अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को लेकर “अफसरनामा” द्वारा उठाये गए मुद्दों पर सुप्रीमकोर्ट की भी मुहर लग गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से असंगठित क्षेत्र के मजदूरों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस तैयार करने को कहा और रजिस्ट्रेशन या पहचान पत्र ना होने के बावजूद मजदूरों को राशन देने के निर्देश भी दिए.
इसके पहले जनवरी 2020 में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की समस्याओं को लेकर “अफसरनामा” द्वारा उठाये गए बिन्दुओं पर एक महीने बाद फरवरी में योगी सरकार ने संज्ञान लिया और बजट में समाज के अंतिम पायदान पर बैठे वर्ग के लिए प्रावधान किया.
दरअसल लेबर रजिस्ट्रेशन स्कीम वर्ष 2018 में शुरू होनी थी तो सुप्रीम कोर्ट ने इस योजना का करंट स्टेटस भी सरकार से पूछा जिसकी जानकारी देने में सरकार विफल रही. सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, “2018 में सुप्रीम कोर्ट ने श्रम एवं रोजगार मंत्रालय को असंगठित कामगारों का एक डेटाबेस तैयार करने का निर्देश दिया था. इसके बाद लेबर रजिस्ट्रेशन स्कीम शुरू हुई थी.
हम जानना चाहते हैं कि इस स्कीम का स्टेटस क्या है? ” कोर्ट ने कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को प्रवासी मजदूरों और असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे कामगारों के रजिस्ट्रेशन में तेजी लानी चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अभी कामगारों को सरकार के पास जाकर अपना रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ रहा है, लेकिन हम चाहते हैं कि सरकार मजदूरों के पास जाए और उनका रजिस्ट्रेशन करे.
कोरोना काल में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा हो या सामान्य दिनों में सरकार द्वारा कि जाने वाली घोषणाएं हों, मजदूरों के रजिस्ट्रेशन न होने से उनको सरकारी योजनाओं का वास्तविक लाभ मिलना मुश्किल होता है. “अफसरनामा” द्वारा पूर्व प्रकाशित अपनी रिपोर्ट में इस मुद्दे पर सरकार को आगाह किया गया था, जिसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई में भी हो रही है.
“अफसरनामा“ की खबर का सरकार ने लिया संज्ञान, बजट में समाज के अंतिम पायदान पर बैठे वर्ग के लिए किया गया प्रावधान
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सरकारी उपेक्षा का शिकार बन रहा, अंतिम पायदान पर बैठा असंगठित क्षेत्र का मजदूर
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