अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : एक तरफ जहां एससी/एसटी एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर देश भर में आन्दोलन शुरू हुआ और देश में तमाम जगहों से हिंसा और झड़प की खबरें आयीं, ऐसे में उत्तर प्रदेश के एक सीनियर पीपीएस अफसर बीपी अशोक ने इसपर चिंता जाहिर करते हुए अपने इस्तीफे की पेशकस की है. लखनऊ पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय में अपर पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात पीपीएस अधिकारी बीपी अशोक ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र भेजकर इस्तीफे की पेशकश किया है. पीपीएस अशोक का यह कदम फिलहाल सत्ता और सियासी गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है.
पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय में बतौर अपर पुलिस अधीक्षक पद पर तैनात डॉ. बीपी अशोक ने राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में दलितों के वर्तमान हालात पर चिंता जाहिर की है. उन्होंने अपने त्यागपत्र में लिखा कि देश में वर्तमान में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो गई हैं, जिसके कारण उन्हें हृदय से भारी आघात पहुंचा है. कुछ बिंदुओं को संज्ञान में लाकर अपने जीवन का बहुत कठोर निर्णय ले रहा हूं. बीपी अशोक ने लिखा है कि एससी-एसटी को कमजोर किया जा रहा है. उन्होंने राष्ट्रपति से संसदीय लोकतंत्र को बचाने की अपील करते हुए उन्होंने लिखा कि रुल ऑफ जज, रुल ऑफ पुलिस के स्थान पर रुल ऑफ लॉ को सम्मान प्रदान किया जाए. उन्होंने महिलाओं का भी मुद्दा उठाते हुए लिखा है कि उन्हें भी अभी तक पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. बीपी अशोक ने लिखा है कि महिलाओं, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक वर्ग को अभी तक न्यायालयों में प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है.
उन्होंने आगे लिखा है कि प्रमोशन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. उन्होंने इंटरव्यू की व्यवस्था पर सवाल उठाहते हुए कहा है कि श्रेणी चार से श्रेणी एक तक इंटरव्यू युवाओं में आक्रोश पैदा कर रहे हैं. इसलिए सभी इंटरव्यू खत्म कर दिए जाने चाहिए. उन्होंने ‘जाति’ के खिलाफ स्पष्ट कानून बनाया जाने की मांग की है. उन्होंने कहा कि इन संवैधानिक मांगों को माना जाए या मेरा त्यागपत्र स्वीकार किया जाए. पूरे देश के आक्रोशित युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील करते हुए डॉ. अशोक ने कहा कि इस परिस्थिति में मुझे बार-बार यही विचार आ रह है कि अब नहीं तो कब, हम नहीं तो कौन?