अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : सपा, बसपा सरकारों में स्थानान्तरण को तबादला उद्योग की संज्ञा देने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार में भी स्थानान्तरण को कमाई का साधन बनाने के लिए अफसरशाही ने तरह तरह के हथकंडे अपनाये हैं जिसके कारण एक तरफ तो योगी सरकार की भ्रष्टाचार के विरुद्ध जीरो टोलरेंस की नीति पर सवालिया निशान लगा है तो दूसरी और पीड़ित कर्मचारियों की गुहार पर कर्मचारी संघ उबाल पर हैं.
अपर मुख्य सचिव रेणुका कुमार का तबादले को लेकर आदेश भी हुआ हवा हवाई
कभी टीम इलेवन की सदस्य रही तत्कालीन अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा रेणुका कुमार ने स्थानान्तरण नीति घोषित किये जाने के कुछ ही समय बाद निदेशक आंतरिक लेखा परीक्षा को एक पत्र प्रेषित करते हुए यह सख्त रूप से ताकीद कर दिया था कि बेसिक शिक्षा विभाग में लेखा संवर्ग के जो कार्मिक कई वर्षों से एक ही कार्यालय में अपनी कुर्सी पर जमे बैठे हैं उनके ठहराव की अवधि के अवरोही क्रम में चिन्हित करते हुए उनका स्थानान्त्र्ण अनिवार्य रूप से किया जाय. सरकार में पारदर्शी व्यवस्था और न्यायपरक समायोजन की दृष्टि से तो यह आदेश योगी सरकार की घोषित एजेंडे में फिट बैठता था लेकिन इतने स्पष्ट नीति निर्देशन के कारण तमाम जुगाडू अफसरों की जान सांसत में थी और यही कारण रहा कि रेणुका कुमार के प्रतिनियुक्ति पर जाते ही उस आदेश को हवा हवाई बना दिया गया.
नगर विकास विभाग में तबादले में हुए खेल को लेकर कोहराम
नगर विकास विभाग में ट्रांसफर पोस्टिंग की सूची जारी होते ही बवाल शुरू हो गया. निदेशक के अवकाश पर चले जाने के बाद विभाग का काम देख रहे विशेष सचिव इन्द्रमणि त्रिपाठी पर अनियमितता के आरोप लगे हैं तो वहीँ मंत्री तक को इसमें लपेटा गया है. कहा जा रहा है कि कई ऐसे अधिकारी व् कर्मचारी इस लिस्ट में शामिल हैं जिनका 6 साल में सात बार तबादला हुआ और कुछ ऐसे भी हैं जोकि सात साल से एक ही जनपद में जमे हुए हैं. विभाग में चर्चा है कि इस तरह की दोहरी नीति का मूल कारण ट्रांसफर से धन उगाही है.
वित्त विभाग के तबादलों में नियमों की हुई अनदेखी , वर्षों से जमे जुगाडू कुर्सी बचाने में फिर हुए कामयाब
वित्त विभाग में भी कुछ ऐसा ही आलम रहा जब शासन स्तर से खाली पदों को इसलिए नहीं भरा गया कि निकट भविष्य में उच्च ग्रेड वेतन में अधिकारियों के प्रमोशन होने वाले हैं. जाहिर है कि अभी पद भर जाने से मनमाफिक पदों को पाने की लालसा में जुटे अधिकारियों को दिक्कत आएगी. सबसे बुरा हाल तो अधीनस्थ लेखा संवर्ग के अधिकारियों और कर्मचारियों के तबादले का काम देखने वाले कार्यालय आंतरिक लेखा निदेशालय में तो “नाट डिस्टर्बिंग एलाउन्स” की खेप के बदले 20 से 25 वर्षों तक की लम्बी अवधि से एक ही विभाग और कार्यालय में जमे कार्मिकों पर नजरें इनायत किये जाने की चर्चा आम हो रही है. हालात यह रहे कि बीस प्रतिशत तक की संख्या के कार्मिकों का तबादला इसलिए नहीं किया गया क्योंकि ऐसे मठाधीश कर्मचारियों की कुर्सी बची रहे. हालात यह है कि सूबे की खजाने की हिफाजत करने का जिम्मा लेने वाला लेखा संवर्ग में कितने लोग 20 वर्ष से अधिक समय से एक ही कार्यालय में जमे हैं इसकी खोज खबर को दरकिनार किये जाने का उदाहरण मौजूद है.
तबादलों में स्वास्थ्य विभाग के तो खेल ही निराले, मामला पहुंचा बड़े दरबार
स्वास्थ्य विभाग का प्रकरण तो और भी निराला था जहां स्थानान्तरण सूची में ऐसे भी नाम शामिल थे जिन नामों का कोई कर्मचारी ही कार्यरत नहीं है. चर्चा है कि ऐसा इसलिए किया गया कि ट्रांसफर के नाम पर शासन के उच्च स्तर की आँखों में धुल झोंकी जा सके और यह राय कायम की जा सके कि ट्रांसफर पोस्टिंग की प्रक्रिया पूर्ण कर ली गयी है. जाहिर है कि फर्जी नामों के सहारे ट्रांसफर पालिसी का अनुपालन किये जाने का एहसास कायम कराने वाले इस वाकये का उद्देश्य लम्बे अरसे से अपनी कुर्सी पर जमे अधिकारियों को महफूज रखना रहा है. मिल रही जानकारी के अनुसार प्रकरण मुख्यमंत्री कार्यालय तक संज्ञान में लाया जा चुका है.
तबादलों में भ्रष्टाचार से छवि हुई दागदार, अब कैसे निपटेगी सरकार
सरकार की छवि को दागदार बनाने की कीमत पर आर्थिक दोहन के वास्ते स्थानान्तरण नीति का बेजा इस्तेमाल करने की आदि हो चुकी नौकरशाही बेलगाम और बेखौफ होकर मनमाफिक फैसले कर रही है जोकि चुनावी मौसम में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए चिंता का सबब बन सकती हैं. आम जनमानस में गहरी पैठ रही यह धारणा कि सरकार कोई भी हो सिस्टम अपनी रफ़्तार से ऐसी ही चलता है, से सररकार कैसे निपटती है और इस चुनावी मौसम में तबादलों के खेल से सरकार की छवि पर लग रहे सवालिया निशान और मुख्यमंत्री से तबादलों अनियमितता की उच्च स्तरीय जांच की मांग को देखते हुए क्या कदम जिम्मेदार उठाते हैं यह देखना होगा.
भ्रष्टाचार पर रेणुका कुमार का प्रहार, सूबे के आन्तरिक लेखा निदेशालय में हड़कंप