#सरकार किसी की भी हो उमाशंकर का जलवा रहा था बरकरार.
#RES में पहले पारस के बाद में मोती के दुलारे रहे उमाशंकर, अब पड़ी सीएम योगी की नजर.
#आज भी हैं मोती के प्यारे, और अपने प्यादों के सहारे विभाग में हनक रखे हैं बरकरार.
#RES का विवादित चीफ इंजीनियर उमाशंकर का योगिराज में भी जुगाड़ रहा मजबूत.
#प्रोन्नति में आरक्षण का लाभ देते हुए उमाशंकर को 15 अप्रैल 2005 को मुख्य अभियंता स्तर- 2 बनाया गया था जो बाद में निदेशक भी बने.
#RES के पूर्व मंत्री पारसनाथ का उमाशंकर की फाईल पर किये गए अनुमोदन के शब्द “प्रत्यावेदन के निस्तारण हेतु माननीय मुख्यमंत्री जी को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं है”.
#भ्रष्टाचार की मिशाल रहे RES के पूर्व निदेशक उमाशंकर को योगी सरकार में मंत्री मोती सिंह से भी मिला संरक्षण.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : हर सरकार मे जलवा काटने वाले ग्रामीण अभियंत्रण सेवा आरईएस के इंजीनियर व पूर्व निदेशक उमाशंकर के मोहपाश से योगी भी न बच सके. योगी सरकार के आरईएस मंत्री मोती सिंह तो इस कदर उमाशंकर के ईश्क मे गिरफ्तार रहे कि विभाग के प्रमुख सचिव, सचिव को भी दरकिनार कर बस उसी की सुनते रहे. उमाशंकर का रसूख इतना था कि मनमुताबिक काम न पूरा होने पर प्रमुख सचिव तक को चलता करवा दिया था और भ्रष्टाचार में गले तक डूबने के बाद भी ससम्मान माला पहनकर पूर्व निदेशक उमाशंकर रिटायर हुआ.
सरकार किसी की भी रही हो, मुख्यमंत्री और मंत्री कोई भी रहे हों इस इंजीनियर में ऐसा जादू था कि सबके सब इसके मुरीद होते गये. कलंक कथा के पर्याय यादव सिंह जैसे स्वनामधन्य इंजीनियर भी इनकी कलाकारी के आगे बौने नजर आते हैं. मुलायम सिंह यादव, मायावती और अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्व काल को पार करते हुए तमाम इल्जामों से घिरे इस बाजीगर इंजीनियर ने योगी सरकार में भी अपनी अच्छी घुसपैठ बना लिया था जिसका खुलासा कई बार मीडिया द्वारा किया जा चुका था. बात हो रही है ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के पिछले एक दशक से ज्यादा समय से विभागीय प्रमुख रहे पूर्व चीफ इंजीनियर उमाशंकर की जो अखिलेश सरकार में डिमोट होने के बाद फिर प्रमोट हो गए और अपना रिटायरमेंट योगिराज में मंत्री जी की मेहरबानी से पूरा करने में कामयाब रहे.
मायावती सरकार में चलाई गई अंबेडकर ग्राम CC रोड योजना से कमाई का जो धंधा शुरू हुआ वह अखिलेश सरकार के लोहिया ग्राम योजना तक जारी रहा. इसी योजना के एक बड़े हिस्से को ऊपर तक पहुंचाने में पूरी तरह से संलिप्त रहा उमाशंकर जिससे सरकार किसी की भी रही हो इस का जलवा बरकरार रहा था. जिसकी बानगी पूर्व RES मंत्री पारसनाथ यादव का उमाशंकर की तैनाती पर फाईल पर किया गया वह नोट रहा जिसका जिक्र हालिया खबरों में भी किया जा रहा है. इसके अलावा योगी सरकार में ग्रामीण अभियंत्रण मंत्री मोती सिंह द्वारा भी उमाशंकर को पूरा बचाने का काम किया गया और रिटायरमेंट तक उनको सेफ बनाए रखा गया, जबकि सरकार की मंशा भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को किनारे करने की रही थी. ऐसे में चर्चित और घोषित भ्रष्टाचारी उमाशंकर को संरक्षण भाजपा की योगी सरकार में भी मिला.
उमाशंकर के बारे में मशहूर था कि इनके कारनामों की जांच करने वाले या इनके कामों पर ऊँगली उठाने वाले प्रमुख सचिव स्तर के आईएएस अफसर विभाग से हटा दिए जाते हैं लेकिन अपनी अद्भुत क्षमता के बल पर ये जनाब अपनी कुर्सी पर और ज्यादा मजबूत हो जाते हैं. जानकारी के मुताबिक़ उमाशंकर के प्रभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता ही कि विभाग में प्रमुख सचिव की तैनाती और स्थानान्तरण भी इनके मनमाफिक होते रहे हैं. तत्कालीन विभागीय मंत्री की सांठगाँठ के चलते उमाशंकर के सामने प्रभात कुमार, कुमार कमलेश, सूर्य प्रताप सिंह, मनोज कुमार और अजय कुमार सिंह जैसे दिग्गज आईएएस अफसर भी उमाशंकर की मर्जी के खिलाफ विभाग में आवश्यक कार्यवाही करने में खुद को असमर्थ पाते रहे और जिसने कोशिश भी की उसका तबादला कर दिया गया था.
ध्यान रहे पदोन्नति में आरक्षण एवं परिणामी ज्येष्ठता का लाभ न दिए जाने सम्बन्धी सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय दिनांक 27 अप्रैल 2012 के परिप्रेक्ष में उत्तर प्रदेश शासन के कार्मिक विभाग के शासनादेश संख्या 8/4/1/2000 tc-1–क-2/2015 दिनांक 21 अगस्त 2015 द्वारा उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा नीति निर्धारित की गयी और उस नीति के अनुसार कार्यवाही करते हुए ग्रामीण अभियंत्रण विभाग उत्तर प्रदेश शासन के कार्यालय ज्ञाप संख्या १०९/२०१५/३९३१/९२-1-२०१५-५८(अधि)/२०१५ दिनांक 9 सितम्बर २०१५ द्वारा तत्कालीन निदेशक एवं मुख्य अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग को पदोन्नति में प्राप्त आरक्षण का लाभ समाप्त कर अधीक्षण अभयन्ता के पद पर पदावनत कर दिया था. पदावनति के बाद उमाशंकर अधीक्षण अभियंता ग्रामीण अभियंत्रण विभाग परिमंडल फैजाबाद बनाये गए जहाँ पर उमाशंकर ज्वाइन न करके अवकाश पर चले गए और वापस तब आये जब फिर से निदेशक बनने में कामयाब रहे.
मजे की बात ये है कि जिस आदेश के द्वारा उमाशंकर को पुनर्बहाल किया गया उस आदेश को न तो विभाग की वेबसाईट पर डाला गया था और न ही किसी अन्य विभागीय अधिकारी को उपलब्ध कराया गया था. ऐसे में यह रहस्य ही रहा था कि उमाशंकर को निदेशक ग्रामीण अभियंत्रण के पद पर बहाली के आदेश का आधार क्या था और इसकी संस्तुति किसके द्वारा की गयी थी. ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद डिमोशन की कार्यवाही तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के अनुमोदन के बाद की गयी थी. वैसे भी सीनियरिटी लिस्ट में उमाशंकर कई अधीक्षण अभियंताओं से नीचे हैं, तो बिना आरक्षण का लाभ लिए ये मुख्य अभियंता अथवा निदेशक का चार्ज बिना किसी वजह के कैसे ले सकते थे. सुप्रीम कोर्ट के उक्त आदेश के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण का लाभ लेने वाले अधिकारी को डिमोट करने के बाद किसी तरह का अतिरिक्त प्रभार नहीं दिया जा सकता.
लेकीन आज जब पूर्व निदेशक RES उमाशंकर रिटायर हो हुके हैं तब जाकर योगी सरकार की नींद खुली और APC की जांच में उन्हीं तथ्यों का खुलासा हुआ जोकि मीडिया द्वारा पहले भी उठाया जा चुका है. कृषि उत्पादन आयुक्त डॉक्टर प्रभात कुमार की उच्च स्तरीय जांच में पूरे मामले का खुलासा होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सेवानिवृत्त हो चुके उमाशंकर को पदावनत करने के साथ ही उससे अतिरिक्त वेतन भत्ते व् पेंशन के पैसों की वसूली करने और तत्कालीन अनुसचिव रामरतन, अनुभाग अधिकारी जयपाल सिंह को निलंबित करने के निर्देश दिए हैं, दोनों के खिलाफ अनुशासनिक कार्यवाही भी होगी.
बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 27 अप्रैल 2012 को प्रोन्नत में आरक्षण व् परिणामी ज्येष्ठता की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित करते हुए वर्ष 1997 के बाद के मामलों में संबंधित कार्मिकों को पदावनत करने का आदेश दिया था जिस पर कार्मिक विभाग ने 21 अगस्त 2015 को शासनादेश जारी किया ऐसे में 9 सितंबर 2015 को तत्कालीन मुख्यमंत्री के अनुमोदन से उमाशंकर को निदेशक पद से अधीक्षण अभियंता के पद पर पदावनत कर दिया गया. पूरे प्रकरण की उत्पादन आयुक्त द्वारा कराई गई जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. सूत्रों के अनुसार उमाशंकर के प्रत्यावेदन के तथ्यों का परीक्षण न करते हुए उन्हें यथावत स्वीकार कर लिया गया. फाइल में पदावनति करने व पदावनति समाप्त करने की टिप्पणियां विरोधाभासी हैं. जांच में पाया गया कि उमाशंकर को पदावनति समाप्त करने के लिए उत्तर प्रदेश कार्य नियमावली 1975 की व्यवस्था को अनदेखी की गई. संबंधित मामले में अनिवार्य रूप से मुख्यमंत्री से अनुमोदन तक नहीं लिया गया. तत्कालीन विभागीय सचिव ने नियमानुसार मुख्यमंत्री का अनुमोदन लेने के लिए फाइल पर टिप्पणी की थी लेकिन मंत्री पारसनाथ ने अफसरों की टिप्पड़ी खारिज करते हुए सीधे आदेश निर्गत करने के लिए अनुमोदित कर दिया. आश्चर्यजनक तरीके से पूर्व मंत्री पारसनाथ यादव ने अपने अनुमोदन में लिखा कि “प्रत्यावेदन के निस्तारण हेतु माननीय मुख्यमंत्री जी को कष्ट देने की आवश्यकता नहीं है”.