#हर हाल में वित्तीय अनुशासन कायम रखने की कोशिश में लगे योगी, लेकिन वित्त के अफसर कर रहे लोक वित्त से खिलवाड़.
#बजट के पुनर्विनियोग के सहारे होने वाले मार्च-लूट अभियान पर नियंत्रण जरूरी, अपर मुख्य सचिव को देना होगा पर्याप्त ध्यान.
राजेश तिवारी
लखनऊ : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर हाल में वित्तीय अनुशासन कायम रखने की कोशिश में लगे हुए हैं और सरकार की मंशा भी यही है कि जो बजट जिस काम के लिए है समय से खर्च हो सके. लेकिन सूबे की सल्तनत में ऐसे अफसरानों की कमी नहीं है जिनके चेहरे की रौनक मार्च एंडिंग जैसे अल्फाज सुनकर बढ़ जाती है और बजट खपाने की आपाधापी में अफसर जुट जाते हैं. आज जब मार्च माह में जबकि 17 कार्यदिवस शेष हैं तो पुनार्विनियोग में धनराशि स्वीकृत होने के बाद कार खरीद का आदेश जारी करना साफ्टवेयर डिवलप कराना और उसकी गुणवत्ता की परख के बाद भुगतान करना किस प्रकार संभव होगा यह आसानी से समझा जा सकता है. हालांकि अपर मुख्य सचिव संजीव मित्तल मुख्यमंत्री की मंशा को धार देते हुए वित्त के अधिकारियों की मनमानी को नियंत्रित करने में एक हद तक कामयाब रहे हैं. परन्तु राज्य में अगर वित्तीय प्रबंधन और अनुशासन को पुख्ता करना है तो मार्च एंडिंग के समय लोक वित्त से खिलवाड़ कर मार्च लूट करने वाली गतिविधियों पर भी अपर मुख्य सचिव मित्तल को पर्याप्त ध्यान देना होगा.
वित्तीय वर्ष के आखिरी दौर में कई विभागों में तैनात वित्त सेवा के अधिकारी साफ्टवेयर डेवलप कराने से लेकर गाड़ियों और कंप्यूटर हार्डवेयर की खरीद में जबर्दस्त रूचि दिखा रहे हैं तो इसका कारण साफ है. गलत बजट अनुमान के सहारे वेतन-भत्तों जैसी वचनबद्ध मदों में अनावश्यक प्रावधान कराने में वित्त सेवा के अधिकारियों की भूमिका तो रहती ही है लेकिन शासन के अधिकारियों की मिलीभगत के बिना यह संभव नहीं है क्योंकि प्रत्येक विभाग में कार्यरत मानव संसाधन की संख्या और उनके वेतनमान की सूचना स्पष्ट होती है तो फिर अनावश्यक अनुमान शासन भेजने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई करने के बजाय उन्हे परोक्ष रूप से प्रोत्साहन देने का क्या मतलब हो सकता है?
सच तो यह है कि पुनर्विनियोग के लिए बजट मैनुअल के प्रावधान के रक्षा की जिम्मेदारी जिनको सौंपी गयी है वही उन नियमों की खिल्ली उड़ाने में मशगूल हैं. पहले वचनबद्ध मदों के नाम पर कराते हैं जरूरत से ज्यादा प्रावधान, फिर मार्च के अंत में अपने पसंद की मानक मद में करा लेते हैं पुनर्विनियोग. भले ही कमीशनखोरी और मार्च- लूट की जड़ है यह समस्या लेकिन अफसरशाही के हित साधने का एक कामयाब नुस्खा भी है. इसीलिए गलत बजट अनुमान पास कराने वालों पर नहीं होती कोई कार्रवाई.
बताते चलें कि शासन द्वारा जारी सख्त आदेश के अनुसार सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ प्रदेश की जनता को मिले, इसके लिए बजट में जारी की गई धनराशि का समय रहते सदुपयोग किया जाए. वित्त विभाग को स्पष्ट निर्देश दिया गया है कि वित्तीय स्वीकृतियां प्रभावित ना हों और धनराशि का नियमानुसार सदुपयोग हो सके. सरकार के इस निर्देश के बाद से विभाग पुनर्विनियोग के माध्यम से बजट के उपभोग की कोशिश में तो लगे हैं लेकिन कई विभाग ऐसे हैं जहां पर मार्च एंडिंग को देख अफसरों की आँखों में चमक आ जाती है और वे अपना हित साधने के लिए तमाम जोड़ जुगत में लग जाते हैं. गाड़ियों की खरीद और सॉफ्टवेयर डवलपमेंट आदि की खरीद में मोटा कमीशन बनाना एक शगल सा बन गया है जिसको रोकना प्रमुख सचिव वित्त संजीव मित्तल के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है.
यह है पुनर्विनियोग
इसके तहत यदि किसी मद में धनराशि बच जाती है या खर्च नहीं हो पाती है तो उसे उस मद में ट्रांसफर किया जाता है जहां पर धन की तत्काल जरूरत है. ऐसा होने से बजट को सरेंडर होने से बचाया जाता है. पुनर्विनियोग के तहत बजट उसी मद में ट्रांसफर किया जाता है जहां पर 31 मार्च से पूर्व उपभोग हो सके. पुनर्विनियोग के कारण उन योजनाओं का काम तात्कालिक रूप से अधूरा ही रह जाता है जहां लापरवाही या अन्य कारणों से काम नहीं हो पाते हैं और बजट बचा रह जाता है.