अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : रविवार को कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही द्वारा अयोध्या के उप निदेशक कृषि को शासकीय कार्यों में लापरवाही के चलते निलंबित किया गया लेकिन एक सवाल अभी भी है कि “निधि या धन का सही रख रखाव नहीं है तो हेडक्वार्टर पर इसके लिए जिम्मेदार कौन है?” किसानों के हितों की रक्षा करने और उन्हें सम्मान देने की मंशा भले ही प्रधानमन्त्री मोदी कई बार जता चुके हों लेकिन उन्ही की महत्वपूर्ण पहल किसान सम्मान निधि योजना अब तक उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों की प्राथमिकता में शुमार नहीं हो पाई है. यही कारण था कि रविवार को सूबे के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही को अपने मातहत अयोध्या के उप निदेशक कृषि अशोक कुमार को निलंबित करना पड़ा.
“अफसरनामा” द्वारा समय रहते सचेत किये जाने के बाद नहीं चेती सरकार जिसके चलते निलंबन की दरकार आन पड़ी. आखिर क्या कारण है कि जब तक अफसरों के कारनामे मीडिया में सुर्खियाँ नहीं बनते तब तक ऊपर बैठे जिम्मेदारों के कानों पर जूं नहीं रेंगता? किसान आंदोलन चल रहा है और कृषि विभाग की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है फिर भी वित्त (सेवायें) अनुभाग 2 द्वारा जारी स्थानान्तरण आदेश तक को पूर्णतया प्रभावी नहीं कराया गया जबकि पूर्णकालिक वित्त नियंत्रक के बिना भी चल रहा था यूपी का कृषि विभाग.
बताते चलें कि कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही रविवार को शासकीय दायित्व के निर्वहन में लापरवाही बरतने पर उप निदेशक कृषि अयोध्या अशोक कुमार को निलंबित कर अनुशासनात्मक कार्यवाही किये जाने का निर्देश दिया. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लाभार्थी की संख्या और खरीफ कलेक्टर की जानकारी न दे पाने को लेकर कार्यवाही की गयी.
सरकार भले ही किसानों की आय दुगुनी करने के उपायों को लागू करने के लिए प्रयत्नशील हो और प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पीएम किसान सम्मान निधि और “पर ड्रॉप मोर क्रॉप” जैसी योजनाएं शुरू हो चुकी हो, लेकिन अधिकारियों की संजीदगी जग जाहिर है और शासन में बैठे जिम्मेदार तब तक मौन रहते हैं जब तक कि मामला सुर्खियाँ बन सरकार की फजीहत न करा दे. बहरहाल सितम्बर में लागू किए गए नए कृषि कानूनों के विरोध का राजनीतिक शक्ल अख्तियार करना सत्ता पक्ष के लिए परेशानी का सबब रहा है और केन्द्रीय मंत्री तक को किसानों के मुद्दे पर सरकार के संवेदनशील होने की बात दोहरानी पड़ी है. लेकिन हकीकत में जिस कृषि विभाग पर सरकारी दावों और योजनाओं को जमीन पर उतारने और किसानों में भरोसा पैदा करने का दारोमदार है पर वहां के सिस्टम की हकीकत कुछ अलग ही है.