Free songs
BREAKING

एसडीएम ने पकड़े खनन के 47 ट्रक, पुलिस ने कराए हिरासत से 30 गायब

#तिर्वा के एसडीएम द्वारा हवा निकलवाकर पुलिस कस्टडी में दिए गए ट्रकों में से 30 में हवा डलवाकर पुलिस ने कराया गायब.

#तिर्वा पुलिस के इस कृत्य पर वरिष्ठ अधिकारियों  ने संज्ञान ले की कार्यवाही, लेकिन सवाल क्या ऐसे ही चलेगी जीरो टोलरेंस की सरकार.              

अफसरनामा ब्यूरो   

लखनऊ : क्या ऐसे ही चलेगी जीरो टोलरेंस की सरकार ? जमीनी स्तर के अधिकारियों और कर्मचारियों जिनके ऊपर सरकार की मंशा को लागू करने की जिम्मेदारी सबसे ज्यादा होती है की कार्यशैली से यह सवाल उठना लाजमी हो गया है. जिस कानून व्यवस्था के मुद्दे को उठा सत्ता में आयी योगी सरकार आज ग्यारह महीने बीत जाने के बाद उसको नहीं सुधार पायी है. फिलहाल कन्नौज जिले के तिर्वा तहसील के एसडीएम का केवल दो होमगार्डों पर भरोसा चर्चा का विषय बना है. कन्नौज के तिर्वा तहसील के एसडीएम ने जिस तरह से केवल दो होमगार्ड्स पर भरोसा करते हुए करीब चार दर्जन खनन के ट्रकों को अपनी में डालकर पकड़ा वह तो वाकई काबिले तारीफ़ था लेकिन हिरासत में लिए गए ट्रकों में से 30 को गायब कराने का जो काम पुलिस ने किया वह उससे कहीं ज्यादा शर्मनाक रहा. एसडीएम तिर्वा एक उदाहरण मात्र हैं, कमोबेश यही हाल फिलहाल पूरे प्रदेश का है.

सूबे मैं सत्ता परिवर्तन हुआ और सीएम योगी के नेत्रित्व में सारकार बनी तो एक आस जगी कि कुछ न कुछ ठीक होगा. शुरुआत में मुख्यमंत्री योगी की कार्यशैली से लोगों की उम्मीदों को बल मिला, लेकिन धीरे-धीरे अब लोगों में सिस्टम में सुधार को लेकर निराशा होने लगी है.  अधिकारियों की तैनाती पीसीएस वर्ग और आईएस वर्ग के अधिकारियों में आपसी तालमेल की ख़बरें, प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस प्रशासन के बीच आपसी तालमेल को लेकर तमाम खबरें विभिन्न माध्यमों से आम हो रही हैं. सिस्टम में भ्रष्टाचार इस कद्र हावी है कि एक अफसर को दूसरे पर भरोसा नहीं है. जानकारों की मानें तो कासगंज का दंगा इसी तालमेल की कमी का ही परिणाम रहा है जहां पर जिले के जिलाधिकारी और पुलिस कप्तान के बीच आपसी तालमेल की कमी सामने आई और कप्तान महोदय को हटना पडा.

कुछ ऐसा ही पिछले दिनों कन्नौज जिले की तिर्वा तहसील में तैनात एसडीएम डॉ अरुण कुमार सिंह के साथ हुआ.  जब वे खुद बिना पुलिस बल के खनन के ट्रकों को पकड़ने के लिए निकल पड़े. ऐसा उन्होंने तब किया जब लगभग आये दिन खनन माफियाओं द्वारा अधिकारियों और कर्मचारियों पर गाडी चढ़ाकर मारने और उसकी कोशिश करने की घटनाएं अखबारों की सुर्खियाँ बन रहीं हैं. उपजिलाधिकारी महोदय ने जान जोखिम में डालकर 54 ट्रकों को हिरासत में लिया तो लेकिन सवाल यह है कि एसडीएम साहब ने ऐसा रिस्क क्यूँ लिया. तहसील की पुलिस की कार्यशैली से वाकिफ एसडीएम ने  यह रिस्क लिया और भरोसा केवल दो होमगार्ड्स पर किया. नहीं तो जिस कदर  रिस्क लेकर पकडे गए ट्रकों में से 30 को पुलिस कस्टडी से गायब करा दिया गया साहब के रिस्क लेने की एक बड़ी वजह रही. व्यवस्था में बैठे अपने लोग ही अफसरों की लोकेशन देते हैं. खनन के इस धंधे में उनकी हिस्सेदारी भी होती है जोकि अफसरों की लोकेशन खनन से जुड़े लोगों तक पहुंचाते है. ये अफसर हमेशा इनकी निगरानी में रहते हैं और ओवरलोड ट्रकों अथवा ट्रालियों को रोकते समय इनपर चढाने का भी प्रयास किया जाता है. सिस्टम में इनका इतना बड़ा नेटवर्क है कि ये किसी भी तरह का रिस्क लेने से नहीं हिचकते. पुलिस भी इस काम में मोटी  रकम वसूलती है और यही वजह रही कि साहब ने इन सब को बताना उचित नहीं समझा.

बताते चलें कि एसडीएम तिर्वा अरुण कुमार सिंह ने कुछ दिन पहले मोरंग मंडी में 54 ट्रक पकडे जिसमें 47 ट्रकों का चालान करते हुए हवा निकालकर स्थानीय पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने इन सारे ट्रकों को कोतवाली परिसर, मोरंग, मंडी और डीएन इंटर कालेज के आसपास खड़े करा दिए. पुलिस की निगरानी में खड़े इन ट्रकों में से 30 ट्रकों को पुलिस ने मिली भगत करके निकलवा दिया. मामले की जानकारी होने पर जिला प्रशासन ने आनन फानन में कार्यवाही करते हुए कोतवाली प्रभारी को लाइन हाजिर कर दिया. पकड़े गए 54 ट्रकों में 11 ट्रकों के कागजात आदि ठीक पाए जाने पर आरटीओ ने छोड़ दिया था और 47 का चालान किया था.

हालांकि जिले के वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में मामला आने पर पुलिसकर्मियों, ट्रक मालिकों व एनी जिम्मेदार लोगों पर कार्यवाही की गयी, लेकिन पुलिस की ऐसी कार्यप्रणाली और प्रशासन के बीच इस तरह के अविश्वास और असहयोग पर शासन को गंभीर चिंतन करने की जरूरत है. खासकर उन पुलिस कर्मियों की कार्यशैली में सुधार की जरूरत है जिनका ताल्लुक सीधे जमीनी स्तर से है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एसडीएम तिर्वा के जैसे   अफसरों को प्रोत्साहित करने तथा बेहतर प्रशासन देने के लिए पुलिस व् प्रशासन में आपसी समन्वय के लिए कोई ठोस उपाय करने की जरूरत होगी, अन्यथा हतोत्साहित हो और सिस्टम से हारकर ऐसे अफसर भी अभी बिगड़ी व्यवस्था सुधारने के बजाय केवल अपनी नौकरी के दिन काटते नजर आयेंगे.

afsarnama
Loading...

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

Time limit is exhausted. Please reload the CAPTCHA.

Scroll To Top