अफ़सरनामा ब्यूरो
लखनऊ : कोरोना संक्रमण काल से निपटने के लिए अधिक आर्थिक संसाधन जुटाने और सरकारी खर्च पर लगाम लगाने की कवायद में केन्द्र और कई राज्य सरकारों ने सरकारी कर्मचारियों को मिलने वाले महंगाई भत्ते में की जाने वाली अतिरिक्त वृद्धि को जून 2021 तक के लिये पहले ही रोक दिया है. लेकिन इसी श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए सूबे के वित्त विभाग ने जब 12 मई 2020 को शासनादेश जारी किये तो कर्मचारियों में खलबली मच गयी और तमाम कर्मचारी संगठन मैदान में उतरने की तैयारी में लग गए.
इसी पृष्ठभूमि में 17 मई को राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद द्वारा सूबे में सक्रिय विभिन्न कर्मचारी संगठनो के नेताओं के साथ विचार विमर्श के लिए सांगठनिक वीडियो कांफ्रेंसिंग आहूत की गयी है. जिसके बाद आगे की रणनीति तय की जाने की संभावना है.
इन भत्तों को समाप्त किये जाने के पीछे सरकार का तर्क है कि ये भत्ते केन्द्र सरकार में भी अनुमन्य नहीं हैं और वर्तमान में प्रासंगिक नहीं रह गये हैं. विशेष तौर पर सचिवालय भत्ता और अभियंत्रण विभागों में दिये जाने वाले भत्तों पर बवाल है. इनमें ऐसा भत्ता भी है जिसे अकार्यकारी भत्ता माना जाता था. चर्चा यह भी है कि अवर अभियंताओं के भत्तों पर वित्त विभाग की नजर तभी से थी जबकि इनको तकनीकी संवर्ग मानते हुए ए०सी०पी० और वेतन निर्धारण में मिलने वाले लाभों की मांग अन्य संवर्ग द्वारा भी की जाने लगी थी.
वहीं कर्मचारियों की माने तो केन्द्र सरकार के समतुल्य कई भत्ते अभी तक नहीं दिये गये हैं. बहरहाल सूबे के कार्मिकों में सुगबुगाहट तेज हो रही है जबकि कोविड-19 से निपटने में लगी सरकार को अभी कर्मचारियों के सहयोग की जरूरत पहले से कहीं ज्यादा है.
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