#“निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” के अनुसार “मैनपावर” उपलब्ध कराने में निगम फेल.
#निदेशक कार्मिक की कार्यशैली को लेकर उठ रहे हैं सवाल.
#शीर्ष स्तर पर इंजीनियरों की कमी का असर परियोजनाओं पर, निर्माण और फैसलों में हो रही देरी.
#नई परियोजनाओं के लिए अतिरिक्त पद पर नियुक्ति तो दूर, पूर्व निर्धारित पदों की संख्या भी नहीं पूरी.
#पद स्वीकृत न होने और कंसल्टेंसी से काम कराए जाने से उठ रहे सवाल, रहस्य गहराया.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : ऊर्जा विभाग के उत्पादन निगम में शीर्ष पदों पर इंजीनियरों की कम होती संख्या “शक्ति भवन” के गलियारों में मुख्य चर्चा का विषय बनी हुई है. “निगम आर्गनाईजेशन स्ट्रक्चर 2016” के मुताबिक़ जरूरी पदों को निगम द्वारा भरा नहीं जा सका है. निगम के दोनों विंग, निर्माण और तकनीकी में स्वीकृत मुख्य अभियंता पद पर अभियंता ही उपलब्ध नहीं हैं. पदोन्नति से भरे जाने वाले इन पदों के खाली रहने की आखिर क्या वजह है और इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? यह एक अहम सवाल बना हुआ है. आज उत्पादन निगम में शीर्ष स्तर पर अफसरों की कमी है इसका जिम्मेदार कौन है? पदोन्नति से भरे जाने वाले इन स्वीकृत पदों को भरा क्यों नहीं गया? जैसे सवालों का जवाब क्या है.
जानकारों की मानें तो निदेशक कार्मिक संजय तिवारी द्वारा इन कमियों को दूर करने के लिए गंभीरता से कोई भी सकारात्मक प्रयत्न नहीं किया. जिसके चलते एक-एक अधिकारी के पास एक से अधिक चार्ज होने से भ्रष्टाचार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. और यही वजह है कि पहले से स्वीकृत पदों को भरने तथा सरकार से अतिरिक्त जरूरी पदों को स्वीकृत कराने मे निदेशक कार्मिक द्वारा कोई रुचि नहीं ली जाती रही है और वे फेल साबित हुए हैं. फिलहाल निगम में शीर्ष पदों पर जरूरी संख्या की कमी सरदर्द बनी हुई है.
“अफसरनामा” की पड़ताल में आया कि ओबरा मे कुल 4 मुख्य अभियंता के पद होने चाहिए, जबकि वहां मात्र 2 की तैनाती की गई है. ओबरा निर्माण के लिए 3 पदों के सापेक्ष केवल 1 ही मुख्य अभियंता की पोस्टिंग है. इसी तरह अनपरा के लिए 5 मुख्य अभियंता के पद स्वीकृत हैं, परंतु समय से व्यवस्था न होने के कारण केवल 2 अधिकारी से काम चलाया जा रहा है. पारीछा के लिए कुल 4 मुख्य अभियंता होने चाहिए लेकिन वहां केवल 1 की ही तैनाती है. ऐसे ही लखनऊ निदेशालय मे कुल 11 मुख्य अभियंता के स्थान पर केवल 6 पद ही भरे हुए हैं, शेष खाली हैं. जवाहरपुर निर्माण के लिए 3 चीफ़ होने चाहिए लेकिन केवल केवल 1 ही की ही तैनाती हो पायी है जबकि निर्माण का कार्यक्रम आधे से ज्यादा बीत चुका है.
निर्माण के लिए इंजीनियर की व्यवस्था देखें तो उत्पादन निगम मे 4 बड़ी परियोजनाओं का निर्माण किया जा रहा है जिसमे लगभग 30000 करोड़ रुपए का निवेश किया गया है. इनमे गंभीरता का यह आलम है कि 4 में केवल 2 मे ही सिविल के चीफ़ इंजीनियर है जबकि स्वीकृत संख्या 5 की है. इसी तरह टेक्निकल इंजीनियर के 8 चीफ़ की स्वीकृति के जगह पर केवल 4 चीफ़ ही काम पर लगाए गए हैं. इस तरह आफिसर्स की संख्या कम होने से परियोजना के कामों को “कंसल्टेंट के उपर कंसल्टेंट” लगाकर कराया जा रहा है जिसमें भी भ्रष्टाचार की पूर्ण संभावना है. और इस कमी की वजह से निर्माणाधीन परियोजनाएं अपने तय समय से पीछे चल रही हैं. जिसका असर उत्पादन से लेकर उसके निर्माण के ब्यय पर पड़ रहा है.
मैनपावर की कमी और भ्रष्टाचार से जूझ रहे उत्पादन निगम को करीब से जानने वालों का कहना है कि निगम में प्रोबेशन पर आए निदेशक कार्मिक के अलावा निदेशक निर्माण के खेल ही निराले हैं. इनकी कार्यशैली यह दर्शाती है कि यह अपनी जिम्मेदारियों को लेकर कितने उदासीन हैं. जवाहरपुर में सरिया चोरी का सिंडिकेट स्थानीय प्रशासन पकड़ता है और विभागीय जिम्मेदारों को कानो कान खबर नहीं और जब इसका खुलासा होता है और जांच हेतु मुख्यालय से निदेशक निर्माण सुबीर चक्रवर्ती जाते हैं, वहां के पत्रकारों के सवाल में इनका जवाब होता है कि हम तो “प्रिकॉशनरी जांच” के लिए आये हैं जोकि इनकी उदासीनता का परिचायक है. वहीं दूसरे साहब बीएस तिवारी के खेल जगजाहिर हैं फिर भी निगम के लाडले बने हुए हैं, हरदुआगंज से लेकर ओबरा तक इनके किस्से सर्वव्याप्त हैं.
विद्युत् उत्पादन निगम में निदेशक कार्मिक की वजह से तबादले और तैनाती सब रश्मी हो गए हैं. अभी भी कई इंजीनियर और कर्मचारी वर्षों से एक ही जगह जमे हुए हैं. इसके अलावा हरदुआगंज में कल्याण अधिकारी मानसिंह को बिना किसी आदेश के करीब एक साल से तैनात रखा है जबकि दूसरी तरफ DGM दुर्गा शंकर राय को दबाव के चलते वीआरएस लेना पड़ गया. तबादले के बाद भी मानसिंह रिलीव नहीं हुआ और निदेशक कार्मिक आदेश ही करते रहे. आदेश का अनुपालन न होने की दशा में निदेशक कार्मिक होने के नाते संजय तिवारी की जैसे कोई जिम्मेदारी ही नहीं बनती और ये मूक दर्शक बने रहे.