#जिस ओबरा के राख हुए पावर प्लांट को वापस पुनः स्थापित कर चालू करने में 6 महीने से कम का समय नहीं लगने की बात कही जा रही थी उसको तय समय में चालू कराया .
#ओबरा की आग को लेकर तमाम सवालों का जवाब अभी भी बाकी, ओबरा की बीमार यूनिट को जबरन चालू करने पर लगी थी आग.
#ओबरा प्लांट को तो चलाने में प्रबंध निदेशक रहे कामयाब, लेकिन निगम के भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को अंजाम तक पहुंचाने में कब कामयाब होंगे?
#एमडी ने ओबरा प्लांट के पुनर्स्थापना के लिए उत्पादन निगम के होनहारों के अलावा नया प्रयोग करते हुए पहली बार ट्रांसमिशन के अधिकारियों से करीब आधा काम कराया और यूनिट को चलाने में रहे कामयाब.
#2003 में ओबरा यूनिट की स्थापना के समय परियोजना में फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के लिए BHEL के मना करने के बाद निगम ने इसके लिए कोई उपाय क्यूँ नहीं किया ? जिम्मेदार कौन?
#27 जुलाई 2017 को योगी सरकार के मुख्य सचिव राजीव कुमार ने फायर सिक्योरिटी को लेकर एक शासनादेश जारी कर इसके पुख्ता इंतजाम किये जाने की बात कही थी. इसपर निदेशक तकनीकी ने क्या किया?
#अभी तक पिछली सरकार के बिगड़े सिस्टम का हवाला देने वाले विभाग के बडबोले मंत्री श्रीकांत शर्मा अभी तक ऐसे अफसरों को किस लालच में ढो रहे हैं? क्या इनके पास कोई विकल्प नहीं है या फिर कुछ और?
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्पादन निगम के कर्णधारों के भ्रष्टाचार और उनकी अकर्मण्यता के बावजूद ओबरा की राख हो चुकी 2 यूनिट को चालू करने में जो काबिलियत एमडी सैंथिल पांडियन ने दिखाई है वह काबिले तारीफ है. लेकिन वह निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर कितने संजीदा है, और इनसे कैसे निपटेंगे यह फिलहाल उनके लिए एक बड़ी चुनौती से कम नहीं है. निगम के बिगड़ चुके सिस्टम के बावजूद एमडी जिस तरह परिणाम दे रहे हैं उससे तो उम्मीद लोगों को जरूर लगी है कि वर्षों से चली आ रही निगम में अनियमितताओं पर अब रोक लगेगी.
विद्युत उत्पादन निगम के निदेशक तकनीकी के भ्रष्टाचार और उनके निचले स्तर के अधिकारियों व कर्मचारियों से ब्यवहार व उनके कारनामे से कंठ तक डूबे निगम की अभी तक कार्यशैली के लिहाज से जानकारों का मानना था कि ओबरा के राख हुए पावर प्लांट को वापस पुनः स्थापित कर चालू करने में 6 महीने से कम का समय नहीं लगेगा. लेकिन यह प्रबंध निदेशक सेंथिल पांडियन का ही प्रबंधन था कि उन्होंने तय समय में इस काम को पूर्ण किया. पहली बार एमडी ने एक नया प्रयोग करते हुए restoration का आधा काम ट्रांसमिशन के अधिकारियों से कराया.
बूढ़ी और बीमार ईकाईयों को चालू कर एमडी को प्रभावित करने की सनक में फुंकी ओबरा बजली घर की ईकाईयों को एक महीने में दोबारा चालू कर दिया गया है. बीते अक्टूबर में आग की चपेट में आयी ओबरा की तीन में से दो ईकाईयों को दन रात मरम्मत कर चालू कर दिया गया है जबकि तीसरी ईकाई के भी तीन-चार दिन में शुरु हो जाने की उम्मीद है. उत्पादन निगम के तकनीकी निदेशक बीएस तिवारी ने ओबरा में एमडी के दौरे से ठीक पहले अपने नंबर बढ़वाने के लिए परियोजना के इंजीनियरों की सलाह को दरकिनार कर बूढ़ी ईकाईयों को जबरन चालू करवा उन्हें फूंक दिया था. हालांकि अग्निकांड की जांच करने वाली सुमन गुच्च की कमेटी की रिपोर्ट में असली गुनहगार बच निकले और एक इंजीनियर को दंडित होना पड़ा.
लेकिन सवाल अभी भी यह है कि इस ओबरा प्लांट को तो चलाने में प्रबंध निदेशक कामयाब रहे लेकिन क्या निगम में चल रहे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को अंजाम तक पहुंचाने में कब कामयाब होंगे अथवा नहीं अब यह एक चर्चा का विषय बना हुआ है. सूत्रों की मानें तो प्रबंध निदेशक ने ओबरा के जले हुए इस प्लांट के पुनर्स्थापना के लिए उत्पादन निगम के इन होनहारों के ऊपर कम भरोसा जताते हुए पहली बार करीब आधा काम ट्रांसमिशन के अधिकारियों से काम कराया, जिसका परिणाम रहा कि ओबरा की जली यूनिट से तय समय में पुनः बिजली सप्लाई का शुरू होना.
अब सवाल यह है की वर्ष 2003 में ओबरा यूनिट की स्थापना के समय परियोजना में फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के लिए बीएचईएल ने मना कर दिया था. जिसके बाद इसकी जिम्मेदारी उत्पादन निगम की थी. फिर 27 जुलाई 2017 में योगी सरकार के मुख्य सचिव राजीव कुमार ने फायर सिक्योरिटी को लेकर एक शासनादेश जारी कर इसके पुख्ता इंतजाम किये जाने की बात कही थी. इसके बावजूद इन यूनिटों ओबरा, अनपरा डी आदि में अग्नि सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम निदेशक तकनीकी तकनीकी बीएस तिवारी द्वारा नहीं किया गया. यह एक बड़ा सवाल बना हुया है और इस पर प्रबंधन की चुप्पी भी सवाल खड़े करती है. सवाल तो यह भी है कि अभी तक पिछली सरकार के बिगड़े सिस्टम का हवाला देने वाले विभाग के बडबोले मंत्री श्रीकांत शर्मा अभी तक ऐसे अफसरों को किस लालच में ढो रहे हैं? क्या इनके पास कोई विकल्प नहीं है या फिर कुछ और? फिलहाल निदेशक तकनीकी बीएस तिवारी ओबरा अग्निकांड के बाद सुमन गुच्छ की अध्यक्षता में बनी जांच कमेटी से निजात भले ही पा लिया हो, लेकिन उनके गुनाहों की फेहरिस्त काफी लंबी है जो कि उनका पीछा नहीं छोड़ेगी.
BHEL का अग्रीमेंट …
27 जुलाई 17 को मुख्य सचिव राजीव कुमार का फायर सेफ्टी के लिए दिए गये आदेश की कापी…..
बताते चलें कि ओबरा बिजलीघर आग्निकांड में तीन ईकाईयों में उत्पादन बंद हो गया था जिससे करीब 600 मेगावाट बिजली का उत्पादन प्रभावित हुआ था. जिसके उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने एमडी पांडियन की बदौलत इनमें से दो ईकाईयों को फिर से चालू कर दिया है. फिलहाल इन 200-200 मेगावाट की ईकाईयों से 330 मेगावाट का उत्पादन होने लगा है. ओबरा बिजली घर की यह ईकाईयां बीते एक माह से भी ज्यादा समय से बंद थीं. ओबरा परियोजना के मुख्य महाप्रबंधक एके सिंह के नेतृत्व में उत्पादन निगम की टीम ने अग्निकांड में क्षतिग्रस्त हुयी तीसरी ईकाई पर भी काम शुरु कर दिया है और जल्दी ही सभी ईकाईयों में पहले की तरह उत्पादन शुरु हो जाएगा.
गौरतलब है कि बीते माह 14 अक्टूबर को तडक़े ओबरा विद्युत बी परियोजना के बिटीपीएस माइनस के केबिल गैलरी में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी. परियोजना में लगी आग से ओबरा बी परियोजना की 200 मेगावाट की तीन इकाई 9,10 और 11 ट्रिप हो गयी थीं. रिपोर्ट के मुताबिक ओबरा विद्युत परियोजना के ओबरा बी के केबिल यार्ड में संदिग्ध परिस्थितियों में आग लगने से तीन इकाईयां ट्रिप हो गयी जिससे 1000 मेगावाट बिजली का उत्पन्द बन्द हो गया, बाद में एक ईकाई को चालू किया गया. दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उत्पादन निगम ने जांच कमेटी बना दी थी जिसका नेतृत्व पारेषण निदेशक सुनील गुच्छ को सौंपा गया था.