#गोरखपुर के डीएम रहे राजीव रौतेला अपने मूल कैडर उत्तराखंड हुए वापस
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ. दो दिन पहले ही उन्हें कमिश्नरी मिली और सोमावर की शाम होते-होते उनके उत्तराखंड डिस्पैच होने की खबर भी आ गई. दिलचस्प मामला यह है कि राजीव रौतेला को उत्तराखंड में ड्यूटी 18 साल पहले ही ज्वाइन कर लेनी थी, लेकिन सियासी तौर पर ज्यादा मजबूत राज्य होने के चलते उन्होंने सियासी जुगाड़ के जरिए, उत्तर प्रदेश में अपनी नौकरी जारी रखी और यहीं बने रहे. लेकिन गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव में बीजेपी की सीट हाथ से निकल जाने के बाद केंद्र सरकार को भी अचानक याद आ गया कि यह अफसर उत्तर प्रदेश में नही उत्तराखंड में तैनात होना चाहिए. रौतेला की शिकायत चुनाव आयोग ने भी की थी. गोरखपुर में हुई बच्चों की मौत के बाद भी वहीँ जमे रहे रौतेला मुख्यमंत्री योगी से करीबी जगजाहिर थी शायद इसीलिए सीएम योगी ने लोकसभा उपचुनाव में मिली हार के बाद हटाया तो लेकिन प्रमोशन के साथ.
राजीव रौतेला योगी आदित्यनाथ के यूपी सीएम बनने के बाद चर्चा में आए आये अपनी कार्रगुजारियों से लगातार बने रहे. बीते साल अगस्त में ऑक्सीजन की कमी के चलते गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में करीब 60 बच्चों की मौत ने तूफान खड़ा कर दिया. रौतेला उंस समय गोरखपुर के डीएम थे. उनकी लापरवाही के कारण मामला पहले राष्ट्रीय स्तर पर उछला और उसके बाद अंतरष्ट्रीय मीडिया में छा गया. लेकिन रौतेला की लापरवाही उनके सीएम योगी के पहाड़ कनेक्शन के चलते नजरअंदाज कर दी गई. इसके बाद हाइकोर्ट ने भी रौतेला के रामपुर में तैनाती के दौरान हुए अवैध खनन के मामले में उनको सस्पेंड किए जाने की संस्तुति कर दी. लेकिन जैसे रौतेला तो सरकार से अभयदान लेकर आए थे. एक बार फिर उनका कुछ नहीं बिगड़ा. रौतेला गोरखपुर में ही जमे रहे और तबतक जमे रहे जबतक कि बीजेपी के लिए नाक का सवाल बनी गोरखपुर लोकसभा सीट हाथ से नहीं निकल गई. वोटिंग के बाद काउंटिंग के दौरान राजीव रौतेला की भूमिका संदिग्ध रही, उन्होंने काउंटिंग के दौरान अचानक मीडिया कवरेज पर रोक लगा दी और मीडिया कर्मियों को काउंटिंग की जगह से बाहर कर दिया. उनके इस आदेश के चलते काउंटिंग प्रक्रिया की निष्पक्षता ओर सवाल उठने शुरू हो गए. पूरे मामले में दिलचस्प बात यह रही कि रौतेला तीन महीने पहले ही प्रमुख सचिव यानि कि कमिश्नर की पोस्ट के लिए प्रमोट हो चुके थे. लेकिन सीएम ने उन्हें गोरखपुर का डीएम बनाए रखा. चुनावों में हार के बाद शुक्रवार की देर रात 37 आईएएस अफसरों के तबादले हुए, उसमे रौतेला का नाम बतौर देवी पाटन कमिश्नर का था. सोमवार को जबतक वे गोरखपुर से देवी पाटन के लिए रवाना होते, उससे पहले ही उनका बोरिया बिस्तर प्रदेश से बांधने का हुक्म आ गया. रौतेला की विदाई का सबब बना साल 2000 का वो आर्डर जो उनको उत्तराखंड बनने के बाद वहां भेजने के लिए निकला था. कहा जा रहा है कि सीएम योगी से बेहद करीब का कनेक्शन निकाल चुके रौतेला बीजेपी सरकार के लिए लगतार शर्मिंदगी का कर्ण बन रहे थे. इसी के चलते बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व के इशारे ओर केंद्र सरकार ने राजीब रौतेला का फील्ड प्लेसमेंट बदलने के बजाय सीधा बाउंड्री के बाहर कर दिया.