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ओबरा फूंकने वालों ने भरमाया, खुद जांच कर बेकसूर को मार गिराया

#जांच अधिकारी गुच्छ के जालसाजी गुच्छे के जाल में तेज तर्रार एमडी पांडियन भी फंस गए.

#इंजीनियर सुरेश को खामियों की ओर इशारा करने और सही कदम उठाने की राय देने की सजा दे दी गई.

#अधीक्षण अभियंता की टिप्पड़ी की गलत ब्याख्या कर आग लगने के कारणों की जांच को निपटाया.

अफसरनामा ब्यूरो  

लखनऊ : उत्पादन निगम के शातिर खिलाड़ी निदेशक बीएस तिवारी और जांच अधिकारी बने गुच्छ की सांठगांठ ने ओबरा बिजली घर अग्निकांड का राज बाहर नहीं आने दिया. खराब और न चलने वाली हालत को पहुंच चुकी ओबरा की यूनिट को जबरन चलवा फुंकवा देने के असली गुनाहगार न केवल साफ बच निकले बल्कि एमडी को गुमराह कर निर्दोषों का कत्ल करने में जुट गए.

ओबरा बिजली घर अग्निकांड की जांच करने वाले अफसर गुच्छ ने जालसाजी का गुच्छा कुछ इस तरह उलझाया कि तेज तर्रार एमडी पांडियन भी जाल में फंस गए. ओबरा बिजली घर में जहां आग लगी थी वहीं कुछ दिनों पहले योगी सरकार ने नवीनीकरण पर 250 करोड़ रुपये खर्च किया था और अब जलने के बाद मरम्मत पर इतना ही खर्चेगी. बलि का बकरा बनाए गए इंजीनियर सुरेश को खामियों की ओर इशारा करने और सही कदम उठाने की राय देने की सजा दे दी गई.

ओबरा बिजली घर फुंकवा योगी सरकार को करीब 500 करोड़ की चपत लगाने वाले अफसरों ने खुद ही अपने कुकर्मों की जांच की और उत्पादन निगम एमडी की आंखों में धूल झोंक एक बेकसूर दलित इंजीनियर को बलि का बकरा बना दिया. अधीक्षण अभियंता की टिप्पड़ी की गलत ब्याख्या करके उसको नाप दिया और आग लगने के कारणों की जांच को ठन्डे बस्ते में डाल दिया.

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और उसके ऊर्जा मंत्री कितने भी दावे करें कि उनके शासनकाल में अफसरों की कार्यशैली में बदलाव आया है, और भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, या फिर उसमें कमी आई है. यह महज एक जुमलेबाजी ही साबित हो रही है खासकर बिली विभाग में. ओबरा विद्युत् ताप गृह में 14 अक्टूबर को हुए अग्निकांड की जांच रिपोर्ट देखने के बाद बात साबित होती दिख रही है.

निलंबन आदेश में अधिशाषी अभियंता के पत्र का हवाला देते हुए लिखा गया है कि जांच समिति द्वारा उपलब्ध कराई गयी आख्या के सम्यक परीक्षणोंपरांत यह पाया गया कि अधीक्षण अभियंता सुरेश द्वारा बिना गंभीरता से विचार किये हुए इसे सरसरी तौर पर बिना गंभीरता से विचार किये हुए इसे सरसरी तौर पर अनर्गल टिप्पड़ी के साथ वापस कर दिया गया कि इतनी पुरानी व वृद्ध परियोजना BTPS की केबल गैलरी में फायर फाईटिंग सिस्टम स्थापित किये जाने का “औचित्य” नहीं है, जबकि उक्त पत्र में जिसका हवाला निलंबन आदेश में दिया गया है, कहीं पर भी इस “औचित्य” शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है.

अधीक्षण अभियंता सुरेश का निलंबन आदेश ……

टिप्पड़ी में अधीक्षण अभियंता द्वारा लिखा गया है कि “कृपया समादेष्टा के कार्यालयी पत्रांक के साथ लेकर आप और अधोहस्ताक्षरित मुख्य अभियंता (प्रशासन) मुख्य महा प्रबंधक महोदय से वार्ता कर लें ताकि प्रकरण स्पष्ट हो जाए कि Cable Gallary पर फायर फाइटिंग सिस्टम का कार्य करवाना है या नहीं, अभी तक जो मुझे जानकारी दी गई है उसके अनुसार इतनी पुरानी व बूढ़ी परियोजना टीपीएस की केबल गैलरी में फायर फाइटिंग सिस्टम लगाना नहीं है. निकट भविष्य में 3*200 mm BTPS भी बंद हो जाएगी ऐसी सूचना मिल रही है. इसलिए इतना पैसा लगाना उचित होगा या अनुचित शीर्ष प्रबंधन ही निर्देश दे सकता है.” उत्पादन निगम के मुख्य आदेशों मे कार्मिक विभाग द्वारा शब्दों मे भ्रमित कर MD से आदेश कराए जाने के उदाहरण भी देखने को मिल रहे हैं.

अधीक्षण अभियंता सुरेश का टिप्पड़ी किया पत्र जिसका जिक्र निलंबन आदेश में है ..

अधीक्षण अभियंता सुरेश के इस पत्र को परियोजना प्रबंधक द्वारा Seen तो कर लिया गया लेकिन उस पर किसी तरह का कोई आदेश नहीं दिया गया. ऐसे में दोषी कौन यह एक बड़ा सवाल है. अधीक्षण अभियंता सुरेश के हवाले से जो बातें निलंबन आदेश में कहीं जा रही हैं कि उनके द्वारा सुरक्षा उपायों को गंभीरता से नहीं लिया गया वह  पूर्णतया निराधार और सुरेश की टिपण्णी की गलत ढंग से ब्याख्या कर कार्यवाही की गयी है. जबकि सुरेश की टिप्पड़ी में शीर्ष प्रबंधन से अनुमति लेने की बात कही गयी है. इससे कोई भी समझ सकता है कि किस तरह से ऊपर के अधिकारियों को बचाने के लिए टिप्पणी गलत मायने निकाले गए हैं.

ऐसा इसलिए क्योंकि यदि सही व्याख्या की जाती तो परियोजना प्रबंधक दोषी करार होते क्यूंकि उन्होने भी इस पत्र को Seen किया था और Fire Safety लगाने के कोई निर्देश नहीं दिए थे. परियोजना प्रबंधक के टिप्पड़ी न करने का मतलब यह निकलता है कि वे भी सुरेश की इस विवादास्पद टिप्पणी यानी Fire Safety ना लगाने के लिए सहमत थे. ओबरा अग्निकांड के बाद प्रबंधन ने अग्निकांड के कारणों का पता लगाने और दोषियों की सजा देने के लिए गुच्छ के नेतृत्व में एक 3 सदस्यीय कमेटी का गठन किया था. उस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सबमिट किया और प्रबंध निदेशक ने अधीक्षण अभियंता सुरेश को निलंबित कर दिया. अधीक्षण अभियंता सुरेश ने “अफसरनामा” को बताया कि इस प्रकरण में उनको बलि का बकरा बनाया जा रहा है जबकि इसमें उनका कोई दोष नहीं है.  

यह पूरा प्रकरण दर्शाता है की पिछली सरकार में जिस तरह से जंगलराज कायम था कमोवेश वही स्थिति योगीराज में उनके बिजली विभाग में भी कायम है, जहां जांच के नाम पर केवल व केवल छलावा और धोखा देने का काम किया जा रहा है. जांच के नाम पर बड़ी मछलियों को बचाने और छोटों को नापने के लिए पत्रों पर की गयी टिप्पड़ियों की व्याख्या भी अपने हिसाब से की जा रही है.

 

ओबरा में आग के कारणों के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें……

 

हादसों का मास्टरमाइंड बीएस तिवारी ही ओबरा दुर्घटना के पीछे

हादसों का मास्टरमाइंड बीएस तिवारी ही ओबरा दुर्घटना के पीछे

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