#मंत्री, प्रमुख सचिव, नोडल अफसर की टिप्पणी के बाद भी नहीं सुधरा लक्ष्मीकांत, जिलाधिकारी का अनुशासनात्मक कार्यवाही का पत्र भी सन्नाटे में.
#जिलाधिकारी ने कमियों के सम्बन्ध में मुख्य विकास अधिकारी के पत्र का भी दिया हवाला, पर निदेशक से मधुर संबंधों के आगे सब फेल.
#बदनाम जलनिगम की छवि को सुधारने के लिए योगी सरकार के ईमानदार प्रबंध निदेशक विकास गोठवाल क्या कर सकेंगे किसी तरह की कार्यवाही.
#जिलाधिकारी के पत्र में प्रोजेक्ट मैनेजर लक्ष्मीकांत द्वारा घटिया सामग्री लगाये जाने और एक साल के अंदर ही बिजली उपकरणों के खराब हो जाने की बात.
#जिलाधिकारी द्वारा 12 जुलाई 2019 को लिखा गया पत्र और वर्तमान प्रबंध निदेशक की तैनाती 4 जुलाई 2019 को, फिर भी मामला लंबित.
राजेश तिवारी
लखनऊ : बुंदेलखंड में विकास और पानी की गंभीर दशा को देखते हुए बुंदेलखंड विकास बोर्ड का गठन करने की बात पीएम मोदी द्वारा की गयी थी. और जल प्रबंधन का कार्य देख रही जलनिगम जैसी बदनाम हो चुकी संस्था को सुधारने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक ईमानदार अफसर विकास गोठवाल को प्रबंध निदेशक की कुर्सी पर बैठाया गया. परन्तु प्रोजेक्ट मैनेजर लक्ष्मीकान्त तिवारी जैसे जोकि वर्षों से बुंदेलखंड में जमे रहकर भ्रष्टाचार की अपनी जड़ें जमा चुके हैं उनको फिर से वहीँ तैनात किये जाने से इस पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो रहा है. मामला गंभीर तब और हो जाता है जब लक्ष्मीकांत तिवारी जैसों की ईमानदार प्रबंध निदेशक के कार्यकाल में दुबारा उसी जगह तैनाती होती है जहां से उसकी तमाम शिकायतें रही हों. और तो और इन्हीं प्रबंध निदेशक के समय में ही जिलाधिकारी रहे शेषमणि पाण्डेय द्वारा 12 जुलाई 2019 को पत्र संख्या 738/लेखा/विकास भवन पत्रा०/2019 में लक्ष्मीकांत द्वारा कराए गये विकास भवन के कार्य में खामियों को उजागर कर अनुशासनात्मक कार्यवाही हेतु पत्र भी लिखा जा चुका है. लेकिन उसपर अभी तक किसी प्रकार की कोई कार्यवाही नहीं की जा सकी है.
महोबा जिले के सीएन्डडीएस की यूनिट 48 में भ्रष्टाचार में जड़ तक जड़ें जमा चुके लक्ष्मीकांत तिवारी पर प्रशासनिक अधिकारियों की टिप्पड़ियों और उनके द्वारा की गयी शासन में शिकायतों व अनुशासनात्मक कार्यवाही का भी कोई असर नहीं रहा. तत्कालीन जिलाधिकारी शेषमणि पाण्डेय के 12 जुलाई 2019 को भेजे गये पत्र संख्या 738/लेखा/विकास भवन पत्रा०/2019 में की गयी टिप्पणियों से स्पष्ट है विकास भवन चित्रकूट के निर्माण में घटिया सामग्री का प्रयोग किया गया जोकि कमीशनखोरी की चरम सीमा को दर्शाता है. यही नहीं प्रमुख सचिव नगर विकास को भेजे गए पत्र में तत्कालीन ग्राम्य विकास व प्रभारी मंत्री महेंद्र सिंह, शासन द्वारा नामित जनपद के तत्कालीन नोडल अधिकारी और तत्कालीन प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास द्वारा समय-समय पर निरिक्षण किये जाने और प्राप्त कमियों को दूर किये जाने के निर्देश के क्रम में उस समय मुख्य विकास अधिकारी चित्रकूट द्वारा अपने कार्यालय पत्र संख्या 365/एसटी-सीडीओ/2017-18, दिनांक – 28.09.2017 को तथा पत्र संख्या 447/दिनांक-14.11.2017 के अलावा शौचालयों में लगे नलों की स्थिति ठीक नहीं है के लिए पत्र 2018 में भी दिया गया. जिसके बाद भी तिवारी की कार्य प्रणाली में कोई सुधार नहीं हुआ.
इसके अलावा पत्र संख्या-207/दिनांक-09.07.2018 एवं पत्र संख्या 888/दिनांक-11.07.2018 द्वारा कार्यदायी संस्था परियोजना प्रबंध सी० एंड डी०एस० चित्रकूट/महोबा को निरिक्षण में पायी गयी कमियों को दूर किये जाने हेतु लगातार निर्देशित किये जाने के बाद भी उसको सुधारा नहीं जा सका था. जिसके बाद तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा मौके का मुआयना कर घटिया सामग्री लगाये जाने और काम में लापरवाही आदि कमियों को दर्शाते हुए नाराजगी जाहिर कर इसको घोर आपत्तिजनक स्थिति बताया. और कार्यदायी संस्था सी० एंड डी०एस० के द्वारा अपने दायित्वों का निर्वहन न किये जाने से शासकीय कार्य में बाधा होना बताया था. तत्कालीन जिलाधिकारी शेषमणि पाण्डेय ने प्रमुख सचिव नगर विकास को लिखा था कि विकास भवन के भूतल और प्रथम तल में पायी गयी इन कमियों को संज्ञान में लेकर उनको तत्काल ठीक कराये जाने हेतु निर्देशित किया जाय और परियोजना प्रबंधक के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही किया जाय. लेकिन जिलाधिकारी के पत्र संख्या 550/दिनांक-20.06.2019 द्वारा कार्यदायी संस्था परियोजना प्रबंधक सी० एंड डी०एस० चित्रकूट / महोबा के इस पत्र को भी ठन्डे बस्ते में डाल दिया गया या फिर उसको लीपापोती कर निस्तारित कर दिया गया.
बताते चलें कि तत्कालीन निर्माणाधीन विकास भवन जिसका निर्माण कार्य वर्ष 2011 में प्रारम्भ किया गया था, इस बीच मंत्री से लेकर प्रमुख सचिव तक सबने कमियों को बताया और उसको सुधारने के लिए कहा. इसके बाद उक्त भवन का निरिक्षण (करीब 8 साल बाद) तत्कालीन जिलाधिकारी चित्रकूट द्वारा 17 जून 2019 को किया गया और कमियों को दर्शाते हुए परियोजना प्रबंधक पर अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिए लिखा. उत्तर प्रदेश जल निगम में सी० एंड डी०एस० के प्रोजेक्ट मैनेजर लक्ष्मीकांत तिवारी के कारनामों के सम्बन्ध में यह पत्र दिनांक 12 Jul 2019 को पत्रांक संख्या 738/लेखा/विकास भवन पत्रा०/2019 है के माध्यम से प्रमुख सचिव नगर विकास को परियोजना प्रबंधक के रूप में चित्रकूट/महोबा में तैनात रहे लक्ष्मीकांत तिवारी द्वारा कराए गये कामों में व्याप्त कमियों को दूर किये जाने और उनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही किये जाने के सम्बन्ध में प्रमाण सहित लिखा गया था.
लेकिन चित्रकूट/महोबा में निर्माणाधीन परियोजनाओं की गुणवत्ता से समझौता कर काली कमाई करने वाला लक्ष्मीकांत चपरासी से लेकर निदेशक तक को अपनी जेब में रखता है. सी० एंड डी०एस० प्रबंधन प्रोजेक्ट मैनेजर लक्ष्मीकांत के आगे इस कदर नतमस्तक व मजबूर है कि उसको महोबा मे ही भ्रष्टाचार से प्यास बुझाने के लिए फिर छोड़ रखा है. यूपी जल निगम की कार्यदायी संस्था सी० एंड डी०एस० महोबा में 1996 से 2008 तक लगातार रेजिडेंट इंजीनियर के पद पर रहकर और जून 2018 से अभी तक परियोजना प्रबंधक के रूप में तैनात भ्रष्टाचार के जल से अपना गला सींच रहे और कानपुर से लेकर लखनऊ तक अकूत संपत्ति के मालिक लक्ष्मीकांत तिवारी ने उत्तर प्रदेश जल निगम की कार्यदायी संस्था सी० एंड डी०एस० को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. निदेशक सी० एंड डी०एस० गुलाब चन्द्र से अपने सम्बन्धों को लेकर चर्चा में रहने वाले इस परियोजना प्रबंधक पर किसी का भी असर नहीं. वैसे तो जांच होती नहीं और यदि जांच आगे बढ़ी तो निदेशक सी० एंड डी०एस० के पास जाकर कहीं खो जाती है. अब देखना यह होगा कि बदनाम जलनिगम की छवि को सुधारने के लिए योगी सरकार द्वारा तैनात ईमानदार प्रबंध निदेशक की नजर कब इस तिवारी पर पडती है और क्या वह इसपर किसी तरह की कार्यवाही कर सकेंगे. महत्वपूर्ण यह भी है कि 12 जुलाई 2019 को जिलाधिकारी द्वारा प्रमुख सचिव नगर विकास को भेजा गया पत्र और अग्रिम कार्यवाही हेतु प्रबंध निदेशक जलनिगम के पास आता है और फिर उसपर कार्यवाही की जाती है. और वर्तमान प्रबंध निदेशक विकास गोठवाल द्वारा 4 जुलाई 2019 को कार्यभार संभाल लिया गया था फिर भी मामला ठन्डे बसते में रहा और लक्ष्मीकांत फिर से अपनी जड़ों को भ्रष्टाचार के पानी से सींच रहा है.
जिलाधिकारी के पत्र में अंकित कमियाँ
1. विकास भवन में लगाये गये अधिकाँश पंखे व लाईटें एक साल के अंदर ही खराब हो गयीं थीं जोकि लक्ष्मीकांत की कमिशन खोरी का परिचायक है.
2. प्रोजेक्ट में देरी की वजह क्या रही और इतना दिन बीत जाने के बाद भी भवन की बाहरी दीवारों की रंगाई पुताई क्यों नहीं किया जा सका.
3. विकास भवन की सीढियों से पानी भवन में स्थापित कार्यालयों के अंदर आने और शासकीय अभिलेखों के खराब होने का खतरा होने के बावजूद इसका समुचित प्रबंध एक लंबा अंतराल बीत जाने के बाद भी न किया जाना घोर लापरवाही का परिचायक है.
4. डीएम द्वारा विकास भवन में लगे नलों से पानी कम निकलने और उनकी क्वालिटी पर भी सवाल उठाये जाने से पैसे की बंदरबांट साबित होती है. नलों से पानी कम गिरने और उनकी स्थिति को संतोषजनक नहीं बताया गया.
5. कर्वी-देवांगना में रोड से विकास भवन गेट तक बनाई गयी सीसी रोड की गुणवत्ता को बहुत ही खराब बताया गया जिसमें उस समय रोड में लगाई गयीं गिट्टियां बाहर निकल रही थीं यानी यहाँ भी कमीशन. यही नहीं रोड के दोनों तरफ समतलीकरण का कार्य भी बाकी था और भवन के पोर्च में लगा टाईल्स प्रयोग में आने से पहले टूट चुकी थी.
6. विकास भवन में जो कार्य हो गए उनकी गुणवत्ता सवालों से घिरी और इतना समय बीत जाने के बाद भी भवन के द्वित्तीय तल का निर्माण, वाह्य स्थल का विकास कार्य, सायकिल स्टैंड एवं ओवर हेड टैंक के साथ वाह्य जल वितरण प्रणाली, रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं सीवरेज प्रणाली का निर्माण कार्य कराया जाना उस समय भी जिलाधिकारी के पत्र में शेष बताया गया था.