# सूबे में डीजीपी की नियुक्ति को लेकर उलझा पेंच, नए चेहरे की तलाश
ए एन ब्यूरो
लखनऊ : उत्तर प्रदेश पुलिस का कौन होगा मुखिया अब यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है. इस समय सूबे की पुलिस के मुखिया की तैनाती को लेकर तमाम तरह की चर्चाएँ चल रही हैं. जिस क़ानून व्यवस्था की दुहाई देकर सत्ता में आई बीजेपी की योगी सरकार में आज कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले विभाग के मुखिया की कुर्सी पिछले 20 दिनों से खाली पड़ी है. इसके अलावा 1981 बैच के आईएएस अधिकारी देवेन्द्र कुमार चौधरी को अचानक केंद्रीय प्रतिनियुक्ति से वापस अपने मूल कैडर में भेजे जाने को लेकर भी अफसरशाही में चर्चाओं का बाजार गर्म है. सियासत का नब्ज पकड़ने वाली अफसरशाही प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक की कुर्सी के लिए क्या गुणा-गणित चल रहा है, इस बात का नब्ज टटोलने में लगी है.
आम जनता व सियासतदानों के बीच भी इस बात को लेकर तमाम तरह की चर्चाएँ अब आम हो चलीं हैं कि सूबे की दोनों कुर्सी पर तैनाती को लेकर सियासी नफ़ा नुकसान का आंकलन किये जाने के चलते देरी हो रही है. योगी सरकार बनने के बाद क्षत्रिय अफसरों को प्रमुख पदों पर तैनात किये जाने की बात चर्चा का विषय रही थी जिसको लेकर संघ ने भी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आगाह किया था.
यूपी पुलिस के मुखिया की कुर्सी पिछले बीस दिनों से खाली है. डीजीपी के ना होने से कई बड़े काम रुके पड़े हैं. ओपी सिंह को पुलिस महानिदेशक बनना तय हो चुका है लेकिन 1983 बैच के इस आईपीएस अधिकारी को अभी केंद्र सरकार ने रिलीव नहीं किया है. सीआईएसएफ के डीजी पद पर तैनात ओपी सिंह को रिलीव न किये जाने से तमाम तरह की अटकलों ने अफसरशाही से लेकर सियासी बाजार को गर्म किया है.
ओपी सिंह का नाम पुलिस मुखिया के लिए भेजे जाने से लेकर तैनाती तक लोगों द्वारा अलग-अलग तर्क दिए जा रहे हैं. कुछ का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी की पसंद न होने के बावजूद इनकी तैनाती में गृहमंत्री राजनाथ सिंह का हाथ है तो अन्य का कहना है कि इनका नाम संघ के इशारे पर भेजा गया है. ओपी सिंह पर मुलायम सिंह यादव के करीबी माना जाता रहा है और बीएसपी सुप्रीमो मायावती के गेस्ट हाऊस काण्ड के समय ओपी सिंह लखनऊ के एसएसपी थे, इस बात को लेकर भी सियासी चर्चाएँ गर्म हैं कि ओपी सिंह को डीजीपी बनाये जाने से मायावती इसको एजेंडा बनाकर दलितों की सहानुभूति आने वाले लोकसभा चुनाव में कर सकती हैं जिससे भाजपा के दलित एजेंडे को नुकसान पहुँच सकता है. प्रधानमन्त्री द्वारा ओपी सिंह के गाने पर की गयी टिप्पड़ी भी चर्चा का विषय बनी हुयी है.
उधर नियमसंगत काम करने वाले सूबे के मुख्य सचिव राजीव कुमार को लेकर भी चर्चाएँ गर्म हैं. कुछ लोगों का कहना है कि इमानदार छवि के होने के कारण राजीव कुमार फाईलों को बारीकी से पढ़ती हैं और कमियाँ होने पर उसको वापस भेज देते हैं जिसके चलते सरकार के विकास कार्यक्रम तेजी नहीं पकड़ पा रहे हैं. उनकी इस कार्यशैली को लेकर भी शासन और संगठन में नाराजगी है और देवेन्द्र कुमार चौधरी के अचानक यूपी वापस आने से उनके केंद्र में जाने की चर्चाएँ शुरू हो गयी हैं. कुछ लोगों का मानना है कि आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार राजीव कुमार को केंद्र वापस बुलाकर सूबे की इस मुखिया की कुर्सी पर किसी दलित अथवा पिछड़े को बैठाना चाहती है और देंवेंद्र कुमार चौधरी का नाम इसके लिए चर्चा में है. जबकि जानकारों के अनुसार देवेन्द्र कुमार चौधरी भूमिहार जाती से आते हैं और उनका कार्यकाल केवल चार महीने ही बचा है इसलिए सरकार ऐसा नहीं करेगी. इसके इतर कुछ का कहना है कि जुगाड़ के खिलाड़ी श्री चौधरी अपने रिटायरमेंट के अंतिम समय को अपने मूल कैडर में बिताना चाहते हैं और वे सरकार के किसी आयोग में जाना चाहते हैं.
फिलहाल सरकार फैसला चाहे जो भी ले लेकिन लोगों के बीच इन दोनों पदों पर तैनाती को लेकर रोज नयी-नयी चर्चाये जन्म ले रही हैं. और सूबे के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि बिना मुखिया उत्तर प्रदेश पुलिस काम कर रही है जबकि केंद्र और राज्य में भाजपा की ही सरकारें हैं. पिछली सरकार के फैसलों और क़ानून व्यवस्था पर हमला बोलने वाली सुशासन की इस सरकार के नेता फिलहाल अब इस मुद्दे पर खुलकर बोलने से बच रहे हैं.
