अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए सरकार द्वारा तय समय बीत चुका है और इस अवधि में किये गये तबादलों में तमाम अनियमितता की शिकायत और खबरें सामने हैं. तबादला उद्योग की विरोधी योगी सरकार में भी तबादलों में खेल किये जाने की खबरें हैं. और अब जब स्थानान्तरण नीति का समय बीत चुका है तो अफसरशाही एक नया खेल करने में जुटी है. उधर योगी सरकार राजनीतिक मंथन में उलझी हुई है तो अफसरशाही भी मनमाना गुल खिलाने से बाज नहीं आ रही है.
स्वास्थ्य विभाग, नगर विकास विभाग, वित्त विभाग में तबादलों में हुए भ्रष्टाचार की खबरों के बीच अब ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए बदनाम आंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय में अंधेर गर्दी की खबरें आ रहीं हैं. निदेशक आंतरिक लेखा परीक्षा द्वारा बैक डेट में तबादला किये जाने के आरोप लग रहे हैं और चहेतों को उनके मनमाफिक तैनाती देने के लिए तानाबाना बुनकर बैकडेट में उनको मनचाहे स्थान भेजा जा रहा है. ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए बदनाम हो चुके वित्त विभाग के अधीन अंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय में स्थितियां इस कदर बिगड़ी है की ट्रांसफर आदेश जारी कर लिए जाते हैं लेकिन सार्वजनिक होने में तीन-चार दिन लग जाते हैं. अलबत्ता वही ट्रांसफर आदेश निदेशक के कुछ करीबियों को समय से उपलब्ध होते हैं ताकि संशोधन का कोई प्रकरण सिफारिश या जुगाड़ के दम पर सामने आता है तो उसे 15 जुलाई की तारीख में संशोधित आदेश जारी करने की संभावना को जीवित रखा जा सके.
“अफसरनामा” के पास ऐसे ही एक प्रकरण की जानकारी सामने आई है जिसमें आंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय के स्थानांतरण आदेश संख्या 1807 दिनांक 12 जुलाई 2021 में किए गए स्थानांतरण में आंशिक संशोधन 15 जुलाई 2021 की तारीख अंकित करते हुए किया गया है. लेकिन रातों-रात किए गए इस संशोधित तबादले को सार्वजनिक होने में 4 दिन लग गया जोकि अंदर की चीजों को समझने के लिए काफी है. 19 जुलाई 2021 को हरीश कुमार चौधरी सहायक लेखा अधिकारी जिनकी पूर्व तैनाती सतर्कता आयोग और प्रशासन अधिकरण लखनऊ जवाहर भवन में की गई थी उसे संशोधित कर उद्यान विभाग लखनऊ में पदस्थापित कर दिया गया. यहां तक तो सब ठीक था लेकिन सवाल तब खड़े हुए जब 12 जुलाई 2021 का तबादला आदेश प्रॉपर चैनल से अभी तक विभागों में नहीं पहुंचा है और यूनियनों के व्हाट्सएप ग्रुप पर यह आदेश 16 जुलाई 2021 की शाम अपलोड होने पर ही सार्वजनिक हो पाए थे. ऐसे में सवाल यह है कि 16 जुलाई 2021 तक ऐसे किसी संशोधन की जानकारी किसी को नहीं थी तो 19 जुलाई को अचानक यह आदेश कहां से आया और 19 जुलाई को ही संबंधित सहायक लेखा अधिकारी आनन-फानन में कार्य मुक्त होकर उद्यान विभाग में अपने योगदान देना कैसे संभव हो पाया? जाहिर है की स्थानांतरण आदेश निर्गमन करने के लिए डायरी डिस्पैच में पहले से ही जुगाड़ कर लिया जाता है और प्रकरण मनमाफिक होने पर अफसरशाही इसे अमलीजामा पहनाते हैं.
गौरतलब है कि उद्यान विभाग में कार्यरत 4 लेखाकारों में से 3 की पदोन्नति दिसंबर 2020 में सहायक लेखा अधिकारी के पद पर की गई थी. जिसमें से 3 सहायक लेखा अधिकारीयों की तैनाती वर्तमान में अन्य विभाग में किए जाने के आदेश जारी कर दिए गए. 12 जुलाई 2021 को एक सहायक लेखाअधिकारी मोतीलाल का स्थानांतरण इस बिना पर नहीं किया गया कि उनकी सेवानिवृत्ति में 6 माह से भी कम मात्र 3 से 4 माह की अवधि शेष रही थी. लेकिन अचानक से मोतीलाल के बारे में आदेश को दरकिनार कर एक नया आदेश उनकी जगह हरीश कुमार चौधरी की तैनाती का किया जा चुका है और मोतीलाल के बारे में समाचार लिखे जाने तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. अब सवाल यह है कि जब तबादले सामूहिक रूप में किए गए और आदेश एक साथ निकाले जा चुके थे तो फिर व्यक्तिगत आदेश चयन करने के मानक क्या थे?
आंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय में पारदर्शिता का अभाव
बताया जाता है की आंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय मैं ट्रांसफर पोस्टिंग का कोई पैमाना या मानक आज तक तय नहीं हो पाया है. ना तो वहां अन्य संवर्ग और विभागों की तरह तैनाती के लिए विकल्प मांगे जाते हैं और न महत्वपूर्ण विभागों में तैनाती के समय वरिष्ठता के क्रम को ध्यान में रखा जाता है. निदेशक, आंतरिक लेखा परीक्षा स्वयं वित्त सेवा का अधिकारी होता है लेकिन खुद के संवर्ग के अफसरों की तरह समय अवधि पूर्ण होने पर लेखाकार या अन्य अधीनस्थों के ट्रांसफर करने की जहमत नहीं उठाते है. कुल मिलाकर क्या किया जाना है और क्या नहीं किया जाना है, इस बात को तय करने में निदेशक और उनके करीबी दो-चार लोगों की मनमानी से ही सब कुछ तय होता है. किसी को यह भी मालूम नहीं है कि कितनी संख्या के कौन से पद किस विभाग में कब से रिक्त हैं? यह डाटा मात्र निदेशालय के संबंधित पटल पर तैनात कर्मचारी, निदेशक और कुछ जुगाड़ू कर्मचारियों की ही जानकारी में होता है और विभाग की वेबसाइट तो राम भरोसे है ही.
फिलहाल यूपी की सियासत में योगी सरकार भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक के बीच में समन्वय स्थापित करने के लिए बैठकों का दौर जारी है सरकार के अधिकतर मंत्री मंत्रिमंडल में संभावित फेरबदल और विस्तार के बीच अपनी कुर्सी को सुरक्षित रखने की जुगत में लगे हैं तो अफसरशाही को निरंकुश रवैया अख्तार करने का एक सुनहरा मौका मिला है. पिछली सरकारों के कार्यकाल में ट्रांसफर पोस्टिंग पर लानत भेजने वाली भाजपा सरकार में भी ट्रांसफर पोस्टिंग के मामले में घमासान मचा है जुगाड़ तंत्र के प्रभावी होने मनमाने तरीके से ट्रांसफर किए जाने और भ्रष्टाचार तथा अनियमितता के आरोप आम हो चुके हैं. आलम यह है की सरकार की घोषित नीति के अनुसार स्थानांतरण की समय सीमा 15 जुलाई को समाप्त हो चुकी है लेकिन अधिकारी अपने करीबियों को फायदा पहुंचाने या खुद के स्वार्थ पूर्ति के कारण बैकडेट में अभी भी ट्रांसफर पोस्टिंग को अमलीजामा पहनाने में लगे हुए हैं. इस कवायद में आदेशों में संशोधन नियमों की मनमानी व्याख्या और स्थितियों का संदेहात्मक निरूपण शासन और मंत्रियों को गुमराह करना जैसी बातें आम हो गई है. विधानसभा चुनाव होने में चंद माह ही बचे हैं अब देखना यह होगा कि सरकार इससे उपजी नाराजगी और सरकारी सिस्टम पर उठ रहे सवाल को कैसे दूर करती है और क्या योगी सरकार इस तबादला व् तैनाती में हुई अनियमितता की जांच कराएगा.
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