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SDM को नोटिस पर पुलिस की सफाई में नहीं कोई सच्चाई, केवल झूठ और जग हंसाई

अफसरनामा ब्यूरो

लखनऊ : सीएम योगी द्वारा जिस मंसूबे से पुलिस आयुक्त प्रणाली को लागू किया गया लखनऊ पुलिस उसको प्रभावी ढंग से लागू करने और सरकार की मंशा पर खरा उतरने के बजाय व्यवस्था को उलझाने में जुटी है. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट द्वारा SDM सदर को कारण बताओ नोटिस देने के बाद उठे बवाल से दबाव में आयी पुलिस ने जवाब तो दिया लेकिन उन सवालों का जवाब नहीं दिया गया जोकि “अफसरनामा” द्वारा उठाये गये थे. बल्कि एक नए विवाद को जरूर जन्म दे दिया है कि क्या तहसीलदार को ही पत्र भेजना सही है. लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट के इस जवाब ने जहाँ बन्दर के हाथ में तलवार वाली कहावत को चरित्रार्थ किया है वहीँ इस प्रणाली के प्रावधानों की समीक्षा और इसके लिए लखनऊ पुलिस को ट्रेनिंग की जरूरत महसूस होने लगी है. ऐसे गंभीर विषयों पर शीर्ष पर बैठे जिम्मेदार अगर ध्यान नहीं देते हैं तो आने वाले समय में इसके परिणाम भी सिस्टम पर जहाँ सवाल खड़ा करेंगे वहीँ सरकारों को भी असहज करेंगे.

बताते चलें कि उपजिलाधिकारी सदर, लखनऊ को जारी नोटिस के बाद सामने आये पुलिस की सफाई में उपजिलाधिकारी तहसील सदर लखनऊ को अवगत कराया गया है कि “दिनांक 23.11.2023 को वाद संख्या 12/2022 सरकार बनाम आमिर इस्लाही धारा 145 द०प्र०सं० थाना गोमती नगर लखनऊ में तहसीलदार तहसील सदर, लखनऊ के लिए पत्र जारी होना था जोकि त्रुटिवश आपको जारी हो गया. अतः उपजिलाधिकारी सदर लखनऊ को जारी पत्र वापस लिया जाता है.”

पुलिस द्वारा जारी SDM की नोटिस वापसी का पत्र

लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट द्वारा जिन CrPC की धाराओं का जिक्र करते हुए SDM सदर को नोटिस दिया था उस पर “अफसरनामा” ने सवाल उठाते हुए कहा था कि पुलिस आयुक्त प्रणाली के प्रावधानों में क्या ऐसा है कि पुलिस कार्यवाहक मजिस्ट्रेट की हैसियत प्राप्त करने के बाद किसी दूसरे विभाग के समकक्ष अथवा अधीनस्थ अफसरों को नोटिस जारी कर सकती है. लेकिन लखनऊ पुलिस इसपर कुछ बोलने या फिर अपनी गलती मानने के बजाय अपनी सफाई में एक नया पत्र जारी कर नए सवालों को जन्म दे दिया है.

न्यायालय पुलिस आयुक्त/कार्यपालक मजिस्ट्रेट पूर्वी लखनऊ द्वारा तहसीलदार सदर को पत्र जारी होना बताकर उपजिलाधिकारी को जारी नोटिस को वापस ले लिया लेकिन वह यह भूल गयी कि तहसीलदार जोकि दूसरे विभाग से ताल्लुक रखता है वह पुलिस का अधीनस्थ नहीं है और न ही उसे कार्यपालक मजिस्ट्रेट के रूप में CrPC की शक्तियां मिली हैं. पुलिस कमिश्नरी सिस्टम में CrPC की धाराओं में पुलिस केवल अपने अधीनस्थों को ही आदेश/निर्देश दे सकती है.

न्यायालय पुलिस आयुक्त/कार्यपालक मजिस्ट्रेट पूर्वी को यह भी जानना जरूरी है कि तहसीलदार को कार्यपालक मजिस्ट्रेट की शक्तियां कब और कितनी मिलीं. जानकार बताते हैं कि काफी समय पहले जब सरकार की आय का बड़ा श्रोत राजस्व वसूली यानी मालगुजारी से हुआ करता था. इस मालगुजारी वसूली की जिम्मेदारी तहसील में तैनात तहसीलदार पर होती थी. मालगुजारी न देने वाले किसान को दण्डित करने या फिर उसको 14 दिन के लिए जेल भेजने का अधिकार ही केवल कार्यपालक मजिस्ट्रेट तहसीलदार को दिया गया था, न कि CrPC के तहत कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया था.

ऐसे में न्यायालय पुलिस आयुक्त/कार्यपालक मजिस्ट्रेट पूर्वी लखनऊ द्वारा गलतियों पर गलतियाँ किया जाना बेहद ही संवेदनशील है जिसके लिए इनको उचित प्रशिक्षण की जरूरत है. पुलिस कमिश्नर सिस्टम लागू होने के इतने दिनों के बाद भी इस तरह गलतियों की पुनरावृत्ति जहाँ सिस्टम को लेकर तमाम सवाल खड़े करती है वहीँ यह साबित भी करती है कि यह किसी त्रुटीवश नहीं बल्कि भावनावश किया गया गया है. जिम्मेदार समय पर नहीं चेते तो भविष्य में ऐसे और बहुत से उदाहरण देखने व सुनने को मिल सकते हैं जोकि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हितकर नहीं होगा.

पूरी खबर के लिए क्लिक करें ………पुलिस के कार्यपालक मजिस्ट्रेट का डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM)को नोटिस, दिया स्वयं उपस्थित होने का आदेश, पीसीएस संवर्ग में खलबली.

पुलिस के कार्यपालक मजिस्ट्रेट का डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM)को नोटिस, दिया स्वयं उपस्थित होने का आदेश, पीसीएस संवर्ग में खलबली | AfsarNama | अफसर नामा

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