#चित्रकूट विकास भवन के घटिया निर्माण तथा कार्यवाही को लेकर जिलाधिकारी का पत्र एक वर्ष से ज्यादा बीतने पर भी सन्नाटे में, कोई कार्यवाही तो दूर पुनः महोबा में तैनाती पाने में कामयाब.
#महोबा में आसरा आवास योजना के तहत आवासीय भवनों/इकाईयों के निर्माण में शासन के निर्देश को धता बताते हुए इंसिटू कुलपहाड़ और इंसिटू चरखारी में हुए घपले के मामले में गठित टीएसी जाँच छः महीने बीतने पर भी फाईलों में दबी.
#यह सिस्टम के लिए शर्मनाक, जब खुद जिले का जिलाधिकारी शासन को शिकायत कर परियोजना प्रबंधक पर कार्यवाही के लिए लिखता है, परन्तु साल भर बीतने के बाद भी कार्यवाही तो दूर दोषी को पुनः उसी जिले में निदेशक द्वारा तैनाती दे दी जाती है. ऐसे आमजन की शिकायत कैसे अंजाम तक पहुंचेगी.
राजेश तिवारी
लखनऊ : उत्तर प्रदेश जल निगम की निर्माण इकाई सी०एंड०डीएस० के निदेशक गुलाब चन्द्र दूबे जिनको कि सपा सरकार के कद्दावर मंत्री रहे आजम खान का करीबी माना जाता है की मेहरबानी अपने परियोजना प्रबन्धक लक्ष्मीकांत तिवारी पर इस कदर जारी है कि उसके खिलाफ कोई जांच अंजाम तक नहीं पहुँच पा रही है और वह अभी तक फाईलों में दब कर धूल फांक रही है. यह सिस्टम के लिए शर्मनाक तब और हो जाता है जब खुद जिले का जिलाधिकारी शासन को शिकायत कर परियोजना प्रबंधक पर कार्यवाही की बात करता है परन्तु साल भर बीतने के बाद भी कार्यवाही तो दूर दोषी को पुनः उसी जिले में निदेशक द्वारा तैनाती दे दी जाती है.
चित्रकूट के विकास भवन के निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग जिसकी शिकायत और कार्यवाही की संस्तुति खुद जिलाधिकारी शेषमणि पाण्डेय ने की थी, के एक वर्ष बीत जाने के बाद भी ठन्डे बस्ते में है. इसके अलावा आसरा आवास योजना के तहत सूबे के जनपद महोबा में आवासीय भवनों/इकाईयों के निर्माण में शासन के निर्देश को धता बताते हुए इंसिटू कुलपहाड़ और इंसिटू चरखारी में हुए घपले की शिकायत के बाद गठित टीएसी जाँच जिसकी पत्रांक संख्या 130/टी०ए०सी० 2052-0586-2020 है जोकि दिनांक 15 फरवरी 2020 को निदेशक को भेजा जा चुका है. उसको भी निदेशक महोदय की मेहरबानी से दबा दिया गया है. यह निदेशक की ही मेहरबानी का परिणाम है कि महोबा जनपद में एक लम्बे समय तक रेजिडेंट इंजीनियर से परियोजना प्रबंधक के रूप में तैनात रहकर लक्ष्मीकांत तिवारी ने सरकार द्वारा निर्धारित निर्माण के मानकों और टेंडर प्रक्रिया को धता बता धन उगाही के काम में वर्षों से लगा हुआ है जोकि अभी भी अनवरत जारी है.
जनपद महोबा में आसरा आवास योजना के तहत आवासीय भवनों/इकाईयों के निर्माण में शासन के निर्देश को धता बताते हुए इंसिटू कुलपहाड़ और इंसिटू चरखारी में हुए घपले का मामला
सरकार बदली, सिस्टम बदला, पर नहीं बदल सका है जल निगम की निर्माण एजेंसी c&ds के अफसरों रवैया. सी०एंड०डीएस० के निदेशक पद पर बैठे गुलाबचंद दूबे की कृपा से लक्ष्मीकांत तिवारी जैसे परियोजना प्रबंधक सरकार के नियमों की अनदेखी कर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं. निदेशक गुलाबचंद द्वारा उनको संरक्षण दिए जाने का काम किया जा रहा है. निदेशक गुलाब चन्द्र से अपने करीबी संबंधों के बल पर किसी भी जांच को ठंडे बस्ते में डालवा देना लक्ष्मीकांत के लिए कोई बड़ी बात नहीं है. ऐसे ही एक प्रकरण में लक्ष्मीकांत के कारनामों के शिकायत के बाद गठित की गई टी०ए०सी० जांच को महीनों से निदेशक सी०एंड०डीएस० गुलाबचंद द्वारा दबा दिया गया है. और तो और प्रकरण में एसआईटी जांच की भी सिफारिश की गई थी लेकिन महीनों बीतने के बाद भी अभी तक मामला केवल सिफर ही रहा है. मजेदार बात यह है कि यह प्रकरण भी परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीकांत तिवारी और निदेशक गुलाब दूबे के बीच का है और टीएसी जांच की फाईल को निदेशक द्वारा दबा दिया गया है.
ताजा मामला आसरा आवास योजना के तहत सूबे के जनपद महोबा में आवासीय भवनों/इकाईयों के निर्माण में शासन के निर्देश को धता बताते हुए इंसिटू कुलपहाड़ और इंसिटू चरखारी में हुए घपले का है. जहाँ शासन के स्तर से निर्धारित मानकों के उलट काम करने, फंड डायवर्जन, ठेकेदारों और अफसर की मिलीभगत से बिना किसी स्वीकृति के सरकारी धन की बंदरबांट जैसी गम्भीर शिकायतों से जुड़ा है. जिसमें शिकायतकर्ता द्वारा भेजे गये अपने पत्र में परियोजना प्रबंधक के काले कारनामों का जिक्र करते हुए एसआईटी जाँच की माँग की गयी थी. मामला ऊपर तक पहुंचा तो एसआईटी जांच का मामला कहीं गुम हो गया और टीएसी जाँच के लिए दिनांक 15 फरवरी 2020 को पत्रांक संख्या 130/टी०ए०सी० 2052-0586-2020 जारी कर दिया गया. लेकिन तिकड़मों का दौर अभी भी जारी है और परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीकांत निदेशक गुलाब चन्द्र से अपने संबंधों के बलबूते मामले को अभी तक दबवाने में कामयाब रहा है.
चित्रकूट जिले के विकास भवन के निर्माण में घटिया सामग्री की शिकायत और कार्यवाही का पत्र जिलाधिकारी द्वारा भेजा गया
“अफसरनामा” इस सम्बन्ध में पहले भी बता चुका है कि महोबा जिले के सीएन्डडीएस की यूनिट 48 में भ्रष्टाचार में जड़ तक जड़ें जमा चुके लक्ष्मीकांत तिवारी पर प्रशासनिक अधिकारियों की टिप्पड़ियों और उनके द्वारा की गयी शासन में शिकायतों व अनुशासनात्मक कार्यवाही में रोड़ा खुद निदेशक सीएंडडीएस गुलाब दूबे हैं. लक्ष्मीकांत पर कार्यवाही की फाईल जैसे ही निदेशक दूबे के पास पहुँचती है वह कहीं अन्धकार में खो जाती है. निदेशक गुलाब दूबे के कारण ही प्रबंध निदेशक विकास गोठवाल जैसे ईमानदार अफसर की कार्यशैली पर भी सवाल उठ रहे हैं.
बताते चलें कि चित्रकूट जिले के विकास भवन के निर्माण में घटिया सामग्री प्रयोग तथा अन्य लापारवाही के साथ परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीकांत के कारनामों को लेकर प्रमुख सचिव नगर विकास को जिलाधिकारी शेषमणि पाण्डेय द्वारा 12 जुलाई 2019 को पत्र संख्या 738/लेखा/विकास भवन पत्रा०/2019 के माध्यम से सख्त टिप्पणियों के साथ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने को लिखा गया. परन्तु एक साल से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है. यही नहीं प्रमुख सचिव नगर विकास को भेजे गए पत्र में तत्कालीन ग्राम्य विकास व प्रभारी मंत्री महेंद्र सिंह, शासन द्वारा नामित जनपद के तत्कालीन नोडल अधिकारी और तत्कालीन प्रमुख सचिव ग्राम्य विकास द्वारा समय-समय पर निरिक्षण किये जाने और प्राप्त कमियों को दूर किये जाने के निर्देश के क्रम में उस समय मुख्य विकास अधिकारी चित्रकूट द्वारा अपने कार्यालय पत्र संख्या 365/एसटी-सीडीओ/2017-18, दिनांक – 28.09.2017 को तथा पत्र संख्या 447/दिनांक-14.11.2017 के अलावा शौचालयों में लगे नलों की स्थिति ठीक नहीं है के लिए पत्र 2018 में भी दिया गया. जिसके बाद भी तिवारी की कार्य प्रणाली में कोई सुधार नहीं हुआ.
ताज्जुब तो यह है कि एक ईमानदार मुख्यमंत्री के ईमानदार अफसर की नाक के नीचे यह सब कारनामा घटित हो रहा है. और तो और चित्रकूट के विकास भवन के निर्माण में इसी परियोजना प्रबंधक की लापरवाही और कार्यवाही की जिलाधिकारी द्वारा संस्तुति किए जाने के बाद भी मामला ठंडा है. जिसका खुलासा “अफसरनामा” ने अपने पहले के अंक में किया था. इसके पहले विकास भवन चित्रकूट के निर्माण में घटिया सामग्री का प्रयोग किये जाने की बात खुद जिलाधिकारी द्वारा अपनी रिपोर्ट में लिखे जाने से निर्माण कार्यों में चल रही कमीशनखोरी के साथ ही परियोजना प्रबंधक लक्ष्मीकांत तिवारी की कार्यशैली को दर्शाता है. साथ ही यह सवाल भी उठता है कि जब इस गंभीर प्रकरण में जिसकी शिकायत खुद एक जिलाधिकारी द्वारा की गयी है के एक वर्ष से ज्यादा का समय बीत जाने के बाद भी कोई कार्यवाही क्यों नहीं हो सकी है, और आखिर कौन है निगम में जो ऐसे कामों को संरक्षण दे रहा है.
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