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निदेशालय आंतरिक लेखा में चला आ रहा भ्रष्टाचार, यह रोग पुराना है, थोड़ी देर लगेगी

#निदेशक आंतरिक लेखा परीक्षा के स्तर से हुए तबादलों में हैं कई पेंच, शासन के जारी जांच आदेश पर भी सवाल.

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : “जब जागो तभी सवेरा” की तर्ज पर उत्तर प्रदेश शासन के वित्त विभाग ने निदेशक, आंतरिक लेखा एवं लेखा परीक्षा के स्तर से किए गए तबादलों में मनमानी और शासन की घोषित नीति से विचलन करते हुए किए गए तबादलों की जांच के लिए दो सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया. लेकिन इस कमेटी के गठन के बाद अभी तक खुलासा नहीं हुआ कि जांच केवल हालिया तबादलों की होगी या अंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय में तबादलों को मनमाने तरीके से करने या तबादला रोककर कर्मचारियों और अधिकारियों को कई सालों से एक ही जगह पर जमाए रखने में मददगार लोगों की होनी है.

बताते चलें की “अफसरनामा” ने लगातार आंतरिक लेखा निदेशालय में व्याप्त अनियमितताओं, भ्रष्टाचार, मनमानी और गुटबाजी को प्रश्रय देने जैसे अन्य प्रकरणों को सामने लाकर शासन को लगातार आगाह करता रहा है. लेकिन यह सूबे की अफसरशाही है जिसको सरकार की प्राथमिकताओं को दरकिनार कर केवल अपनी ही रफ़्तार से चलने में आनंद आता है. सूबे की आर्थिक नीतियों, वित्तीय संसाधनों और विकास को गहराई से प्रभावित करने वाले वित्त लेखा संवर्ग में मनमानी आम बात है. तबादलों का आलम यह है कि किसी के लिए दशकों तक एक ही जगह बनाए रखने की व्यवस्था है तो किसी के लिए एक दिन में कई आदेश जारी कर दिए जाते हैं. नजीर के तौर पर सहायक लेखाधिकारी हरीश कुमार चौधरी का प्रकरण इस बात को प्रमाणित करता है और शासन द्वारा जारी जांच के आदेश में ऐसे बिंदु पर मौन साधा गया है जोकि कहीं न कहीं संदेह उत्पन्न करता है और जिसका फायदा वर्षों से जमे कुर्सी के मठाधीशों को मिल सकता है.

उदाहरण के तौर पर सहायक लेखाधिकारी हरीश चौधरी के लिए तीन दिन में निदेशक द्वारा जारी तीन तबादला आदेश से उठ रहे सवा

फिलहाल शासन द्वारा जो जांच कमेटी गठित की गई है उसमें आलोक कुमार अग्रवाल वित्त नियंत्रक, कार्यालय, प्रमुख वन संरक्षक,उत्तर प्रदेश और समीर, विशेष सचिव, वित्त विभाग, उत्तर प्रदेश शासन को संयुक्त रूप से जांच अधिकारी नामित किया गया है. अब सवाल यह भी है कि दोनों ही अधिकारी संतोष अग्रवाल के ग्रेड वेतन से ऊपर नहीं है जबकि आलोक अग्रवाल स्वयं उसी काडर के हैं, जिस कैडर की संतोष अग्रवाल हैं. आलोक अग्रवाल का नाम तब भी सुर्खियों में आया था जब हरदोई कोषागार में हुए अवैध पेंशन निकासी के लिए इन्हें जांच अधिकारी नामित किया गया था. और उसके बाद पेंशन की अवैध निकासी के प्रकरणों की अन्य कोषागारों में भी जांच की मांग उठी थी, जिसका अंजाम जग जाहिर है.

वित्त सेवा के बड़े अधिकारियों की भूमिका भी संदेह के घेरे में

अंतरिक लेखा परीक्षा निदेशालय में निदेशक का पद उत्तर प्रदेश राज्य वित्त लेखा सेवा की 10000 ग्रेड पे वाले अधिकारियों में से किसी एक को सौंपा जाता है. जिससे अलग-अलग विभागों में तैनात वित्त नियंत्रक अपने चहेतों को बनाए रखने के लिए सिफारिश करने में सफल रहे हैं. यही कारण है कि हर साल करीब सैकड़ों ट्रांसफर पोस्टिंग होने के बाद भी जुगाड़ वाले लेखाकार एक ही विभाग में 20 वर्ष से भी ज्यादा समय से जमे हैं और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है.

निदेशक और निदेशालय को लेकर कुछ और बिंदु हैं जिनपर जांच समिति को फोकस करना जरूरी है. हांलांकि जांच का दायरा क्या होगा इस पर जारी आदेश फिलहाल मौन है. यह बिंदु निम्न हैं.

1. दशकों से एक जगह पर जमे लेखाकारों को निदेशक द्वारा छुआ तक नहीं गया. सूत्रों के अनुसार कि इसमें “एनडीए यानी नान डिस्टर्बिंग एलाउंस” फैक्टर काम कर गया है.

2. आंतरिक लेखा निदेशालय में मनमानेपन के उदाहरण कम नहीं हैं. अगर सरकार व शासन गंभीरता से जांच करता है तो तमाम प्रकरण सामने आयेंगे. फिलहाल नजीर के तौर पर देखें तो एक ही कार्मिक का तीन बार इस दौरान तबादला किया जाता है और स्थानातरण आदेश की कापी तत्काल उसको पहुंचा दिया जाता है जबकि अन्य को कई-कई दिनों तक इसके लिए इन्तजार करना पड़ा है. विभाग के जानकारों का कहना है कि यह सब मनमाफिक व मालदार विभागों में तैनाती के लिए किया गया ऐसा खेल है जिसने बाकियों में असंतोष फैलाने और भ्रष्टाचार को बढावा देने का काम किया है.

3. वित्त विभाग में योगी सरकार बनने के साथ ही वित्त विभाग के अपर मुख्य सचिव और विभागीय मंत्री के बीच के आपसी समन्वय की कमियों की चर्चा शुरू से चली आ रही है. और निदेशक आंतरिक लेखा रहीं संतोष अग्रवाल को कहीं न कहीं से इसका लाभ भी मिलता रहा है. जानकार बताते हैं कि योगी सरकार में बरेली से आने वाले वित्त मंत्री राजेश अग्रवाल रहे हों या फिर शाहजहांपुर से आने वाले सुरेश खन्ना इन सब से निदेशक को क्षेत्रीय सहानुभूति मिलती रही है और यह अभी तक निदेशक आंतरिक लेखा की कुर्सी पर बैठ मनमाना रवैया अपनाए रहीं.

सूत्रों के मुताबिक़ इसबार सरकार की गुडबुक में शुमार अपर मुख्य सचिव वित्त की नाराजगी इनपर भारी पड़ गयी और इनको पद से हटना पड़ा. फिलहाल योगी सरकार की भ्रष्टाचार को लेकर उठाया गया यह कदम स्वागत योग्य है लेकिन जांच का दायरा और उसमें शामिल न किये गये अन्य बिंदु सवाल जरूर खड़े कर रहे हैं. बाकी वास्तविक स्थिति जांचोपरांत सामने आएगी और लोगों में उपज रही आशंका और सवाल का जवाब भी मिल जायेगा. “अफसरनामा” द्वारा भी उठाये गये सवालों की मीमांसा जांच रिपोर्ट पर आधारित होगी.

“अफसरनामा” की खबर पर लगी मुहर, ट्रांसफर पोस्टिंग में धांधली के आरोप में निदेशक आंतरिक लेखा संतोष अग्रवाल हटीं

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