राजेश मिश्र
लखनऊ : उत्तर प्रदेश में बम्पर बहुमत के साथ पिछले साल जब भाजपा की सरकार बनी और तमाम दावेदारों को किनारे करते हुए गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाया गया तो साफ़ हो गया था कि मोदी और शाह युग की पार्टी देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में अपने भावी एजेंडे की क्या धार रखने जा रही है. गोरखपर से पांच बार सांसद रहे योगी आदित्यनाथ की सियासी छवि एक कट्टर हिंदूवादी राजनेता की रही है. उम्मीद थी कि उत्तर प्रदेश में चौदह साल के पूर्ण बनवास के बाद सता में लौटी भारतीय जनता पार्टी की सरकार अयोध्या, काशी और मथुरा को अपनी शीर्ष प्राथमिकता में रखेगी और हुआ भी यही. यह अद्भुत संयोग है कि भाजपा की शीर्ष प्राथमिकता वाले इन तीनों धार्मिक महत्त्व वाले जिलों में ब्राह्मण जिलाधिकारी तैनात हैं. तीनों अफसर प्रादेशिक सिविल सेवा के दीर्घ अनुभव के बाद अब भारतीय प्रशासनिक सेवा में हैं.
अयोध्या, काशी और मथुरा लम्बे समय से भाजपा के शीर्ष एजेंडे में शामिल रहे हैं लेकिन राज्य में सत्ता से दूर रही भाजपा के पास इन स्थानों की बेहतरी के लिए कुछ करने का अवसर नहीं था. काशी को अपनी संसदीय कर्मभूमि बनाकर प्रधानमन्त्री बने नरेन्द्र मोदी ने पूरी दुनिया में मशहूर इस प्राचीनतम धार्मिक नगर के विकास के लिए काफी कोशिशें कीं लेकिन करीब तीन साल तक राज्य में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार से तालमेल नहीं बनने के चलते बेहतरी की असलियत व्यवहार तक नहीं पहुँच पायी. पिछले साल जब योगी सरकार ने अपना पहला बजट पेश किया तो धार्मिक पर्यटन को प्राथिमिकता पर रखते हुए अयोध्या, वाराणसी और मथुरा के विकास के लिए कई योजनाओं का प्रावधान किया गया. गोरखपुर को छोड़ दिया जाय तो यही तीनों जिले हैं जहां मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सबसे ज्यादा दौरे हुए हैं.
प्रशासनिक तैनाती के लिहाज से भी इन तीनों आला जिलों में एक ख़ास किस्म का साम्य है. उत्तर प्रदेश में पिछले काफी समय से अफसरों की तैनाती को जातीय चश्मे से देखने का चलन आम है. थाने पर दरोगा और जिले में कप्तान से लेकर कलेक्टर तक किस जाति के हैं इसपर न सिर्फ सियासी बल्कि आम जनता और सरकार की भी दृष्टि रहती है. मायावती की सरकार में दलित अफसरों को तवज्जो देने की बात सामने आती है तो राज्य में मुलायमसिंह यादव या अखिलेश यादव की सरकार हो तो यादव जाति के अफसरों को पुलिस और प्रशासनिक पदों पर अहम तैनाती की चर्चाएँ आम रहीं हैं. योगी सरकार में क्षत्रिय और दूसरे नम्बर पर ब्राह्मण अधिकारियों को महत्वपूर्ण पदों पर तैनात करने की सियासी आरोप यदाकदा लगे हैं.
यह अद्भुत संयोग है कि भाजपा सरकार की प्राथमिकता वाले तीनों महत्वपूर्ण जिलों में ब्राह्मण जाति के ही कलेक्टर तैनात हैं. इतना ही नहीं धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक अन्य जिले चित्रकूट में भी ब्राह्मण जिलाधिकारी की तैनाती योगी सरकार ने की है. वाराणसी में काफी लोकप्रिय जिलाधिकारी साबित हुए योगेश्वर राम मिश्रा को इस पद पर तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 2016 में तैनात किया था. योगेश्वर राम के कामकाज से प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी भी प्रभावित हुए नतीजतन योगी सरकार ने न सिर्फ उन्हें इस पद पर बनाये रखा बल्कि कई अच्छे कामों के चलते कई बार उनकी पीठ भी थपथपा चुकी है. योगेश्वर राम मिश्रा प्रदेश सिविल सेवा के 1987 बैच के अधिकारी रहे हैं जिन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में प्रोन्नति के बाद 2006 बैच मिला है. वाराणसी के पहले श्री मिश्रा फैजाबाद और बाराबंकी के भी जिलाधिकारी रह चुके हैं. इस तरह फैजाबाद के जिलाधिकारी पद पर तैनात डॉ अनिल पाठक भी अपने व्यवहार के साथ ही साफ़ सुथरी और ईमानदार कार्यशैली के लिए जाने जाते हैं. 1992 बैच के पीसीएस अधिकारी रहे डॉ पाठक को आईएएस का 2009 बैच मिला है और जिलाधिकारी के रूप में इनकी पहली तैनाती है. इसी तरह मथुरा के जिलाधिकारी पद पर तैनात सर्वज्ञ राम मिश्रा पीसीएस के 1989 बैच के अधिकारी रहे हैं जिन्हें प्रोन्नति के बाद आईएएस का 2008 बैच एलाट हुआ है. आईएएस मैं प्रवेश के बाद सर्वज्ञ राम को योगी सरकार ने पिछले साल जिलाधिकारी के तौर पर पहली नियुक्ति जौनपुर में दी थी और दो महीने पहले उन्हें मथुरा का डीएम बनाया गया है. 1992 बैच के पीसीएस और 2009 बैच के आईएएस बने शिवाकांत द्विवेदी चित्रकूट जिले के डीएम पद पर तैनात हैं. इतना ही नहीं मनोज मिश्रा फैजाबाद के मंडलायुक्त और राम विशाल मिश्रा चित्रकूट के मंडलायुक्त भी प्रमोटी ब्राह्मण आईएएस अफसर हैं. फैजाबाद के मंडलायुक्त जोकि रामलला जिस स्थल पर विराजमान हैं उसके कस्टोडियन भी होते हैं.