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योगी की नहीं सुनते अफसर, सडक पर उतरे संविदाकर्मियों ने लगाये आरोप

#पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम के अफसरों पर संविदाकर्मियों ने लगाये उदासीनता का आरोप.

#रीढ़ हैं विभाग के, बेबात हटाये जाते हैं, परेशान कर्मी चुनाव में दबायेंगे नोटा .

अफसरनामा ब्यूरो 

लखनऊ : पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम के अफसरों की उदासीनता और सरकार की वादा खिलाफी को लेकर शुक्रवार 25 जनवरी को संविदा कर्मियों ने प्रबन्ध निदेशक के आफिस के प्रांगण में एक दिन का सांकेतिक धरना दिया. इन कर्मियों का कहना था कि निगम के अधिकारी कर्मचारियों के हितों की अनदेखी तो कर ही रहे हैं साथ ही साथ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के आदेशों के अनुपालन में भी ढिलाई कर रहे हैं. पश्चिमांचल विद्युत् वितरण निगम के मुख्यालय पर इस धरने का आह्वान “निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति” ने किया था. समिति के नेताओं ने प्रदेश सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए होने वाले लोकसभा चुनाव में नोटा का बटन दबाने की बात भी कही. समिति ने आगाह किया कि यदि हमारी मांगें नहीं मांगी गयीं तो आने वाले समय में हम अनिश्चितकालीन हडताल पर जाने को मजबूर होंगे. निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति ने संविदा कर्मियों के साथ हो रहे शोषण को लेकर एक ज्ञापन प्रबंध निदेशक पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम लिमिटेड मेरठ को दिया. जिसमें संविदा कर्मियों के साथ हो रहे शोषण के मामले को संज्ञान में लेते हुए बिंदुओं पर विचार करने का निवेदन किया गया.


“निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति” द्वारा दिया गया मांग पत्र.

मांग पत्र में समान कार्य समान वेतन लागू करना, कर्मचारियों के विकलांग हो जाने पर उनको सहायता राशि 10 लाख दिए जाने, किसी संविदाकर्मी के साथ कार्य करते समय दुर्घटना हो जाने पर विभाग द्वारा इलाज कराए जाने, कर्मचारियों की कार्य अवधि में मृत्यु होने पर सहायता राशि 20 लाख दिए जाने, हर कर्मचारी का EPF में एक UN नम्बर दिए जाने और इसकी जानकारी प्रतिमाह मोबाइल पर दिए जाने के साथ ही हर माह की 5 तारीख को वेतन दिए जाने की मांग की गयी. इसके अलावा संविदा कर्मियों से रेवेन्यू रिकवरी पर दिए जाने वाले इंसेंटिव को तुरंत रिलीज किए जाने तथा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा ट्वीट के माध्यम से उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन से सीधे विभाग द्वारा वेतन दिए जाने की घोषणा की गई थी उसको अविलंब लागू करने का निवेदन किया गया.

धरने पर बैठे संविदाकर्मी

समिति के महामंत्री अमित खारी के अनुसार संविदाकर्मियों के हड़ताल की एक वजह अगस्त 2018 में ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव और पावर कारपोरेशन के चेयरमैन आलोक कुमार के अंतर तहसील के तबादला आदेश के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन किये जाने से नाराज हापुड़ के अधीक्षण अभियंता डीएल मौर्य द्वारा हटाए गए 11 संविदाकर्मियों में से 2 को काम पर वापस न लिया जाना भी रहा. इसके अलावा एक दो और कर्मियों की शिकायतों का निस्तारण नहीं किया जा रहा था जोकि धरना प्रदर्शन के बाद एक ही दिन में निस्तारण हेतु सभी आदेश जारी कर दिए गए.   


संविदाकर्मियों के सम्बन्ध में निदेशक कार्मिक का लिखा पत्र

बताते चलें कि अगस्त 2018 में चेयरमैन अलोक कुमार के आदेश के खिलाफ पश्चिमाञ्चल विद्युत वितरण निगम के सभी कर्मचारी संगठनों ने एक स्वर में विरोध कर धरना प्रदर्शन किया था. इस धरना प्रदर्शन से नाराज हापुड़ के अधीक्षण अभियंता डीएल मौर्य ने 11 संविदा कर्मियों को काम से हटा दिया था. बाद में इन हटाए गए कर्मियों को लेकर कर्मचारी यूनियन के दबाव के बाद 11 में से 9 को वापस ले लिया गया, लेकिन 2 को यह कहते हुए वापस नहीं लिया गया की इनके द्वारा लाइन लॉस आदि कंट्रोल करने का काम नहीं हो पा रहा है, इसलिए इनको बहाल नहीं किया जा सकता. इस तरह अन्य प्रताड़ना से दुखी होकर इनमें से एक कर्मचारी हापुड़ का ही सतीश तंवर 26 जनवरी को आत्मदाह की चेतावनी भी दे चुका था.

शुक्रवार 25 जनवरी को अपने इन 2 कर्मचारियों की वापसी सहित कुछ अन्य मसलों को लेकर निविदा संविदा कर्मचारी सेवा समिति के आह्वान पर सभी खंडों के लगभग 500-700 कर्मी एकत्रित होकर एमडी पश्चिमाञ्चल के ऑफिस में सांकेतिक धरना प्रदर्शन किया और मांग पत्र सौंपा. इनके प्रदर्शन और धरने से दबाव में आए अधीक्षण अभियंता ने ठेकेदार दीपक मिश्रा से बात कर शनिवार से काम पर आने  का आश्वासन दिया.

इसके अलावा संगठन और उनके पदाधिकारियों के बार-बार कुछ अन्य प्रकरणों का रिमाइंडर देने के बाद भी कोई सुनवाई नहीं की गई. जिसमें संविदा कर्मी अमित कुमार जो कि विद्युत दुर्घटना में घायल हो गए हैं,  किसी प्रकरण में जेल में बंद अरुण कुमार शर्मा को उनकी अवधि का वेतन भुगतान नहीं किए जाने जैसी आदि मांगें सम्मिलित रहीं. कर्मियों की एकता से दबाव में आए निदेशक कार्मिक प्रबंधन ने इनकी मांगों पर उचित कार्यवाही करने हेतु अधिशासी अभियंता विद्युत नगरीय वितरण खंड चतुर्थ मेरठ को पत्र जारी किया. एक ही डेट में जारी किए गए चारों पत्र यह समझने के लिए काफी है कि अगर नियमित रूप से अफसरों द्वारा निर्णय लिया जाता तो कर्मचारी संगठनों को हड़ताल पर जाने की जरूरत नहीं पड़ती.

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