#पहले ग्रामीण अभियंत्रण के निदेशक उमाशंकर हुए रिटायर तो अब उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक संजय तिवारी की बारी.
#क्या कार्यवाही से पहले ही रिटायर हो जाएगा Sanjay Tiwari, 28 फरवरी 19 को होना है सेवानिवृत्त.
#योगिराज में केवल छोटों पर ही कार्यवाही, जड़ में पड़ी बीमारी को हटाने में छूट रहे पसीने, बचाने में जुटे.
#तबादला आदेशों से उपर हो चुके हरदुआगंज में तैनात Man Singh के मददगार मंत्री श्रीकांत शर्मा इसपर भी चुप.
#ओबरा अग्निकांड में CGM और GM पर एमडी पांडियन की कार्यवाही महज खानापूर्ति.
#आखिर प्रमुख सचिव ऊर्जा को है किस बात का डर, क्यूँ नहीं हो रही है कार्यवाही, या फिर पिछली निगम की तैनाती का अनुभव बना है डर का कारण.
#मंत्री, शासन, प्रमुख सचिव और प्रबंध निदेशक पर सबकी नजर कि अब Sanjay Tiwari पर कार्यवाही होती है या फिर रिटायर होने दिया जाता है.
अफसरनामा ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश की योगी सरकार और उसके ऊर्जा मंत्री कितने भी दावे करें कि उनके शासनकाल में अफसरों की कार्यशैली में बदलाव आया है, और भ्रष्टाचार खत्म हुआ है, या फिर उसमें कमी आई है, लेकिन यह बिजली विभाग के उत्पादन निगम में जुमलेबाजी ही साबित हो रही है. सबसे गंभीर बात यह है कि यह सब एक ईमानदार मुख्यमंत्री के राज में हो रहा है. रिटायरमेंट की इस कड़ी में ग्रामीण अभियंत्रण के निदेशक रहे उमाशंकर के बाद अब विद्युत् उत्पादन निगम के निदेशक कार्मिक Sanjay Tiwari की बारी है, जिसको कि ओबरा अग्निकांड में गठित की गयी गुच्छ की अगुआई में जांच कमेटी ने आग का जिम्मेदार ठहराया है. Sanjay Tiwari पर कार्यवाही को लेकर अब निगम में इस बात की चर्चा शुरू हो गयी है कि क्या Sanjay Tiwari पर कार्यवाही होगी या फिर उसको भी उमाशंकर की तरह रिटायर होने दिया जाएगा.
प्रोबेशन पर आये और निदेशक बने Sanjay Tiwari का रिटायरमेंट भी इसी 28 फरवरी को है, और वह येन केन प्रकारेण अपनी इस जांच रिपोर्ट पर होने वाली कार्यवाई को रोकने के लिए प्रयासरत है. अगर शासन द्वारा Sanjay Tiwari पर कार्यवाही की जाती है तो वह निदेशक पद पर भी नहीं बने रह सकते. यही वजह है कि वह इंजीनियरिंग सेवा से बाइज्जत रिटायर होकर निदेशक बने रहने के लिए अब जुगत भिड़ाने में लगे हुए हैं. ओबरा अग्निकांड में सीजीएम और जीएम और एक इंजीनियर पर कार्यवाही के बाद अब तलवार 2015 से 2018 तक ओबरा के सीजीएम रहे वर्तमान निदेशक कार्मिक Sanjay Tiwari पर लटक रही है. ओबरा अग्निकांड के दोषियों की जांच के लिए गठित की गई गुच्छ कमेटी की रिपोर्ट के बाद यह कार्यवाही होनी है.
चर्चा तो यह भी है कि उत्पादन निगम में जब एक कल्याण अधिकारी मानसिंह जोकि स्थानांतरण नियमों और आदेशों को धता बताकर केवल अपने नेटवर्क के बलबूते गलत तरीके से हरदुआगंज में तैनात रह सकता है और डीजीएम रहे डीएस दुर्गाशंकर राय को जबरन उनकी मजबूरियों को दरकिनार करते हुए स्थानांतरित किया जा सकता है और वह मजबूर होकर बीआरएस लेता है. तो यह कहा जा सकता है कि संभव है Sanjay Tiwari अपनी इस बचाव योजना में कामयाब हो जाय. शासन के सूत्रों के मुताबिक गुच्छ कमेटी ने जिम्मेदारियों का निर्वहन ठीक से न करने वाले अधिकारी अवधेश सिंह, एग्जीक्यूटिव इंजीनियर फायर सिस्टम, सुरेश राम-सस्पेंड, संजय तिवारी, आनंद कुमार, डीके मिश्रा को चार्जसीट, महेंद्र कुमार, कृष्ण मोहन जीएम प्रशासन और सीजीएम ए. के. सिंह को चार्जसीट दे दिया गया है. इसके अलावा जो सबसे महत्वूवर्ण बात है वह यह कि जब ntpc ने करीब 6 माह पहले सीजीएम ओबरा ए. के. सिंह को गैप एनालिसिस रिपोर्ट भेजी थी जिसमें मल्टीफ़ायर सिस्टम आदि लगाने की बात कही गयी थी जिसको सीजीएम द्वारा गंभीरता से नहीं लिया गया.
बताते चलें कि ओबरा विद्युत् ताप गृह में 14 अक्टूबर को हुए अग्निकांड के बाद दोषियों की तलाश शुरू हुई और एमडी पांडियन ने BK Khre की अध्यक्षता में एक हाईकोर कमेटी गठित की. कमेटी की रिपोर्ट के बाद प्रबंध निदेशक पांडियन द्वारा CGM, AK Singh को मुख्यालय पर और GM, DK Mishra को अनपरा भेज दिया और एक बेकसूर सुरेश राम को सस्पेंड कर मामले को रफादफा कर दिया गया. लेकिन BHEL के मना करने के बाद और योगी सरकार के ही पूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार के फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के आदेश और CISF द्वारा दिए गए सुरक्षा उपायों को ठेंगा दिखाने वाले जिम्मेदारों पर कार्यवाही क्यूँ नहीं की जा रही है इस बात का जवाब एमडी पांडियन और प्रमुख सचिव ऊर्जा नहीं दे रहे हैं. निगम के प्रबंधन की इस पर चुप्पी कई बड़े सवाल खड़े कर रही है.
वर्ष 2003 में ओबरा यूनिट की स्थापना के समय परियोजना में फायर सिक्योरिटी सिस्टम लगाने के लिए BHEL ने मना कर दिया तब इसकी जिम्मेदारी उत्पादन निगम की थी जोकि नहीं की गयी आखिर क्यूँ?
27 जुलाई 2017 में योगी सरकार के ही मुख्य सचिव राजीव कुमार ने फायर सिक्योरिटी के सम्बन्ध में सभी जिलाधिकारियों को एक शासनादेश जारी कर इसके पुख्ता इंतजाम किये जाने की बात कही जिसका अनुपालन नहीं हो सका.
यही नहीं परियोजना की सुरक्षा में तैनात CISF द्वारा सुरक्षा उपायों को लेकर 19 जनवरी 2018 को लिखे पत्र के सुझावों को भी दरकिनार किया गया. इतने के बावजूद ओबरा आदि परियोजना में अग्नि सुरक्षा के कोई पुख्ता इंतजाम नहीं किये गये. मुख्य सचिव के बाद 19 जनवरी 2018 को ओबरा परियोजना की सुरक्षा में तैनात केंद्रीय औद्योगिक बल के कमांडेंट ने कुछ सुरक्षा उपायों की जरूरत को बताते हुए एक पत्र एग्जिक्यूटिव इंजीनियर ओबरा को लिख कर सुरक्षा उपायों को पुख्ता करने को कहा था. कमांडेंट ने अपने पत्र में सुरक्षा के लिए केबल गैलरी में लाईट नहीं है और आरपार जाने का रास्ता भी नहीं है. Linear heat sensing cable जो फायर को लम्बाई में ख़ास जगह sense करके पानी का पम्प चला देती है, नहीं है. पानी स्प्रे या फैलने वाले फोम की भी व्यवस्था भी gallery मे नही की गयी है. केबल Gallery की दीवालें, दरवाजे, खिड़कियां भी एयर प्रूफ सील नहीं है, जिससे कि आग को फैलने से रोका जा सके. Cable जिस छेद से गुजर रहे हैं उनको भी सील किया जाय. Exhaust fan भी नहीं है. Transformer drains कवर किया जाय ताकि आग ना फैले. इन व्यवस्थाओं के ना होने से आग लगने पर यह तेजी से सब जगह फ़ैल जाएगी तथा बिजली का उत्पादन रुक जाएगा.
ऐसे में क्या परियोजना में सुरक्षा उपायों को पुख्ता करने की जिम्मेदारी तय किया जाना आवश्यक नहीं है. निगम के जिम्मेदार प्रबंध निदेशक और प्रमुख सचिव ऊर्जा इस पर मौन क्यूँ हैं. क्या एमडी पांडियन की CGM और GM पर की गयी कार्यवाही पूरे प्रकरण पर काफी है या फिर उनके द्वारा कार्यवाही के नाम पर अब केवल इस मामले को दबाया जा रहा है. उत्पादन निगम के कर्णधारों के भ्रष्टाचार और उनकी अकर्मण्यता के बावजूद ओबरा की राख हो चुकी 2 यूनिट को चालू करने में एमडी सैंथिल पांडियन ने जो तेजी दिखाई और सीजीएम आदि को सजा दिलाने में भले ही संजीदा रहे लेकिन असली गुनाहगार को बचाने का काम करना शुरू कर चुके हैं. वहीँ मानसिंह और बीएस तिवारी के पैरोकार बडबोले ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा इस पूरे मसले पर कितना गंभीर हैं यह तो Sanjay Tiwari पर होने वाली कार्यवाही से पता चल जाएगा.
इसके अलावा ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव आलोक कुमार जोकि इसके पहले इसी कारपोरेशन और निगम के अपने कार्यकाल में अपनी कार्यशैली को लेकर काफी सुर्ख़ियों में रहे हैं. अलोक कुमार अपने पहले कार्यकाल में यूपी पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन के सीएमडी व उत्पादन निगम के एमडी बनाये गए थे. आलोक ने बार-बार यूनिट बंद होने के कारणों के बारे में जानने की कोशिश की तो उन्हें कोयला और तेल का खेल नजर आया. उन्होंने इस पर अंकुश लगाने की कवायद शुरू की तो पता चला कि ट्रांसमिशन नेटवर्क का जिम्मा संभाल रही कंपनियां एग्रीमेंट की शर्तों के हिसाब से काम नहीं कर रही थी. उन्होंने लिखा पढ़ी शुरू की तो रातों रात हटा दिए गए और बाद में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि इस तरह की कार्यशैली से अपनी पहचान बनाने वाला अफसर आज एक ईमानदार मुख्यमंत्री के रहते हुए कैसे दबाव में है. फिलहाल आलोक कुमार की यह उदासीनता भी सवालों के घेरे में है. फिलहाल जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार मंत्री श्रीकांत शर्मा, ऊर्जा सचिव अलोक कुमार और प्रबंध निदेशक पांडियन Sanjay Tiwari को बचाने में लग गए हैं. अब Sanjay Tiwari पर कार्यवाही की जाती है या फिर ग्रामीण अभियंत्रण विभाग के निदेशक उमाशंकर की तरह उसको रिटायर होने दिया जाता है यह तो वक्त बताएगा.
गौरतलब है कि बीते साल 14 अक्टूबर 2018 को तडक़े ओबरा विद्युत बी परियोजना के बिटीपीएस माइनस के केबिल गैलरी में शार्ट सर्किट से आग लग गई थी. परियोजना में लगी आग से ओबरा बी परियोजना की 200 मेगावाट की तीन इकाई 9,10 और 11 ट्रिप हो गयी थीं. रिपोर्ट के मुताबिक ओबरा विद्युत परियोजना के ओबरा बी के केबिल यार्ड में संदिग्ध परिस्थितियों में आग लगने से तीन इकाईयां ट्रिप हो गयी जिससे 1000 मेगावाट बिजली का उत्पन्द बन्द हो गया, बाद में एक ईकाई को चालू किया गया.
Sanjay Tiwari को बचाने वालों का….तथा…. BK Khare की जांच रिपोर्ट से जुड़े अन्य तथ्यों का खुलासा अगले अंक में…………