#अरविंद देव के बाद क्या आईएएस मनोज कुमार के धतकर्मों पर पड़ेगी नजर.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : “खुद मियां फजीहत, दूसरों को दे रहे नसीहत” राजधानी लखनऊ में एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी के घर बुधवार को बड़े आयकर छापे के बाद 63 लाख की नगदी और 3 किलो सोना मिलने के बाद उत्तर प्रदेश की अफसरशाही में अब यह जुमला आम हो गया है. इस बात को लेकर अब चर्चाएं गर्म है कि यूपी कैडर के IAS व PCS संवर्ग के नए अफसरों को ट्रेनिंग देने वाले संस्थान के महानिदेशक का खुद जब यह हाल है तो वे आने वाली पौधों को क्या शिक्षा देंगे. सूबे के अफसरों की इन चर्चाओं में यह सवाल भी है की ऐसे अफसरों की तैनाती के समय सरकार और उसके जिम्मेदार अफसर क्या देखते हैं? क्या ऐसे अफसरों की तैनाती के समय उनके क्रियाकलाप और कारनामों का अध्ययन नहीं किया जाता.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स् सव्च्छता मिशन को पलीता लगाते हुए प्रापर्टी डीलरों को पखाने के धंधे में लाने वाले वरिष्ठ आईएएस व प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार हों या स्मार्ट सिटी परियोजना का मखौल बनाते हुए धंधेबाज एनजीओं को पनपाते कानपुर के नगर आयुक्त अविनाश सिंह, भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन की कामना कर भाजपा को सत्ता में लायी प्रदेश की जनता इन दागी अफसरों पर कारवाई होते देखना चाहती है.
सवाल भी जायज है करीब डेढ़ दो दशक बाद उत्तर प्रदेश में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में एक पूर्ण बहुमत की मजबूत सरकार बनी तो यह आस जगी की अब उत्तर प्रदेश की अफसरशाही काबू में रहेगी और उनके द्वारा किए जा रहे मनमाने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा. कुर्सी संभालते ही योगी आदित्यनाथ ने भी अपनी कार्यप्रणाली से कुछ इसी तरह के संकेत दिए और कहा भी कि उनकी सरकार जीरो टॉलरेंस की होगी. लेकिन अफसरशाही वह घोड़ा है जिस पर सवारी करने वाला घुड़सवार अगर थोड़ी भी लगाम ढीली कर दे या फिर कमजोर हो जाय तो व्यवस्था में अरविंद सिंह देव जैसे तमाम अफसर महत्वपूर्ण जगहों पर स्थापित होने में कामयाब हो अपने कारनामों को अंजाम देते हैं. और अगर ऐसे अफसरों को नेता नगरी का भी साथ मिल जाए तो वे इस तरह के कारनामे करना अपना कर्तव्य व धर्म समझते हैं.
राजधानी लखनऊ में ही मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल में संघ विचारधारा से आए कद्दावर मंत्री सुरेश खन्ना के नाक के नीचे मनोज कुमार सिंह जैसे आईएएस मनमानी काट रहे हैं. पिछली सरकार से राजधानी लखनऊ के नगर आयुक्त उदयराज तब आजम खान के करीबी थे और अब योगी सरकार के भी लाडले बने हुए हैं और अपने कारनामों को बखूबी अंजाम दे रहे हैं. यही नहीं कानपुर के नगर आयुक्त अविनाश सिंह जो कि प्रधानमंत्री मोदी की स्वच्छता मिशन को पलीता लगा रहे हैं खुद कई तरह की इंक्वायरी में फंसे हुए हैं. इसके अलावा राजधानी लखनऊ से सटे जिले के कप्तान पर पिछले दिनों उन्हीं के स्टाफ ने जिले के थानों को 6-6 लाख में बेचने का आरोप लगाया लेकिन वह आज भी वही तैनात हैं. गोरखपुर के डीएम राजीव रौतेला तीन महीने से कोर्ट के आदेश के बावजूद नहीं हटाए जा सके जबकि वो खुलेआम कहते सुने जा चुके हैं कि में तो योगी जी का यूनिवर्सिटी में सीनियर था.
ऐसे में जब राजधानी लखनऊ और उसके सटे जिलों का यह हाल है बाकी प्रदेश की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसा क्यों हो रहा है, यह तो सरकार ही जाने लेकिन व्यवस्था और उसमे बैठे जिम्मेदार लोगों पर यह सवाल तो उठता ही है. अफसरों की तैनाती में वर्षों से चल रहा खेल आज भी अनवरत जारी है, पिछली अखिलेश सरकार पर जिन आरोपों को आधार बनाकर सत्ता में आई भाजपा की योगी सरकार आज खुद उसी राह पर चल रही है. इस तरह के अफसरों की महत्वपूर्ण जगहों पर तैनाती को देखते हुए कहां जा सकता है कि अफसरों की तैनाती में योग्यता और छवि कोई मायने नहीं रखता बल्कि पुरानी व्यवस्था ही प्रभावी दिखती है. शायद लोकसभा उपचुनाव में खुद मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की सीटों पर मिली भाजपा की हार की वजह भी यही अफसर ही रहे.