#मंत्री खन्ना कैंटीन में तो प्रमुख सचिव एनजीओ पोसने में मस्त
#आखिर किस मजबूरी के तहत रुका था प्रमुख सचिव नगर विकास का तबादला
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : संघ के जीवनव्रती की कमान में उत्तर प्रदेश का नगर विकास विभाग मोदी-योगी के सपनो, संकल्पों और सुशासन को पलीता लगाने में जुटा है. लोकसभा चुनाव की दहलीज पर खड़ी केंद्र सरकार की चहेती योजनाएं हों या योगी के सुशासन का दावा इन सब पर प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार भारी पड़ते दिख रहे हैं. मोदी जी के स्वच्छता अभियान का जमकर मखौल उड़ रहा है तो जहां सोच वहां शौचालय के नारे की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. प्रमुख सचिव ने पैखाने बनवाने का काम प्रापर्टी डीलरों को सौंप रखा है तो मंत्री सुरेश खन्ना मोदी के संकल्पों, वादों को भूल चावल कारोबारी के हाथों विधानसभा की कैंटीन सौंप पेट पूजा में लगे हुए हैं. नगर विकास विभाग में अराजकता का आलम यह है कि स्मार्ट सिटी के नाम पर दागी एनजीओ के सहारे कानपुर के नगर आयुक्त आंखों में धूल झोंकने में जुटे हैं और प्रमुख सचिव के खासुलखास स्वच्छता अभियान के सलाहकार बन मलाई चाट रहे हैं.
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सदन में गूंजा खन्ना के ख़ास की कैंटीन का मुद्दा, पक्ष-विपक्ष विधायक बोले घटिया खाना महंगे दाम
उत्तर प्रदेश का नगर विकास विभाग भ्रष्टाचार का अड्डा बन गया है या यूं कहिये विभाग के मुखिया सहित अफसरान एक संगठित गिरोह के तौर पर अपने कामों को अंजाम दे रहे हैं. जीरो टोलरेंस वाली योगी सरकार की कोई भी नीति इनपर प्रभावी नहीं दिख रही है. नगर विकास में जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तबादला नीति को अनदेखी की गयी है वहीँ उनकी भ्रष्टाचार की मुहीम को भी ठेंगा दिखाया जा रहा है. नगर विकास विभाग के मंत्री और उनके अफसरान के कारनामों पर नजर डालें तो यही साबित होता है.जिस विभाग के मंत्री विधानसभा की कैंटीन को अपने चहेतों को दिलाने में दिलचस्पी रखते हो और कैंटीन के बिल के भुगतान के लिए खुद दूसरे विभाग के प्रमुख सचिव पर दबाव बनाते हों, जिस विभाग के प्रमुख सचिव ग्राम विकास विभाग, नगर विकास विभाग से लेकर जल निगम तक एनजीओ माफिया के तौर पर विख्यात हो चुका हो तो यही कहा जा सकता है. जब इस तरह से संगठित होकर किसी भी भाग में शीर्ष पदों पर बैठे लोग कारनामों को अंजाम देंगे तो उसके परिणाम और योजनाओं की जमीनी हकीकत की परिकल्पना की जा सकती.
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प्रापर्टी से पैखाने के धंधे में उतरा दलाल, प्रमुख सचिव मेहरबान
प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार की कृपा से नगर विकास विभाग में एनजीओ राज तो था ही अब इसका विस्तार जल निगम तक किया जा चुका है. प्रमुख सचिव ने सीवर कनेक्शन के लिए प्रेरित करने के काम के लिए जल निगम में 20-25 एनजीओ लगा रखे हैं जबकि कनेक्शन देने का काम विभागीय कर्मचारी ही करेंगे. जल निगम में लगे इन एनजीओ को प्रति कनेक्शन 200 रूपये मिलने हैं जिसका अग्रिम भुगतान भी किया जा चुका है जबकि काम की जमीनी हकीकत किसी से छुपी नहीं है. मजेदार बात तो यह है कि इन एनजीओ का चयन RCS ने किया जोकि एक शैक्षणिक संस्था है कार्यदायी संस्था नहीं कि जिसको कार्य का अनुभव हो. वजह साफ़ है कि अपने जेबी एनजीओ को लाभ पहुंचाने की खातिर उनके चयन से लेकर कामकाज में भी प्रमुख सचिव नगर विकास द्वारा यह पूरा खेल किया जा रहा है. सीवर कनेक्शन का यह काम लोकल बाडी जल निगम, नगर निगम आदि से न कराकर जेबी एनजीओ से कराना अपने में एक सवाल खडा करता है जबकि विभागों में सरकारी स्टाफ मौजूद हैं. ऐसे में सीवर कनेक्शन का अग्रिम भुगतान और सीवर कनेक्शन की जमीनी हकीकत किसी न किसी बड़े घोटाले की तरफ इशारा करती है.
इसके अलावा प्रमुख सचिव मनोज कुमार के नगर विकास से जो जानकारी सामने आई है उसमें मनोज कुमार के कारनामों की बिना बिल के सत्यापन के भुगतान पर आपत्ति वित्त नियंत्रक, अनूप द्विवेदी के साथ ही साथ खुद तत्कालीन मिशन डायरेक्टर ने भी लगाई थी. फिलहाल मनोज द्विवेदी प्रमुख सचिव की प्रताड़ना और कारनामों से परेशान होकर इस्तीफा दे चुके हैं और अपने इस्तीफे में तमाम आरोप भी लगाए हैं. फिलहाल प्रमुख सचिव नगर विकास मनोज कुमार सिंह खुद एक पूर्णकालिक मिशन डायरेक्टर के चार्ज में हैं. ऐसे में बिल भुगतान व उसके सत्यापन को लेकर वित्त नियंत्रक व तत्कालीन मिशन डायरेक्टर द्वारा लिखे गए पत्र और अनूप दिवेदी का इस्तीफ़ा व लगाये गए आरोप नगर विकास में किसी बड़ी गड़बड़ी की तरफ इशारा करते हैं. मजे की बात तो यह है कि यह सब जब जीरो टॉलरेंस का नारा देने वाली भाजपा और उसके ईमानदार मुख्यमंत्री तथा उसके विभागीय मंत्री जोकि खुद संघ विचारधारा से आए हैं सुरेश खन्ना की नाक के नीचे हो रहा है.
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स्वच्छ भारत मिशन में एनजीओ राज, बिना बिल सत्यापन के भुगतान का दबाव
स्वच्छ भारत मिशन में एनजीओ राज का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रमुख सचिव द्वारा अपने कनिष्ठों पर बिना बिल सत्यापन के भुगतान का दबाव बनाया गया जोकि वित्त नियंत्रक और तत्कालीन मिशन डायरेक्टर के पत्रों से साफ़ हो जाता है. कुछ ऐसे ही आरोप विभाग के पूर्व अधिकारी अनूप द्विवेदी ने भी बातचीत में लगाए. नगर विकास में 900 करोड़ रूपये शौचालय बनवाने के लिए और 300 करोड़ रूपये उसके प्रचार प्रसार (IEC) के लिए बजट आवंटित किया गया था. सूत्रों के मुताबिक पूर्व में इन्हीं सब गड़बड़ियों के चलते मनोज कुमार को नगर विकास से हटाने की तैयारी हो चुकी थी खुद मुख्य सचिव राजीव कुमार भी मनोज कुमार को हटाने के पक्ष में थे लेकिन कतिपय मजबूरियों के चलते यह नहीं हो सका जो कि एक बड़ा सवाल और बड़े घोटाले की तरफ इशारा करता है.