी तब जबकि आवंटित धनराशि को ही जमाखर्च मान लिया गया जबकि विभागों को आवंटित बजट को पूरी तरह से खर्च नहीं हो पाने की बात जगजाहिर है.
सवाल है कि ऐसी स्थिति में ग्रामीण अभियंत्रण विभाग द्वारा शासन के वित्त विभाग को भेजे गए बजट अनुमान और खर्चों के ब्योरे को सच कैसे माना जा सकता है और कहीं न कहीं सीएजी की आपत्ति और डर भी कुछ इसी से मिलता जुलता है.
लेकिन शासन ने तब से लेकर अब तक 1 करोड़ से अधिक की रकम के लैप्स होने और वित्त विभाग के बही खाते में भ्रामक आंकड़ों को शामिल करने के प्रकरण में सुध लेने की जरूरत तक महसूस नहीं की.
फिलहाल वित्त नियंत्रक धनंजय सिंह जोकि 4 वर्ष से अधिक समय से आर•ई•एस•विभाग में जमे हैं और यह वित्त विभाग में एक नजीर मात्र हैं. ऐसे में सीएजी की चिंता प्रकरण को और गम्भीर बनाती है.
प्रधानमंत्री,सीएजी और मुख्यमंत्री की मंशा चाहे जितनी उत्तम हो लेकिन यह उत्तम प्रदेश का वित्त विभाग है जिसमें ऐसे प्रकरणों की कितनी सुध ली जाती है यह देखना भी दिलचस्प होगा. उत्तम प्रदेश का वित्त विभाग जिसमें ट्रांसफर और पोस्टिंग की गुत्थी मुख्यमंत्री योगी के हस्तक्षेप के बाद भी नहीं सुलझ पा रही है तो ऐसे प्रकरणों की कितनी सुध ली जाएगी यह तो भविष्य ही तय करेगा.
ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में लैप्स बजट को छिपाने का जिम्मेदार वित्तनियंत्रक बना जांच अधिकारी
ग्रामीण अभियंत्रण विभाग में की जा रही लैप्स बजट को छिपाने की कोशिश