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यूपी का नगर विकास विभाग, पीओ के खेल में कई झोल तो एक मिशन की वित्तीय गडबडी चर्चा में

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव की बयार बहनी शुरू हो चुकी है तो सत्तारूढ़ भाजपा और उसके मात्र संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अपने कोर वोटरों को सहेजने के साथ साथ नये वोटरों को रिझाने की कवायद में जुटे हैं. लेकिन सूबे की अफसरशाही के कारनामे उनके अरमानों पर में पलीता लगाने के लिए काफी है. नगर विकास, वित्त और स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण विभागों में ट्रांसफर पोस्टिंग में अनियमितता,भ्रष्टाचार, पारदर्शिता के अभाव और मानकों की अनदेखी के प्रकरण सामने आ ही रहे थे कि नगर विकास विभाग आपसी रार की घटना के बाद एक बार फिर से चर्चा में है.

नगर विकास विभाग के अंतर्गत आने वाले दो मिशन स्वच्छता मिशन और सूडा की कारगुजारियों की चुस्की ली जा रही है. जहां सूडा में गलत कौन? निदेशक अथवा परियोजना अधिकारी यह सवाल चर्चा में है तो वहीं स्वच्छता मिशन में एक वित्तीय अनियमितता का मामला भी अंदरखाने सुर्खीयां बटोर रहा है. सूडा में एक स्थिति तो साफ़ हो गयी है कि परियोजना अधिकारी निदेशक पर भारी हो गया है और सवाल भी यहीं है कि जब एक परियोजना अधिकारी शासन की नजर में सही और कर्मठ है तो निदेशक के खिलाफ स्पष्टीकरण अथवा जांच क्यों नहीं ? मजे की बात यह है कि इन दोनों ही मामलों में वित्त विभाग के आदेशों और टिप्पणियों की अनदेखी किये जाने की जानकारी प्रकाश में आ रही है.

दरअसल नगर विकास विभाग में प्रतिनियुक्ति पर तैनात तीन परियोजना अधिकारियों पर शासन के आला अधिकारियों की विशेष कृपा बरसने का एक सनसनीखेज मामला सामने आया है. तो नगर विकास विभाग में एक वित्तीय अनियमितता का मामला भी इन दिनों काफी चर्चा में है. मिली जानकारी के मुताबिक़ मार्च 2021 की खराब परफार्मेंस और तमाम स्थानीय जनप्रतिनिधियों की शिकायत के आधार पर जब सूडा के तत्कालीन परियोजना निदेशक उमेश प्रताप सिंह द्वारा इन तीन परियोजना अधिकारियों यामिनी रंजन पटेल, अयोध्या, अरविन्द कुमार पाण्डेय, आजमगढ़ और आशीष सिंह, मेरठ को उनके मूल विभाग में वापस कर दिया गया. सूडा निदेशालय द्वारा 23 जून 2021 को निरस्त प्रत्यावर्तन आदेश की कापी को सम्बंधित जिले के जिलाधिकारी को इन तीनों परियोजना अधिकारियों को रिलीव करने के लिए भेज दिया गया साथ ही इसकी एक कापी इन सबको भी भेजी गयी. लेकिन प्रत्यावर्तित किये गये इन तीन परियोजना अधिकारियों पर शासन में बैठे इनके आकाओं की ऎसी कृपा रही कि निदेशक के आदेश को दरकिनार कर इनकी पुनर्वापसी करीब एक हफ्ती के भीतर ही करा दी गयी. जिसमें कि विषम परिस्थितियों में 6 माह के भीतर पुनर्वापसी के लिए शासन द्वारा जारी नियमों की अनदेखी की गयी. मजे की बात यह है कि सूडा निदेशक के राजस्व परिषद 28 जून 2020 को जाने के एक दिन बाद ही 29 जून 2020 को इन परियोजना अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति की गयी जोकि खुद में संदेहास्पद है.

प्रतिनियुक्ति को लेकर वित्त विभाग का आदेश
मेरठ में तैनात परियोजना अधिकारी आशीष सिंह की पुनर्वापसी के लिए जारी आदेश

अब सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वह कारण जिसके चलते इन परियोजना अधिकारियों को निदेशक द्वारा उनके मूल विभाग में भेजा गया, गलत था या फिर इन सबकी पुनर्वापसी गलत है ? सवाल यह भी है कि आखिर ऎसी क्या जल्दी व् मजबूरी थी जिसके चलते इन परियोजना अधिकारियों को आनन्-फानन में पुनर्वापसी कराई गयी जबकि निदेशालय इन सबकी परफार्मेंस पर सवाल उठा चुका है. सवाल यह भी है कि प्रधानमंत्री आवास योजना में प्रदेश को अव्वल दर्जा दिलाने वाले तत्कालीन निदेशक उमेश प्रताप सिंह को सजायाफ्ता माने जाने वाले राजस्व परिषद भेजे जाने का कारण क्या यही था या कुछ और? साथ ही एक अहम सवाल यह भी है कि इन परियोजना अधिकारियों को सूडा निदेशक द्वारा 07 जून 2021 को जारी मूल विभाग में भेजने के आदेश को 29 जून 2021 को ही शासन द्वारा निरस्त कर दिये जाने के बाद निदेशक के खिलाफ क्या कोई जांच की संस्तुति की गयी अथवा कोई स्पष्टीकरण लिया गया, यदि नहीं तो क्यों? कारण भी साफ़ है कि निदेशक या फिर परियोजना अधिकारियों में से कोई एक ही सही अथवा गलत हो सकता है और ऎसी स्थिति में न्याय के सिद्धांत के आधार पर प्रकरण की जांच किया जाना आवश्यक है या फिर निदेशक को स्पष्टीकरण के लिए शासन से पत्र जारी होना चाहिए.

जानकारों का कहना है कि बेस्ट परफार्मर रहे निदेशक में यदि कोई कमी आई तो क्या उसकी जांच कराई गयी? यदि निदेशक की गलती मान भी ली जाय तो ऎसी क्या जल्दी और मजबूरी थी कि शासन खुद अपने ही नियमों को दरकिनार कर कानूनी प्रक्रिया पूरी नहीं करते हुए इन तीनों परियोजना अधिकारियों को वापस तैनात कर दिया. जबकि शासन के नियमानुसार विषम स्थिति में यदि किसी की पुनर्वापसी करनी पडती है तो उसके पहले उसकी स्वीकृति वित्त विभाग अथवा मुख्यमंत्री से कराई जानी चाहिए, साथ ही सम्बन्धित अधिकारी के मूल विभाग से अनापत्ति प्रमाणपत्र भी होना नियमानुसार जरूरी है. लेकिन सूत्रों के मुताबिक़ इन तीनों के केस में ऐसा नहीं किया गया है जोकि कहीं न कहीं भ्रष्टाचार की तरफ इंगित करता है.

सूडा में पीओ की पुनर्वापसी और निदेशक को राजस्व परिषद भेजे जाने का मामला प्रकाश में आने का बाद नगर विकास विभाग के अंतर्गत आने वाले “स्वच्छता मिशन” में एक वित्तीय गडबडी की जानकारी सूत्रों के मुताबिक़ सामने आ रही है. परियोजना अधिकारियों की तैनाती की ही तरह इसमें भी बड़े खेल की बात सामने आ रही है. बताया जा रहा है कि मिशन में बड़े पैमाने पर वित्त विभाग की टिप्पड़ियों की अनदेखी करते हुए खेल किया गया है. साथ ही परियोजना अधिकारियों की पुनर्वापसी में तीन बड़े नामों का अहम रोल रहा है. फिलहाल “अफसरनामा” खोजबीन जारी है और जल्द ही इसका विस्तृत खुलासा होगा. बताते चलें कि इसके पहले 2018 में आगरा से विधायक जगन प्रसाद गर्ग ने बकायदा एक पत्र मंत्री नगर विकास विभाग को लिख विभाग में चल रहे पैसों के खेल को उजागर कर चुके हैं.

नगर विकास में रार, विशेष सचिव की पत्नी का कथित पत्र वायरल, ACS पर लगाये गंभीर आरोप, 3 पीओ की पुनः प्रतिनियुक्ति भी चर्चा में

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